असम में चुनाव के दौरान नामघरों पर भाजपा ने लगाया बड़ा दांव, जानिए क्या है पार्टी की खास रणनीति

माना जाता है कि पूरे असम में 50 हजार से ज्यादा नामघर हैं और इनसे प्रभावित होने वालों की संख्या लाखों में है। समय के साथ-साथ उपेक्षा का शिकार होते जाने के कारण इन नामघरों की स्थिति दयनीय हो गई थी।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Publish:Sat, 27 Mar 2021 07:30 PM (IST) Updated:Sat, 27 Mar 2021 07:30 PM (IST)
असम में चुनाव के दौरान नामघरों पर भाजपा ने लगाया बड़ा दांव, जानिए क्या है पार्टी की खास रणनीति
नामघरों के जीर्णोद्धार के लिए सरकार दे रही है ढाई-ढाई लाख

नीलू रंजन, गुवाहाटी। असम विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नामघरों पर बड़ा दांव लगाया है। पिछले 500 वर्षो से असम के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र में रहे नामघरों के लिए सर्बानंद सोनोवाल सरकार ने ढाई-ढाई लाख रुपये की सहायता जारी की है। माना जा रहा है कि इन नामघरों से जुड़े परिवार चुनाव में भाजपा के पक्ष में जा सकते हैं। पांच शताब्दी पहले शंकरदेव ने असम में धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक केंद्र के रूप में नामघरों की शुरुआत की थी। इसके बाद ये नामघर असम की सांस्कृतिक चेतना के साथ एकाकार हो गए। हालत यह है असम के हर गांव में नामघर है और शहरों के मुहल्ले भी इससे अछूते नहीं हैं।

माना जाता है कि पूरे असम में 50 हजार से ज्यादा नामघर हैं और इनसे प्रभावित होने वालों की संख्या लाखों में है। समय के साथ-साथ उपेक्षा का शिकार होते जाने के कारण इन नामघरों की स्थिति दयनीय हो गई थी। किसी भी सरकार ने इन नामघरों की सुध नहीं ली और कई तो अवैध कब्जे के शिकार होते चले गए।

पिछले साल नामघरों के लिए ढाई-ढाई लाख रुपये भी किए गए जारी

पिछले साल भाजपा सरकार ने इन नामघरों को अतिक्रमण से मुक्त कराकर उनके पुनर्निर्माण का फैसला किया गया। पिछले साल अगस्त में 8,756 नामघरों के लिए ढाई-ढाई लाख रुपये जारी भी कर दिए गए। अन्य नामघरों की पहचान की जा रही है और यदि भाजपा की सरकार दोबारा सत्ता में आई तो उनका भी जीर्णोद्धार कर सकती है। भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्य के वित्त मंत्री हिमंता बिस्व सरमा कहते हैं कि भाजपा नामघरों को पुनर्जीवित करने के लिए संकल्पबद्ध है और इसके लिए पैसे की कमी नहीं होने दी जाएगी ।

क्या होता है नामघर

नामघर में एक बड़ा हॉल होता है। यहां कोई मूर्ति नहीं होती है। यहां शंकरदेव द्वारा लिखा भागवत रखा होता है। वैष्णव परंपरा के संत शंकरदेव ने नामघरों में भजन-कीर्तन, सांस्कृतिक आयोजन और आसपास के लोगों के बीच शैक्षिक गतिविधियों की शुरुआत की। असमी लेखक अंकुर सैकिया कहते हैं कि नामघरों का पुनर्निर्माण कर और शंकरदेव की परंपरा को पुनर्जीवित कर भाजपा अहोम संस्कृति के रक्षक के रूप में सामने आई है। उनके अनुसार लंबे समय से सांस्कृतिक हमले झेल रही और उसके प्रतिकार के लिए हिंसा तक को अपनाने वाले असम के लोगों का भाजपा को समर्थन मिलना तय है। भाजपा को इसका चुनावी लाभ भी मिल सकता है।

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