गठबंधन टूटा पर मिले हैं दिल! परदे के पीछे चल रही भाजपा और जजपा की दोस्‍ती ने बढ़ाई कांग्रेस की चिंता, क्‍या ये कोई रणनीति है?

Lok Sabha Election 2024 भाजपा द्वारा जजपा को उसकी पसंद की हिसार और भिवानी लोकसभा सीटें नहीं दिए जाने से दोनों दलों का गठबंधन टूट चुका है जिसके बाद जजपा ने प्रदेश की सभी 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। इधर जजपा अपने प्रत्‍याशियों की सूची तैयार करने में लगी है जिसने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है।

By Jagran NewsEdited By: Deepti Mishra Publish:Tue, 19 Mar 2024 02:00 AM (IST) Updated:Tue, 19 Mar 2024 02:00 AM (IST)
गठबंधन टूटा पर मिले हैं दिल! परदे के पीछे चल रही भाजपा और जजपा की दोस्‍ती ने बढ़ाई कांग्रेस की चिंता, क्‍या ये कोई रणनीति है?
Lok Sabha Chunav 2024: गठबंधन टूटने के बाद भाजपा-जजपा में मैत्री मुकाबला

 अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी (जजपा) के बीच भले ही गठबंधन टूट गया, लेकिन दोनों दलों के बीच लोकसभा चुनाव में फ्रेंडली यानी मैत्रीपूर्ण मैच खेले जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

भाजपा द्वारा जजपा को उसकी पसंद की हिसार और भिवानी लोकसभा सीटें नहीं दिए जाने से दोनों दलों का गठबंधन टूट चुका है, जिसके बाद जजपा ने प्रदेश की सभी 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है। जजपा अब लोकसभा स्तर पर बैठक कर यह तय कर रही है कि उसे किस लोकसभा सीट पर किस समीकरण से अपने उम्मीदवार उतारने हैं।

फिर शुरू हो सकता है याराना!

भाजपा और जजपा दोनों दलों का गठबंधन टूटने के बाद पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला की पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा जेजेपी की तारीफ करने से यह संभावना बलवती हो गई है कि आने वाले समय में दोनों दल अपने पुराने रिश्तों को खराब करने की बजाय उन्हें सींचने का काम करेंगे।

जजपा की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा से कांग्रेस बहुत परेशान है। उसे लग रहा है कि यदि जजपा प्रदेश में लोकसभा चुनाव लड़ी तो वह कांग्रेस के वोट काटने का काम करेगी, जिसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा। जजपा की इस रणनीति पर भाजपा को  कोई ऐतराज नहीं है।

 न कोई गिला और न किया शिकवा

कार्यकर्ताओं के बीच जाने के लिए जजपा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष एवं पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला कह रहे हैं कि हमें भिवानी और हिसार की बजाय रोहतक लोकसभा सीट की पेशकश भाजपा ने की थी, जिसे हमने स्वीकार नहीं किया, नतीजतन गठबंधन टूट गया, मगर दुष्यंत चौटाला ने एक बार भी भाजपा के शीर्ष अथवा प्रदेश नेतृत्व पर किसी तरह की अंगुली नहीं उठाई है। न ही कोई किसी तरह के आरोप जड़े हैं।

दुष्यंत चौटाला का यह कहना कि हमारा भविष्य उज्ज्वल है और हमने निवर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल से बहुत कुछ सीखा है, यह संकेत दे रहा है कि भाजपा व जजपा के बीच अंदरखाने रणनीतिक समझदारी विकसित की जा चुकी है।

हाल ही में दुष्यंत चौटाला चंडीगढ़ में मनोहर लाल के घर चाय पीकर भी आए हैं। दोनों दलों की छिपी हुई मित्रता पर मुहर तब लग गई, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जेजेपी से हमारे रिश्ते खराब नहीं है। सीटों के बंटवारे पर विचार मेल नहीं खाए तो दोनों दल बिना किसी लड़ाई झगड़े के आराम से अलग हो गए। शाह की जेजेपी के प्रति इस नरमी में खास संदेश छिपा है।

भाजपा ने छह सीटों पर उतार दिए प्रत्याशी

प्रदेश में 10 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से छह सीटों गुरुग्राम, फरीदाबाद, अंबाला, सिरसा, करनाल और भिवानी पर भाजपा अपने उम्मीदवार घोषित कर चुकी है। करनाल में निवर्तमान सीएम मनोहर लाल स्वयं लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, जबकि गुरुग्राम व फरीदाबाद में दोनों केंद्रीय राज्य मंत्रियों राव इंद्रजीत तथा कृष्णपाल गुर्जर को रिपीट किया गया है।

अंबाला में दिवंगत सांसद रतनलाल कटारिया की धर्मपत्नी बंतो कटारिया को टिकट मिला है, जबकि सिरसा में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके पूर्व सांसद डॉ. अशोक तंवर पर भरोसा जताया गया है।

भिवानी में मौजूदा सांसद धर्मबीर सिंह चुनाव लड़ेंगे। अब सिर्फ चार सीटें कुरुक्षेत्र, सोनीपत, रोहतक और हिसार बाकी बची हैं, जिन पर कांग्रेस के उम्मीदवारों को देखने के बाद ही प्रत्याशी घोषित किए जाएंगे।

गठबंधन टूटने के बाद क्‍या बोले पूर्व सीएम?

हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र सिंह हुड्डा सार्वजनिक मंच से कह रहे हैं कि गठबंधन टूटने के बाद भी दोनों दलों का एक साथ चलना भाजपा व जजपा की रणनीति का हिस्सा है। जेजेपी जहां भी चुनाव लड़ेगी, वहां कांग्रेस के वोट काटने का काम करेगी। जाट मतों पर कांग्रेस, इनेलो और जेजेपी तीनों की दावेदारी है।

 भाजपा प्रदेश में गैर जाट की राजनीति में ज्यादा यकीन रखती है। ऐसे में जेजेपी के लड़ने का फायदा भाजपा को मिलेगा, जबकि नुकसान कांग्रेस को होगा। दोनों दलों की यह आपसी समझदारी अगले विधानसभा चुनाव में भी कोई गुल खिला सकती है।

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