Bihar Election: बिहार में चुनाव आयोग की भी बड़ी परीक्षा, ये चुनौतियां हैं सामने
पिछले एक-डेढ़ दशक में चुनाव आयोग ने मत फीसद को बढ़ाने के तमाम प्रयास किए हैं और पूरे देश में इसके कारण बदलाव भी दिखा लेकिन बिहार की स्थिति थोड़ी भिन्न है। जो मतदाता लोकसभा में बड़ी संख्या में वोट करते हैं वह विधानसभा चुनाव में घर बैठ जाते हैं।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। बिहार में होने वाला विधानसभा चुनाव राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग की भी बड़ी परीक्षा लेगा। यूं तो कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए हर संभव एहतियात अपनाए जा रहे हैं, लेकिन अगर वोटरों पर संक्रमण का डर हावी हुआ, तो आयोग के लिए परेशानी बढ़ेगी। मत फीसद इसलिए अहम है, क्योंकि लाख कोशिशों के बावजूद विधानसभा चुनाव में पिछले डेढ़ दशक में यह 60 तक भी नहीं पहुंच पाया है। हालांकि, यही वोटर लोकसभा चुनाव में 60 फीसद के ऊपर ही रहे हैं।
पिछले एक-डेढ़ दशक में चुनाव आयोग ने मत फीसद को बढ़ाने के तमाम प्रयास किए हैं और पूरे देश में इसके कारण बदलाव भी दिखा, लेकिन बिहार की स्थिति थोड़ी भिन्न है। जो मतदाता लोकसभा में बड़ी संख्या में वोट करते हैं वह विधानसभा चुनाव में घर बैठ जाते हैं। जाहिरा तौर पर विधानसभा चुनाव को लेकर उदासीनता रही है।
अगर पिछले दो-तीन दशक के आंकड़ों को देखें, तो लोकसभा चुनाव में वर्ष 2004 और 2009 को छोड़कर लगभग हर बार 60 फीसद से ज्यादा मतदाता बाहर निकले, लेकिन इसी काल में हुए विधानसभा चुनावों में 60 फीसद का आंकड़ा सिर्फ तीन बार छुआ और वह भी लालू प्रसाद के काल में 1990 से वर्ष 2000 तक। बाद में यह आंकड़ा, तब भी नहीं आया जब लालू के जंगल राज के खिलाफ भाजपा और जदयू ने हाथ मिलाया। 2015 में भी नहीं जब राजद और जदयू का गठबंधन हुआ था। आश्चर्य की बात है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में 66 फीसद से ज्यादा वोट पड़े थे और 2019 में 67 फीसद।
स्पष्ट है कि राजनीतिक दलों के नारों और चुनाव आयोग की कवायद के बावजूद बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर जनता में उदासीनता रहती है। इस बार स्थिति और अलग है। कोरोना संक्रमण का डर भी है। चुनाव आयोग ने मतदान केंद्रों की संख्या बढ़ा दी है। बुजुर्गो के लिए पोस्टल बैलेट की भी व्यवस्था कर दी है। सैनिटाइजर से लेकर पीपीई किट तक सबका इंतजाम है, लेकिन डर भारी पड़ा तो मतदान पर बड़ा असर दिखेगा।