न्यूट्रल वोटरों से सियासी नैया पार लगने की उम्मीद

ऊना के सियासी माहौल में खास बात यह भी दिखी कि ,पार्टियों के उम्मीद पर पूरी तरह से खरा नहीं उतरने के बावजूद उनके चुनाव घोषणापत्र को लेकर लोगों में उत्सुकता और चर्चा दिखी।

By Babita KashyapEdited By: Publish:Wed, 08 Nov 2017 10:49 AM (IST) Updated:Wed, 08 Nov 2017 10:49 AM (IST)
न्यूट्रल वोटरों से सियासी नैया पार लगने की उम्मीद
न्यूट्रल वोटरों से सियासी नैया पार लगने की उम्मीद

ऊना, संजय मिश्र। चुनाव प्रचार अभियान का पर्दा मंगलवार को गिरने के साथ ही हिमाचल प्रदेश के सीमावर्ती जिले ऊना में राजनीतिक दलों के दावों का शोर भी थम गया। जमीनी सियासत में भाजपा और कांग्रेस दोनों न्यूट्रल यानी अब तक मन नहीं बन पाए वोटरों के सहारे सियासी नैया पार लगने की उम्मीद पाले बैठे हैं। भाजपा उम्मीदवारों को ऐसे वोटरों पर पिछले लोकसभा चुनाव की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू चलने का भरोसा है।

खासकर प्रधानमंत्री ऊना में हुई बड़ी रैली के बाद भाजपा हिमाचल में बदलाव की बयार का दावा ठोंक रही है। जवाबी ताल ठोंक रही कांग्रेस के मुताबिक भाजपा बड़े नाम के बूते जमीन पर वीरभद्र सरकार के

पांच साल के काम को ढंक नहीं सकती। ऊना में दोनों पार्टियों के दावों की सच्चाई की परख तो मतदान के बाद ईवीएम से निकलने वाले आंकड़ों से होगी मगर निष्पक्ष वोटरों की चुनाव में निर्णायक भूमिका की बात दोनों खेमे कबूल कर रहे हैं। ऊना शहर की सीट से प्रत्याशी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतपाल सत्ती कहते हैं कि करीब 15 फीसद वोटर न्यूट्रल हैं और मोदी की रैली के बाद इसमें से 10 फीसद तो भाजपा के साथ जाने का मन लगभग बना चुके हैं।

हालांकि सत्ती यह भी मानते हैं कि ऊना भाजपा और कांग्रेस दोनों का पुराना गढ़ रहा है, इसीलिए जमीन पर मुकाबला दिख रहा है। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार सतपाल रायजादा के समर्थक दावा करते हैं कि लगातार तीन बार से विधायक सत्ती ऊना में कुछ कर नहीं पाए इसीलिए मोदी के नाम का सहारा ले रहे हैं। कांग्रेस के जवाब पर सत्ती सफाई देते हैं कि उनके 15 साल में से 10 वर्ष कांग्रेस सरकार रही और उसने विरोधी दल के विधायक के काम नहीं होने दिए। दावा करते हैं कि केंद्र की योजनाओं का पैसा भी खर्च नहीं किया गया क्योंकि भ्रष्टाचार और माफिया का वीरभद्र सरकार में बोलबाला रहा। सत्ती के दावों के बीच ऊना बस अड्डे की बदहाली व शहरी इलाकों की सड़कों की हालत एक दूसरी तस्वीर दिखाते हैं। कांग्रेस से बागी होकर निकले निर्दलीय उम्मीदवार राजीव गौतम चुनाव को त्रिकोणीय बनाने की भरसक कोशिश कर रहे।

पंजाब सीमा से बिल्कुल सटा ऊना राजनीतिक रूप से हिमाचल की सियासत में खास मायने रखता है मगर सांस्कृतिक रूप से पंजाबी रवायत यहां ज्यादा प्रभावी है। शायद इसी का असर है कि ऊना में भी ड्रग्स की समस्या चुनौती है। जिले की एक दूसरी अहम विधानसभा सीट हरोली में इसे खास तौर पर भाजपा

मुद्दा बना रही है। हरोली से वीरभद्र सरकार में प्रभावशाली रहे उद्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री लगातार चौथी बार विधानसभा में पहुंचने के लिए मैदान में हैं। समर्थकों का दावा है कि भाजपा यहां मुकाबले में ही नहीं इसलिए ड्रग्स, जिसे स्थानीय जुबान में चिट्टा कहा जाता है, को मुद्दा बनाकर उछाल रही है। वैसे हरोली सीट प्रदेश की उन चंद सीटों में शामिल है, जहां प्रचार अभियान में भाजपा को कड़ी टक्कर मिली। विधायक और मंत्री के तौर पर अग्निहोत्री ने यहां विकास और संस्थानों की कई इमारतें खड़ी करा सियासत को मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। मुकेश के खिलाफ मैदान में उतरे भाजपा के राम कुमार को मोदी लहर का सहारा है।

हिमाचल की सियासत के दो दिग्गजों मुकेश अग्निहोत्री और सत्ती की वजह से दिलचस्प बने ऊना जिले की अन्य सीटो की चुनावी अहमियत कम नहीं। गगरेट सीट पर कांग्रेस के सिटिंग विधायक राकेश कालिया को चुनौती देने उतरे भाजपा के नए चेहरे राजेश ठाकुर के समर्थन में जेपी नड्डा, स्मृति ईरानी और अनुराग ठाकुर जैसे बड़े नेताओं ने रैलियां की। कुटलैहड़ सीट पर भाजपा के मौजूदा विधायक वीरेंद्र कंवर के सामने कांग्रेस के पूर्व विधायक रामनाथ शर्मा के बेटे विवेक शर्मा मैदान में हैं। कांग्रेस यह सीट पिछले 27 साल में नहीं जीत सकी है और जाहिर तौर पर कांग्रेस को इस इतिहास को बदलने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है।

धार्मिक आस्था के केंद्र शक्तिपीठ

चिंतपूर्णी सीट से कांग्रेस ने फिर कुलदीप कुमार तो भाजपा ने बलबीर सिंह को मैदान में उतारा है। सियासत की पिच पर दोनों मुख्य पार्टियां विकास के चाहे जो दावे करें लेकिन देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था के केंद्र चिंतपूर्णी में होटलऔर धर्मशालाओं को छोड़ धरातल पर विकास कहीं नहीं दिखता। तभी चुनाव में उम्मीदवारों और पार्टियों के दावों को लेकर उदासीनता का इजहार करते हुए चिंतपूर्णी मंदिर में आए कई श्रद्धालुओं ने सुविधाओं की कमी के साथ मंदिर के निकटवर्ती इलाकों में गंदगी की गंभीर चुनौती पर जनप्रतिनिधियों द्वारा लंबे समय से ध्यान नहीं देने की बातें कहीं।

ऊना के सियासी माहौल में खास बात यह भी दिखी कि ,पार्टियों के उम्मीद पर पूरी तरह से खरा नहीं उतरने के बावजूद उनके चुनाव घोषणापत्र को लेकर लोगों में उत्सुकता और चर्चा दिखी। भाजपा के विजन डाक्यूमेंट के मुकाबले कांग्रेस के लुभावने चुनावी वादों ने सियासत की जमीन पर कांग्रेस की चुनावी उम्मीदों को जहां जिंदा रखा है। कांग्रेस की उम्मीदों को धराशायी करने के लिए भाजपा वीरभद्र सरकार के बीते पांच साल में पूरे नहीं हुए वादों की फेहरिस्त के साथ ऊना ही नहीं हिमाचल की सत्ता की वैतरणी पार करने का हर दांव चल रही।

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