Jharkhand Assembly Election 2019: खेत देख रहे पानी की राह, परदेस जाना भी मजबूरी Gomia Ground Report

Jharkhand Assembly Election 2019 चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही असर डालने वाले हैैं। फिलहाल चुनाव प्रचार जोर नहीं पकड़ पाया है। तमाम प्रत्याशी भीतर ही भीतर तैयारी में जुटे हैैं।

By Alok ShahiEdited By: Publish:Sat, 16 Nov 2019 07:49 PM (IST) Updated:Sat, 16 Nov 2019 07:49 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: खेत देख रहे पानी की राह, परदेस जाना भी मजबूरी Gomia Ground Report
Jharkhand Assembly Election 2019: खेत देख रहे पानी की राह, परदेस जाना भी मजबूरी Gomia Ground Report

गोमिया से राज्य ब्यूरो प्रभारी प्रदीप सिंह। क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति अन्य इलाकों से भिन्न नहीं है। चारों तरफ पहाड़ी से घिरा गोमिया बड़ा ही मनोरम है। इसमें लुगुबुरू का अलग ही महत्व है। देश-दुनिया में फैले संताल आदिवासी मानते हैैं कि इस पहाड़ी में उनके देवता निवास करते हैैं। हर साल लगने वाला दो दिनों का मेला बीत चुका है, लेकिन भीड़भाड़ अभी भी है। इसमें अगले साल मिलने का वादा कर संताल समुदाय के लोग अपने ठिकानों की ओर निकले हैैं। राज्य में चुनाव को लेकर कोई निर्णय इस जुटान में नहीं हुआ, लेकिन इसपर आपस में मंथन खूब हुआ।

सीमावर्ती ओडिशा के बारीपदा से आए रंजन कहते हैैं, हमारी मान्यता बहुत पवित्र है। हम हर साल यहां आते हैैं और नई ऊर्जा के साथ वापस लौटते हैैं। मेले के दौरान कोई निर्णय नहीं हुआ, लेकिन आपस में हुए मंथन का यही निष्कर्ष निकला कि हमें अपनी राजनीतिक राह मिलकर तय करनी होगी। हमारा जल, जंगल, जमीन निशाने पर है। आदिवासियत ही हमारी पहचान है। रंजन अच्छी बांसुरी बजाते हैैं और उसपर संताली गीत भी बीच-बीच में गुनगुनाते हैैं।

ललपनिया से आगे मुख्य सड़क के दोनों ओर हरियाली लिए पठार और आगे गोमिया। गोमिया मशहूर है देश के पहले विस्फोटक निर्माण कंपनी आइइएल के लिए। कभी इस आस्ट्रेलिन कंपनी में 4000 कर्मी काम करते थे। टर्नओवर 220 करोड़ सालाना तक था। 1958 में प्रथम प्रधानमंत्री डा. राजेंद्र प्रसाद ने इसका उद्घाटन किया था। लगभग 2200 एकड़ में कंपनी का प्लांट और रिहायशी इलाका फैला है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे वीरान हो रहा है। महज 600 कर्मी बचे रह गए हैैं। हाल ही में 90 लोगों को वीआरएस दिया गया।

कोयला खदानें भी बंद पड़ी है। पिछले डेढ़ साल से स्वांग वाशरी बंद है और इसी के साथ उन लोगों का रोजी-रोजगार भी प्रभावित हुआ है जो इससे जुड़े हैैं। ललपनिया स्थित विद्युत उत्पादक संयंत्र टीवीएनएल का भी विस्तार लंबित है। मनोज कुमार छोटा-मोटा कारोबार करते हैैं यहीं रहकर। मौसम के मुताबिक कामकाज। वे कहते हैैं- रोजगार के लिए बाहर जाने के सिवाय कोई चारा नहीं है। कहां है घर में रोजगार, सिर्फ नेता लंबी-चौड़ी बातें करते हैैं। खेती है लेकिन सिंचाई का साधन है नहीं। कोनार का पानी छोड़ा गया, लेकिन वह खेत तक आया नहीं।

चुनावी समीकरण हुआ रोचक

गोमिया विधानसभा सीट पर भाजपा ने अभी तक प्रत्याशी नहीं दिए हैैं। फिलहाल यह सीट झारखंड मुक्ति मोर्चा के कब्जे में है। आजसू पार्टी ने झारखंड प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे लंबोदर महतो को चुनाव मैदान में उतारा है। लंबोदर विधानसभा उपचुनाव हार चुके हैैं। पूर्व विधायक माधवलाल सिंह बतौर निर्दलीय मैदान में होंगे। झाविमो ने भी यहां प्रत्याशी उतारा है। चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही असर डालने वाले हैैं। फिलहाल चुनाव प्रचार जोर नहीं पकड़ पाया है। तमाम प्रत्याशी भीतर ही भीतर तैयारी में जुटे हैैं। हाट-बाजार में चुनाव को लेकर ज्यादा सरगर्मी दिखती नहीं।

बेरमो में भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने

गोमिया से सटे बेरमो विधानसभा क्षेत्र का हाल भी जुदा नहीं है। यहां के मतदाता हर चुनाव में प्रत्याशी बदलते हैैं। फिलहाल इस विधानसभा क्षेत्र पर भाजपा का कब्जा है। सीटिंग विधायक योगेश्वर महतो बाटुल फिर मुकाबले में हैैं। उन्हें पूर्व मंत्री राजेंद्र प्रसाद सिंह टक्कर दे रहे हैैं। कोयला खनन बहुल इस इलाके में प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। खदानों में घटता रोजगार भी चुनाव के दौरान मुद्दा बनकर उभर रहा है।

फिलहाल दोनों दलों के प्रत्याशियों ने अपना पूरा ध्यान मजदूरों को आकर्षित करने पर केंद्रित रखा है। जल्द ही यह परवान पर होगा। मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए बड़े नेताओं के भी दौरे होंगे। 

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