शिरोमणि अकाली दल के दिल्ली में बंटने से भाजपा क्यों हुई चिंतित, पढ़िए- पूरी स्टोरी

भाजपा को लग रहा है कि अकालियों की लड़ाई से कहीं सिख मतदाता उनसे दूर न चले जाएं क्योंकि पंजाब की तरह दिल्ली में भी भाजपा का शिअद बादल के साथ गठबंधन है।

By JP YadavEdited By: Publish:Sun, 06 Oct 2019 11:21 AM (IST) Updated:Sun, 06 Oct 2019 11:21 AM (IST)
शिरोमणि अकाली दल के दिल्ली में बंटने से भाजपा क्यों हुई चिंतित, पढ़िए- पूरी स्टोरी
शिरोमणि अकाली दल के दिल्ली में बंटने से भाजपा क्यों हुई चिंतित, पढ़िए- पूरी स्टोरी

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। Delhi assembly Election 2020: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की तैयारी में जुटी भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में शिरोमणि अकाली दल (शिअद-बादल) के दो फाड़ होने से चुनावी नुकसान का डर सता रहा है। भाजपा को लग रहा है कि अकालियों की लड़ाई से कहीं सिख मतदाता उनसे दूर न चले जाएं, क्योंकि पंजाब की तरह दिल्ली में भी भाजपा का शिअद बादल के साथ गठबंधन है। नगर निगम से लेकर लोकसभा चुनाव तक दोनों पार्टियां मिलकर मैदान में उतरती हैं। एक तरह से सिख वोट के लिए पार्टी अकालियों पर ही निर्भर रहती है। यही कारण है कि पिछले लगभग एक साल से शिअद (बादल) की प्रदेश इकाई में चल रही अंतर्कलह से भाजपा के रणनीतिकारों की चिंता बढ़ा दी है।

जीके अलग पार्टी बनाकर दे रहे हैं अकालियों को चुनौती

शिअद बादल के प्रदेश इकाई में वर्चस्व को लेकर लड़ाई इस कदर बढ़ी की पार्टी दो फाड़ हो गई। भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरने के बाद मनजीत सिंह जीके को दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) की अध्यक्षता गंवाने के बाद पार्टी भी छोड़नी पड़ी थी। अपने ऊपर लगे आरोपों को शिअद बादल के नेताओं की साजिश करार देते हुए उन्होंने जागो नाम से नई पार्टी बना ली है। इसके साथ ही वह दिल्ली में अपने पुराने साथियों को एकजुट करने और संगठन को मजबूत करने में लग गए हैं। माना जा रहा है उनकी इस पहल से सीधा नुकसान शिअद बादल को होगा और इससे भाजपा भी प्रभावित होगी। भाजपा के लिहाजा से इसका असर विधानसभा चुनावों के नतीजों पर भी पड़ सकता है।

भाजपा से गठबंधन के तहत चार सीटों पर लड़ते हैं अकाली

गठबंधन के तहत विधानसभा चुनाव में भाजपा अकालियों को राजौरी गार्डन, हरीनगर, कालकाजी और शाहदरा चार सीटें देती है। इनमें से राजौरी गार्डन और शाहदरा में अकाली नेता भाजपा के चुनाव चिह्न पर मैदान में उतरते हैं। इस समय राजौरी गार्डन से डीएसजीपीसी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा विधायक हैं। वर्ष 2013 में कालकाजी और शाहदरा सीट पर भी अकालियों को जीत मिली थी। 2013 और 2017 के डीएसजीपीसी चुनाव में भी शिअद बादल ने जीत दर्ज की थी। अबतक जो भी चुनावी सफलता मिली है उसमें अकाली एकजुट थे। एकजुटता की वजह से पंजाब विधानसभा में मिली पराजय के बावजूद यहां डीएसजीपीसी चुनाव में पार्टी ने जीत हासिल की थी जिसमें जीके की अहम भूमिका रही थी।

दिल्ली में पार्टी शिअद बादल के साथ मिलकर लड़ती रही है चुनाव

अकालियों की आपसी लड़ाई के बीच आम आदमी पार्टी (aam aadmi party) सिखों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश तेज कर दी है। 2015 के चुनाव में उसने सिखों के दबदबे वाली सीटों पर भी जीत हासिल की थी और फिर से दोहराने की कोशिश शुरू कर दी है। इन बदले हुए हालात में भाजपा नेतृत्व भी सतर्क हो गया है और उसने सिख प्रकोष्ठ के नेताओं को अपनी सक्रियता बढ़ाने का निर्देश दिया है जिससे कि अकालियों की लड़ाई से होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके।

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