राजस्थान में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में विस.की तरह लोस.चुनाव मे नजर नहीं आ रहा उत्साह
लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही राजस्थान में सियासी बिसात बिछ चुकी है। प्रदेश में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस और भाजपा मिशन-25 में जुट गए है।
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के साथ ही राजस्थान में सियासी बिसात बिछ चुकी है। प्रदेश में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस और भाजपा मिशन-25 में जुट गए है। दोनों ही दलों ने राज्य की सभी 25 सीटों पर जीत दर्ज कराने को लेकर रणनीति बनाना शुरू कर दिया है। भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती साल,2014 के लोकसभा चुनाव के परिणाम को बरकरार रखना है,जिसमें उसने सभी संसदीय सीटों पर जीत दर्ज की थी।
वहीं कांग्रेस नेतृत्व के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रत्याशी चयन को लेकर बनी हुई है। सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम एवं पीसीसी अध्यक्ष सचिन पायलट के बीच चल रही खींचतान के चलते कांग्रेस को प्रत्याशी चयन में काफी मुश्किल हो रही है। करीब तीन माह पूर्व संंपन्न हुए विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने के बाद अब कांग्रेस कार्यकर्ताओं में कोई खासा उत्साह नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस के लिए कार्यकर्ताओं का विधानसभा चुनाव की तरह उत्साहित नजर नहीं आना भी परेशानी का कारण बन सकता है।
कांग्रेस अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की कोशिश में
करीब तीन माह पूर्व राज्य में सत्ता में आई कांग्रेस लोकसभा चुनाव में 25 में से अधिक से अधिक सीटें जीतने की कोशिश में जुटी है। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते भाजपा ने सभी 25 सीटें जीती थी। हालांकि बाद में अजमेर और अलवर उप चुनाव में कांग्रेस ने दो सीटें भाजपा से हथिया ली थी। अब कांग्रेस पूरी ताकत से जुटी है। कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से पूर्व किए गए अधिकांश बड़े वादे पूरे कर दिए है। प्रत्याशी चयन को लेकर तीन स्तर पर फीडबैक लिया गया। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व की चिंता इस बात को लेकर है कि विधानसभा चुनाव की तरह कार्यकर्ताओं में फिलहाल उत्साह नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस के लिए प्रत्याशियों का चयन भी मुश्किल हो रहा है। अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच चल रही खींचतान के कारण कांग्रेस आलाकमान भी परेशान है।
भाजपा में वसुंधरा की होगी महत्वपूर्ण भूमिका
पिछले लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटें जीतने वाली भाजपा के लिए पिछले परिणाम को बचाए रखना बड़ी चुनौती बनी हुई है। विधानसभा चुनाव हारने के बाद पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर प्रदेश की राजनीति से दूर करने का प्रयास किया गया है,लेकिन वे फिलहाल राज्य की राजनीति से अलग होने को तैयार नहीं है। चुनाव में एक तरफ जहां पीएम नरेन्द्र मोदी का नाम और चेहरा भाजपा के लिए सबसे बड़ी संजीवनी का काम करेगी,वहीं वसुंधरा राजे की भूमिका भी काफी हद तक चुनाव परिणाम पर असर करेगी।