जाति गणना का खूब हुआ शोर, मगर टिकट में नहीं मिली हिस्सेदारी, जानिए बिहार में किस दल ने कितने अति पिछड़ों को उतारा

Lok Sabha Election 2024 बिहार में हुई जाति गणना का खूब शोर हुआ लेकिन आबादी के अनुपात पर दलों ने टिकटों का बंटवारा नहीं किया। जाति गणना के पक्ष में मुखर दलों ने भी इससे किनारा कर लिया है। अब सवाल यह उठ रहा है कि अगर आबादी के अनुपात में हिस्सेदारी नहीं देना था तो जाति गणना की ही क्यों गई।

By Jagran NewsEdited By: Ajay Kumar Publish:Thu, 18 Apr 2024 12:00 PM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2024 12:00 PM (IST)
जाति गणना का खूब हुआ शोर, मगर टिकट में नहीं मिली हिस्सेदारी, जानिए बिहार में किस दल ने कितने अति पिछड़ों को उतारा
लोकसभा चुनाव 2024: जाति गणना यानी सिर्फ वोट लेना है-हिस्सेदारी नहीं देना।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। सामाजिक न्याय के लिए जाति आधारित गणना को जरूरी बताने वाले राजनीतिक दलों पर हैदर अली की यह पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं। चुनावी मंचों और सड़कों से जोर-जोर से आवाज आ रही है- जितनी जिसकी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी। नारे अच्छे लग रहे हैं।

लगभग दो तिहाई ओबीसी आबादी का उत्साह बढ़ रहा है। हफ्ते भर पहले तक देश की 18 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को भी यह नारा सुन-सुन कर हिस्सेदारी के सपने आने लगे थे, लेकिन तारे तोड़कर लाने का भरोसा देने वाले दलों ने जब टिकटों की पेटियां खोलीं तो तारे आसमान में ही थे और अरमान हवा में। न तो कांग्रेस ने आबादी के अनुपात में टिकटों में हिस्सा दिया, न ही समाजवादी पार्टी एवं राजद ने।

बसपा का रास्ता भी अलग नहीं। बिहार में 36 प्रतिशत अति पिछड़े भी हाशिये पर खड़े होकर प्रभावशाली जातियों के हिस्से का टिकट गिन रहे हैं।

लालू ने दिखाया आईना

बिहार, उत्तर प्रदेश एवं झारखंड में मुस्लिमों की आबादी लगभग 18 प्रतिशत है। अति पिछड़ों की संख्या भी दो तिहाई से ज्यादा है, परंतु टिकट सबसे कम मिले हैं। मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण के सहारे तीन दशकों से राजनीति का पर्याय बन चुके लालू प्रसाद ने मुस्लिमों को भी आईना दिखा दिया है। राजद ने महागठबंधन में अपने हिस्से की 23 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें नौ यादव हैं। मुस्लिम एवं अति पिछड़ा से सिर्फ दो-दो प्रत्याशी उतारे। तीन आरक्षित सीटों को हटा दिया जाए तो लालू ने कुल 20 अनारक्षित सीटों में लगभग आधी सीटें अपनी बिरादरी में ही बांट दीं।

उठ रहे ये सवाल

ऐसे में वरिष्ठ पत्रकार सेराज अनवर का सवाल लालू प्रसाद से है कि बिहार में जाति आधारित गणना कराया ही क्यों? सेराज कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी पूछते हैं कि आबादी के अनुपात में जब हिस्सेदारी नहीं देनी है तो फिर शोर क्यों मचाया जा रहा है? सिर्फ वोट के लिए ही न? देश में 1872 से जाति आधारित गणना होती रही थी। किंतु आजादी के बाद 1951 में कांग्रेस की सरकार में ही इसे बंद कर दिया गया। बाद में भी पर्दा डालने का प्रयास ही किया गया।

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राजद ने उतारे तो मुस्लिम प्रत्याशी

बिहार में पिछले वर्ष जाति आधारित गणना कराकर सरकार ने बताया कि किस जाति के कितने लोग हैं। गिनती में अति पिछड़ी जातियां 36 प्रतिशत निकलीं। मुस्लिम 17.70 प्रतिशत और यादव 14 प्रतिशत। मुस्लिमों में उम्मीद जगी कि सियासत में उनकी हिस्सेदारी बढ़ने वाली है। खासकर वैसे दलों से ज्यादा उम्मीद थी, जो उनके वोटों पर अपना अधिकार समझते आए हैं। किंतु राजद ने दो और जदयू ने सिर्फ एक मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया।

अति पिछड़ों को किस दल ने कितनी टिकट दी?

भाजपा-लोजपा ने इसकी भी जरूरत नहीं समझी। सामाजिक न्याय की राजनीति का दावा करने वाले राजद ने अति पिछड़ों को सिर्फ तीन टिकट दिए। वामदलों की सूची में एक भी अति पिछड़ा प्रत्याशी नहीं है। कांग्रेस की नौ सीटों में से अभी तक सिर्फ तीन प्रत्याशी घोषित हुए हैं।

दो मुस्लिम और एक हिंदू। तीनों सवर्ण हैं। शेष छह सीटों में दो आरक्षित है। चार की प्रतीक्षा है। देखना होगा कि किसे मिलता है। राजग ने अति पिछड़ों को सर्वाधिक भागीदारी दी है। जदयू ने पांच और भाजपा ने दो टिकट दिए हैं। झारखंड में अभी तक आईएनडीआईए के घटक दल सीट ही नहीं बांट पाए हैं। जो प्रत्याशी उतारे हैं, उनमें न तो कोई मुस्लिम और न ही अति पिछड़ा है।

घटती गई मुस्लिमों की भागीदारी

चुनाव दर चुनाव मुस्लिमों को टिकट से दूर किया जाता रहा। बिहार में दोनों तरफ से इस बार सिर्फ पांच मुस्लिम प्रत्याशी हैं। 2014 में इस वर्ग से 15 प्रत्याशी थे। राजद ने छह को टिकट दिया था। 2019 में नौ मुस्लिम प्रत्याशी थे। राजद ने पांच टिकट दिए थे। इस बार राजद एवं कांग्रेस ने दो-दो तथा जदयू ने एक मुस्लिम पर दांव लगाया है। मांग आठ की थी। मिला सिर्फ चार। सेराज कहते हैं कि मुस्लिमों के बराबर टिकट तो लालू ने अपने घर की बेटियों को दे दिए।

उत्तर प्रदेश का हाल भी अलग नहीं

यूपी में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सपा 62 सीटों पर लड़ रही है। अभी तक सिर्फ छह मुस्लिम प्रत्याशी उतारे गए हैं। चार सपा और दो कांग्रेस। बसपा भी कंजूसी बरत रही है। 2014 में सपा ने 14 और कांग्रेस ने 11 मुस्लिमों को टिकट दिए थे। सपा ने अब तक चार यादव को टिकट दिए हैं। सबके सब मुलायम सिंह परिवार से हैं। मेरठ एवं मुरादाबाद जैसी सीटों पर पहले सपा मुस्लिम प्रत्याशी उतारते रही थी। वहां भी इस बार हिंदू पर ही दांव लगाया है।

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