Lok Sabha Elections 2019: झारखंड में जल-जंगल-जमीन पर जोर, ये हैं पांच मुद्दे

Lok Sabha Elections 2019. झारखंड को बिहार से अलग हुए भले ही 18 साल हो गए लेकिन अभी भी बुनियादी मुद्दे जल जंगल और जमीन ही हैं।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Wed, 20 Mar 2019 01:23 PM (IST) Updated:Wed, 20 Mar 2019 01:23 PM (IST)
Lok Sabha Elections 2019: झारखंड में जल-जंगल-जमीन पर जोर, ये हैं पांच मुद्दे
Lok Sabha Elections 2019: झारखंड में जल-जंगल-जमीन पर जोर, ये हैं पांच मुद्दे

रांची, प्रदीप शुक्ला। 28 साल पहले भयंकर सूखे का सामना कर रहे एकीकृत बिहार के पलामू जिला मुख्यालय में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव आए थे। उन्होंने चियांकी एयरपोर्ट पर सभा की। तब अफसरों ने सूखे

की भयावहता को छिपाने के लिए एयरपोर्ट के समीप ही धमधमवा में एक तालाब में पाइप के जरिए पानी भरवा दिया। तालाब में मछलियां तक छोड़ी गई।

कहा गया कि सब कुछ ठीकठाक है। राव संतुष्ट होकर दिल्ली लौट गए, लेकिन आज भी पलामू वहीं खड़ा है। सूखे की मार इस इलाके की नियति बन चुकी है। तभी तो बीते पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्तर के दशक में शुरू किए गए मंडल डैम की आधारशिला रखने को आना पड़ा। उन्होंने इलाके में सोन नदी से पाइप के जरिए जलापूर्ति योजना की भी नींव रखी।

दृष्टांत यह समझने को काफी है कि झारखंड को बिहार से अलग हुए भले ही 18 साल हो गए, लेकिन अभी भी बुनियादी मुद्दे जल, जंगल और जमीन ही हैं। इससे आगे बढ़ने में वक्त लगेगा, क्योंकि विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले इस राज्य में लगभग तीस फीसद जमीन घने जंगलों से घिरी है। वनाधिकार और जंगल की जमीन का मालिकाना हक एक बड़ा मसला है। देश में कोयले के भंडार का 40 फीसद झारखंड में है। लेकिन इससे मिलने वाला अंश काफी कम। बेहतर बारिश होने के बावजूद पहाड़ों का पानी बहता हुआ समुद्र में चला जाता है और धरती प्यासी रह जाती है।

सिंचाई परियोजनाओं पर यहां अंधाधुंध खर्च हुए, लेकिन उससे पेट की आग शांत होने की बजाय पलायन की पीड़ा ही अपने हिस्से आई। एक बड़ा हिस्सा विस्थापन की जद में है। आधी-अधूरी सिंचाई योजनाओं ने इस विकृति को जन्म दिया। वैसे इलाके जहां धरती के नीचे का कोयला निकल चुका और कंपनियां पलायन कर गई, वहां रोजगार के लाले हैं। झरिया में धरती के नीचे की आग हो या फिर पेट की आग, दोनों की तपिश बराबर महसूस की जा सकती है। कुछ ऐसा ही हाल कोल्हान के सारंडा क्षेत्र का है।

एशिया का सर्वाधिक सघन वन क्षेत्र वाले इस इलाके में कच्चा लोहा यानी लौह अयस्क का भंडार है, जो लगातार दोहन से खत्म होने की कगार पर है। इसके बूते बड़ी कंपनियों की चिमनियां धधकती हैं, लेकिन इलाके में पिछड़ापन ऐसा कि रोंगटे खड़े हो जाए। छोटानागपुर से लेकर संताल परगना तक भूमि संबंधी कानून सीएनटी (छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट) व एसपीटी (संताल परगना टेनेंसी) एक्ट को लेकर समय-समय पर होने वाली सुगबुगाहट भी थमती नहीं।

ये हैं पांच मुद्दे

1. सिंचाई का अभाव, सुखाड़

2. जमीन संबंधी कानून

3. बेरोजगारी-पलायन

4. जंगली जमीन का मालिकाना हक 

5. खनिजों का दोहन

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