अतीत के आईने से: जब दो महारानियों को बनाया आर्थिक अपराधी, विजयाराजे को खर्च चलाने के लिए बेचनी पड़ी थी संपत्ति

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अमान्य करार दे दिया था। ऐसे में इंदिरा गांधी ने सत्ता में बने रहने के लिए आपातकाल लगा दिया। इंदिरा गांधी के निशाने पर दो महारानियां थीं। जयपुर की राजमाता गायत्री देवी और ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया। दोनों विपक्ष के प्रमुख नेताओं में एक थीं।

By Jagran NewsEdited By: Versha Singh Publish:Thu, 04 Apr 2024 08:41 AM (IST) Updated:Thu, 04 Apr 2024 08:41 AM (IST)
अतीत के आईने से: जब दो महारानियों को बनाया आर्थिक अपराधी, विजयाराजे को खर्च चलाने के लिए बेचनी पड़ी थी संपत्ति
अतीत के आईने से: जब दो महारानियों को बनाया आर्थिक अपराधी

ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 जून, 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अमान्य करार दे दिया था। ऐसे में इंदिरा गांधी ने सत्ता में बने रहने के लिए आपातकाल लगा दिया।

इंदिरा गांधी के निशाने पर दो महारानियां थीं। जयपुर की राजमाता गायत्री देवी और ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया। दोनों विपक्ष के प्रमुख नेताओं में एक थीं।

आपातकाल से पहले ही पड़ने लगे छापे

राजमाता गायत्री देवी को परेशान करने का सिलसिला आपातकाल की घोषणा से पहले ही शुरू हो चुका था। जयुपर राजघराने के हर घर, महल और कार्यालय पर आयकर के छापे पड़ने शुरू हो गए थे। आपातकाल घोषित होने के समय गायत्री देवी की आयु 56 वर्ष थी और उनका बंबई (अब मुंबई) में इलाज चल रहा था।

जब वह 30 जुलाई, 1975 की रात दिल्ली में अपने घर पहुंचीं तो पुलिस ने उन्हें विदेशी विनिमय और स्मगलिंग विरोधी कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया। उनके साथ उनके बेटे कर्नल भवानी सिंह को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया।

उन पर आरोप लगाया गया कि उनके पास विदेश यात्रा से बचे कुछ डालर हैं, जिनका हिसाब उन्होंने सरकार को नहीं दिया है। दोनों को दिल्ली की तिहाड़ जेल भेज दिया गया।

विजयाराजे को खर्च चलाने के लिए बेचनी पड़ी संपत्ति

तीन सितंबर, 1975 को ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया को तिहाड़ जेल लाया गया। उन पर भी आर्थिक अपराध की धारा लगाई गई। उनके बैंक खाते सील कर दिए गए। नौबत यहां तक आ गई कि उन्हें संपत्ति बेचकर या दोस्तों से उधार लेकर अपना खर्च चलाना पड़ा।

उनके लिए दोस्तों से उधार लेना भी इतना आसान नहीं था, क्योंकि जो भी आपातकाल में गिरफ्तार किए गए लोगों की मदद करता, उसपर प्रशासन का कहर टूट पड़ता था।

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