Exclusive: भाजपा को सत्‍ता से हटाने के लिए परिणाम के बाद एक फ्रंट में आएंगी सभी पार्टियां- चिदंबरम

हम भाजपा को शिकस्त दे रहे हैं और भाजपा से वैचारिक दूरी वाली सभी पार्टियां केंद्र में एक गैर भाजपा सरकार बनाने जा रही हैं-चिदंबरम

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 17 May 2019 10:30 AM (IST) Updated:Fri, 17 May 2019 10:32 AM (IST)
Exclusive: भाजपा को सत्‍ता से हटाने के लिए परिणाम के बाद एक फ्रंट में आएंगी सभी पार्टियां- चिदंबरम
Exclusive: भाजपा को सत्‍ता से हटाने के लिए परिणाम के बाद एक फ्रंट में आएंगी सभी पार्टियां- चिदंबरम

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। कांग्रेस राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर आर्थिक मुद्दों पर मोदी सरकार को घेरती रही है तो दूसरी ओर चुनावी वादों से जनता को लुभाने का दांव चलने में भी उसने भाजपा के लिए बड़ी चुनौती पेश की है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता पूर्व वित्त और गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने पार्टी की चुनावी रणनीति से लेकर घोषणापत्र तैयार करने में अहम भूमिका निभाई है। चुनाव अब आखिरी मुकाम पर है और कांग्रेस घोषणापत्र समिति के अध्यक्ष सत्ता बदलने के भरोसे से लबालब हैं। चिदंबरम ने दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से नई सरकार की संभावनाओं से लेकर आर्थिक चुनौतियों के तमाम मुद्दों पर खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश:

लोकसभा चुनाव खत्म होने को है, ईमानदारी से बताएं, आपका आकलन क्या है?

-कांग्रेस पार्टी का ईमानदार आकलन यही है कि हम भाजपा को शिकस्त दे रहे हैं और भाजपा से वैचारिक दूरी वाली सभी पार्टियां केंद्र में एक गैर भाजपा सरकार बनाने जा रही हैं।

आप चुनाव बाद विपक्ष के एकजुट होने की बात कर रहे हैं, मगर तीसरे खेमे के कुछ नेता गैर भाजपा ही नहीं गैर कांग्रेस सरकार के पक्ष में हैं। तो फिर कांग्रेस कहां खड़ी होगी?

-हर दल अपने प्रयास करने के लिए स्वतंत्र है। मगर मेरा मानना है कि चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा से असहमत सभी पार्टियां इस हकीकत से रूबरू होंगी कि सभी को साथ आना होगा, ताकि वे एक स्थिर गैर भाजपा सरकार दे सकें। मुझे भरोसा है कि सभी पार्टियां चुनाव बाद एक फ्रंट में आएंगी। इसकी पुख्ता संभावना को देखते हुए ही भाजपा ऐसी सरकार की मजबूती को लेकर अफवाह फैलाने में जुट गई है। मगर आप देखेंगे कि चुनाव बाद एक स्थिर ही नहीं मजबूत गैर भाजपा सरकार बनेगी।

चुनाव में राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला खूब उछला है और क्या आपको नहीं लगता कि इस प्रकरण में विपक्ष पर सत्तापक्ष का नेरेटिव (कथ्य) हावी रहा है?

-राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर मोदी सरकार के ढोल पीटने और वास्तविकता में बहुत अंतर है। हकीकत को खोखले नेरेटिव से बदला नहीं जा सकता। सच्चाई यह है कि दो साल में नक्सलवाद फिर बढ़ा है। बीते चार साल में जम्मू-कश्मीर की हालत सबसे खराब दौर में पहुंच गई है। छत्तीसगढ़ में अगर भाजपा सरकार ने माओवाद से ठीक से निपटा होता तो क्या वे विधानसभा चुनाव में इतनी बुरी तरह से हारते। सारी आदिवासी सीटें वहां भाजपा हार गई और लोकसभा चुनाव में भी यही होगा। जम्मू-कश्मीर और माओवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा की इन दोनों बड़ी चुनौतियों को सरकार ने और अधिक चिंताजनक बना दिया है।

जम्मू-कश्मीर के अलावा कहीं भी बड़े आतंकी हमले नहीं होने की सरकार की बात क्या उसकी सख्त नीति नहीं दिखाती?

-सरकार का दावा बिल्कुल गलत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पांच साल में कोई बम ब्लास्ट नहीं हुआ तो हमने पूरी लिस्ट गिना दी। पुलवामा आतंकी विस्फोट तो सबके सामने है ही। इसके अलावा आठ बड़े विस्फोट या हमले हुए हैं। 2014 के आखिर से लेकर इस साल एक मई तक जम्मू-कश्मीर के मोरा, दंतेवाडा, पलामू, बिहार के औरंगाबाद, कोरापुट, छत्तीसगढ़ के सुकमा, आवापल्ली, दंतेवाड़ा और एक मई को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में, ये सारे बड़े विस्फोट हैं, जिनमें बड़ी संख्या में हमारे लोग और जवान मारे गए हैं। सैकड़ों छोटे हमले या विस्फोट की इसमें गिनती नहीं है।

जम्मू-कश्मीर में एएफएसपीए हटाने या रियायत देने के कांग्रेस के चुनावी वादे को भाजपा ने राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ बताते हुए मुद्दा बनाया है, क्या कहेंगे?

-भाजपा के लिए जो कोई भी उनकी नीतियों से असहमत है वह राष्ट्रविरोधी है। उनकी नीतियां चाहे भले ही बुरी तरह फेल हुई हों, लेकिन अगर कोई अच्छा वैकल्पिक सुझाव दे तो यह भी देशद्रोह है। एंटी नेशनल वास्तव में अपनी नाकामियां छुपाने के लिए भाजपा का स्टॉक जवाब बन गया है। जम्मू-कश्मीर में भाजपा की शक्तिशाली ताकत की रणनीति से अलग हम बिल्कुल नया एप्रोच अपनाएंगे। जहां तक धारा 370 का सवाल है तो हमारा साफ मानना है कि मौजूदा संवैधानिक प्रावधान में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के लिए जैसे संविधान का यह विशेष प्रावधान है, वैसे ही कई दूसरे राज्यों के लिए भी विशेष संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं। भाजपा 370 को हटाने की बात करती है तो क्या दूसरे राज्यों के विशेष प्रावधानों को भी खत्म करेगी? महाराष्ट्र और गुजरात के लिए 371, नगालैंड में 371 ए, 371 बी, असम, मणिपुर में 371 सी, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 371 डी, सिक्किम में 371 एफ, मिजोरम में 371 जी, अरुणाचल प्रदेश में 371 एच, गोवा में 371 आई और कर्नाटक के लिए 371 जे के तहत विशेष प्रावधान हैं। भाजपा क्या यह नहीं जानती कि यह संवैधानिक प्रावधान हैं।

मगर कांग्रेस को टुकड़े-टुकड़े गैंग की अगुआ कहने और इसे लेकर की गई भाजपा की घेरेबंदी पर क्या कहेंगे?

-यह बिल्कुल वाहियात और फूहड़ -नारा है। आप ही सोचें, कांग्रेस पार्टी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शिक्षक, छात्र, स्कॉलर सभी टुकड़े-टुकड़े गैंग हैं। अब तो खान मार्केट जाने वाले लोग भी इसी गैंग के ठहरा दिए गए हैं। तर्क और प्रगति की बात करने वाला हर व्यक्ति ही भाजपा के लिए टुकड़े-टुकड़े गैंग का है तो उनके इस बकवास पर कहा भी क्या जाए।

सुरक्षा के मौजूदा परिदृश्य में कांग्रेस पाकिस्तान और जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा रणनीति से कैसे निपटेगी?

-हमारी नीति स्पष्ट है कि हम सीमा की सुरक्षा बेहद मजबूत करें, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कोई आतंकी घुसपैठी भारत न आ सके। इसके लिए चाहे जितने सैनिक या अर्द्धसैनिक बलों की जरूरत सीमा पर होगी हम यह सुनिश्चित करेंगे। जम्मू-कश्मीर में अंदरूनी नीति का सवाल है तो हमारा मानना है कि कानून व्यवस्था ठीक रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है और प्रदेश की पुलिस यह दायित्व निभाएगी। 2010 से 2014 तक यही नीति हमने अपनाई, जिसका बहुत फायदा हुआ। मोदी सरकार ने भी मई 2015 तक इसी नीति को जारी रखा। मगर इसके बाद उन्होंने अपनी मजबूत नीति के तहत सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवान घाटी के इलाकों में उतार दिए। कश्मीर के लोगों के साथ ऐसे डील करने लगे जैसे वे शत्रु हैं। इसीलिए हालात बेहद बिगड़ गए। सभी लोग मान रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में हालात आज सबसे खराब दौर में हैं।

आपने अभी अर्थव्यवस्था के संकट में होने की बात कही है तो इस निष्कर्ष का क्या आधार है?

-अर्थव्यवस्था संकट में है यह मैं नहीं, बल्कि वित्त मंत्रालय की तमाम रिपोर्ट और आंकड़ें कह रहे हैं। इसी मार्च महीने के वित्त मंत्रालय के तमाम आंकड़ें बता रहे हैं कि नोटबंदी के बाद के वित्तीय वर्षों में सभी आर्थिक पैरामीटर नीचे गिरे हैं। जीडीपी और वित्तीय घाटा बढ़ा है, पूंजीगत व्यय घटा है तो चालू खाता घाटा तेजी से बढ़ा है। निजी ही नहीं सरकारी उपभोग में कोई वृद्धि नहीं हुई है। फिक्स निवेश दर ठहरी हुई है और मैन्युफैक्चरिंग फरवरी-मार्च 2019 में तो निगेटिव हो गया है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पांच साल के सबसे निचले स्तर पर तो बेरोजगारी 45 साल के उच्चतम स्तर पर है। वित्त मंत्रालय की यह रिपोर्ट साफ संकेत दे रही कि हमारी अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है।

आपने कहा अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में है, तो आखिर ऐसा क्यों हुआ है?

-मौजूदा सरकार को अर्थव्यवस्था की कोई दीर्घकालिक समझ नहीं है। इसमें नोटबंदी, त्रुटिपूर्ण जीएसटी के साथ एनपीए संकट को हल करने में दिखी अपरिपक्वता और पूंजी निवेश की कमी ने हालात ज्यादा गंभीर बनाए हैं। अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करने में सरकार पूरी तरह अक्षम रही है।

कांग्रेस ने न्याय के साथ कई बड़े वादे किए हैं, जब अर्थव्यवस्था संकट में है तो फिर पार्टी यदि सत्ता में आने पर इन्हें लागू कैसे कर पाएगी?

-घोषणापत्र में किए वादे का कार्यान्वयन हमें पांच साल में करना है न कि पहले ही दिन सभी वादे निभा देने हैं। आज भारत की जीडीपी 210 लाख करोड़ और 2025 तक यह 400 लाख करोड़ रुपये पहुंच जाएगी। बजट का यह आकार हमें पर्याप्त संसाधन देगा जिससे कि हम अपने चुनावी वादे आसानी से पूरा करेंगे।

न्याय स्कीम को लेकर मध्यम वर्ग से सवाल उठाए जा रहे हैं कि एक बड़ी आबादी काम करने से हिचकेगी और वर्क फोर्स से बाहर रहेगी, क्या यह वाजिब चिंता नहीं?

-आज का मध्यम वर्ग 30-40 साल पहले गरीबी रेखा के नीचे था। अर्थव्यवस्था के विस्तार, उदारीकरण और शिक्षा की वजह से वे आज मिडिल क्लास में आ गए हैं। इसी तरह आज जो लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, उन्हें मिडिल क्लास में लाना है तो फिर आपको उनका हाथ थाम सहारा देना होगा। न्याय वह हाथ होगा जो इन्हें गरीबी से बाहर निकालेगा और वे भी अपने बच्चों को स्कूल भेजेंगे, कड़ी मेहनत करेंगे। यह निष्कर्ष सही नहीं है कि बीपीएल की सीमा के लोगों की उत्पादकता नहीं होती।

आपने रिफॉर्म्स की बात की मगर उदारीकरण के अगले चरण को लेकर घोषणा पत्र में न्याय जैसी प्रतिबद्धता क्यों नहीं दिखाई है?

-आप मुझे भाजपा के घोषणापत्र का एक आइडिया बताइए जिस पर चर्चा हो रही हो। केवल कांग्रेस का घोषणापत्र है जिस पर देश में बात हो रही है। जहां तक बड़े आर्थिक सुधार की बात है तो हमने कृषि को प्रतिस्पर्द्धी और लाभकारी बनाने, टैक्स, बैंकिंग जैसे सुधार करने, निजी क्षेत्र को रोजगार का मुख्य इंजन बनाने की रूपरेखा रखी है। हमने आर्थिक विकास के चार इंजन निर्धारित किए हैं निजी निवेश, सरकारी खर्च, घरेलू उपभोग और निर्यात। इनके जरिये मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में नई जान फूंकेंगे और देश में कारोबार को आसान बनाएंगे। जीएसटी की खामियों को दुरूस्त करेंगे।

जीएसटी-नोटबंदी की कांग्रेस आलोचना करती रही है मगर सरकार का तर्क क्या सही नहीं कि इसे टैक्स दायरा बढ़ा है?

-सरकार चाहे जो कहे मगर किसी व्यापारी से बात करिए वह इसकी मुश्किलें बताएगा। जीएसटी खराब नहीं है, बल्कि खामियां इसके कार्यान्वयन में है। जीएसटी का विचार हमने रखा जिसे भाजपा ने पांच साल तक रोके रखा। मगर सरकार में आने के बाद हड़बड़ी में बिना दूरगामी असर की समीक्षा किए लागू किया। यह मत भूलिए कि उद्योग और कारोबार जगत ने इसे कुछ समय के लिए स्थगित करने की गुहार भी की थी, ताकि देश इसके लिए तैयार हो सके। आज भी जीएसटी के तीन फॉर्म में केवल एक ही जीएसटीआर वन ही लागू है। क्या यही सोच और प्लानिंग है सरकार की।

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