Lok Sabha Elections 2019: हार-जीत पर असर डालते नोटा पर भी जनता की नजर

निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट साफ बताती है कि विधानसभा क्षेत्रों के परिणामों में कई सीटें ऐसी थीं जहां जीत हार के अंतर से ज्यादा वोट नोटा ने खींच लिया।

By Nitin AroraEdited By: Publish:Wed, 13 Mar 2019 10:13 AM (IST) Updated:Wed, 13 Mar 2019 10:13 AM (IST)
Lok Sabha Elections 2019: हार-जीत पर असर डालते नोटा पर भी जनता की नजर
Lok Sabha Elections 2019: हार-जीत पर असर डालते नोटा पर भी जनता की नजर

शिवांग माथुर, नई दिल्ली। उम्मीदवारों को मुकाबला एक दूसरे से ही नहीं, नोटा से भी करना होगा। हाल के दिनों में नोटा (नन ऑफ द अबव, उपरोक्त में से कोई नहीं) यानी किसी भी उम्मीदवार को वोट न देने का विकल्प कुछ इस कदर हावी होने लगा है कि यह नेताओं को डरा रहा है। बारीक अध्ययन करने पर नोटा की इस लगातार बढ़ती भूमिका को स्पष्ट देखा जा सकता है।

निर्वाचन आयोग की रिपोर्ट साफ बताती है कि विधानसभा क्षेत्रों के परिणामों में कई सीटें ऐसी थीं, जहां जीत हार के अंतर से ज्यादा वोट नोटा ने खींच लिया। नोटा का प्रावधान चुनाव प्रक्रिया और उम्मीदवारों के चयन में सुधार लाने के लिए किया गया था, लेकिन अब तक राजनीतिक दलों पर इसका सकारात्मक असर शुरू नहीं हुआ है ऐसे में वोटर उम्मीदवारों को लेकर निराश होते हैं तो नोटा की मारक भूमिका और बढ़ सकती है।

आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है छत्तीसगढ़ विधानसभा में नोटा को कुल डाले गए मतों का 2 प्रतिशत ही प्राप्त हुआ, वहीं छत्तीसगढ़ के पिछले विधानसभा चुनावों में नोटा के पक्ष में 3.06 प्रतिशत मतदान का राष्ट्रीय रिकार्ड बना था। वहीं मध्य प्रदेश में नोटा के पक्ष में मतदान 1.4 प्रतिशत हुआ, पिछले विधानसभा चुनावों में नोटा को 1.9 प्रतिशत मत मिले थे।

इस आधार पर देखा जाए तो मध्य प्रदेश में पिछली बार की तुलना में नोटा का मत प्रतिशत कम ही रहा। कुछ ऐसी ही स्थिति राजस्थान में नोटा की देखी गई, यहां भी नोटा के पक्ष में मतदान 1.3 प्रतिशत हुआ है, वहीं पिछले विधानसभा चुनावों में इसकी हिस्सेदारी 1.9 प्रतिशत रही थी। ऐसे में जिस तरह से बड़ी तादाद वोटर्स ने कई सीटों पर किसी भी प्रत्याशी पर भरोसा नहीं दिखाया है, इससे यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि नोटा की भूमिका अहम हो सकती है।

पिछले दिनों में नोटा के वोट फीसद में कमी दिखी, लेकिन कई राज्यों में हार-जीत में रही भूमिका
केस-1: मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ सीट पर 59,158 वोटों के साथ भाजपा के शिवनारायण सिंह विजेता रहे, जबकि दूसरे नंबर पर 55,255 वोटो के साथ कांग्रेस के ध्यान सिंह रहे। दोनों उम्मीदवारो के बीच जीत का अंतर 3,903 वोटों का रहा, जबकि नोटा को इस सीट पर 5,037 वोट मिले।

केस-2: मप्र की बीना सीट पर भी जीत हार तय करने में नोटा की अहम भूमिका रही, यहां से भाजपा के महेश राय 57,828 वोटों के साथ जीते, जबकि 57,196 वोटों के साथ कांग्रेस के शशि कठोरिया दूसरे नंबर पर रहे। दोनों उम्मीदवारों के बीच 632 वोटों को अंतर रहा, जबिक 1,528 लोगों ने नोटा का ऑप्शन चुना।

केस-3: राजपुर विधानसभा सीट पर कांग्रेस के बाला बच्चन (85,513 वोट) ने भाजपा के अंतरसिंह देवी सिंह पटेल (84,581) को 932 वोटों के अंतर से हराया। यहां नोटा को 3,358 लोगों ने चुना।

केस-4: कुछ ऐसी ही स्थिति राजस्थान में भी दिखी, बेंगू सीट से कांग्रेस के राजेंद्र विधूड़ी ने भाजपा के उम्मीदवार को 1661 वोटों से हराया, जबकि नोटा को 3165 वोट मिले।

केस-5: राजस्थान की ही पोकरण विधानसभा सीट से कांग्रेस के सालेह मोहम्मद 872 वोटों से चुनाव जीता, जबकि नोटा को 1121 वोट पड़े। यहीं हाल सैकड़ों दूसरी विधानसभा सीटों का है।

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