बेलगाम स्वामी

सुब्रमण्यम स्वामी ने जिस तरह मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम को हटाने की मांग कर डाली उससे भाजपा के साथ-साथ मोदी सरकार की भी किरकिरी हुई है। उन्हें बयान देने से रोका जाए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 23 Jun 2016 02:20 AM (IST) Updated:Thu, 23 Jun 2016 02:29 AM (IST)
बेलगाम स्वामी

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन पर हमले करते रहने के बाद सुब्रमण्यम स्वामी ने जिस तरह मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम पर निशाना साधा और साथ ही उन्हें हटाने की मांग भी कर डाली उससे भाजपा के साथ-साथ मोदी सरकार की भी किरकिरी हुई है। इसमें संदेह है कि सुब्रमण्यम स्वामी के बयानों को उनके निजी बयान करार देने भर से बात बनने वाली है। महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों के प्रति स्वामी के हमलावर रुख को आंतरिक लोकतंत्र से भी नहीं ढका जा सकता, क्योंकि उनके बयान सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसके साथ ही वह विपक्षी दलों और आलोचकों को चुभते हुए सवाल उठाने का मौका भी दे रहे हैं। स्वामी पर लगाम लगाना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि उनकी सूची में दो दर्जन से अधिक ऐसे नाम बताए जा रहे हैं जिनके खिलाफ वह अभियान छेडऩे का इरादा रखते हैं। इसकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती कि रघुराम राजन को निशाने पर लेने के बाद उन्होंने दिल्ली के उप राज्यपाल के खिलाफ टिप्पणी की और अब मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के पीछे पड़ गए। पता नहीं उनकी सूची में और कौन-कौन है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इनमें कई महत्वपूर्ण पदों पर हैं। वे उनका प्रतिवाद करने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में यह और आवश्यक हो जाता है कि उन्हें ऐसे लोगों के बारे में सार्वजनिक तौर पर उलटे-सीधे बयान देने से रोका जाए। यदि उन पर लगाम नहीं लगी तो फिर अन्य छोटे नेताओं को भी काबू में रखना मुश्किल होगा। भाजपा नेतृत्व इससे अपरिचित नहीं हो सकता कि उसके बड़बोले नेताओं के बेतुके बयानों से पार्टी के साथ-साथ सरकार को कितनी बार शर्मिंदगी उठानी पड़ी है।

यह ठीक है कि सुब्रमण्यम स्वामी बेलगाम बयानबाजी के लिए ही अधिक जाने जाते हैं, लेकिन उन्हें यह बताया ही जाना चाहिए कि वह सत्तारूढ़ दल के वरिष्ठ सांसद के तौर पर वैसा आचरण नहीं कर सकते जैसा विपक्षी दल के नेता के रूप में करते रहे हैं। बेबाकी का यह मतलब नहीं हो सकता कि कोई अनियंत्रित मिसाइल का रूप धारण कर ले। उनके संदर्भ में एक मुश्किल यह भी है कि वह व्यक्ति विशेष की नीतियों के बजाय उस व्यक्ति की ही आलोचना करने लग जाते हैं। ऐसा लगता है कि उन्हें विदेश में रहे और वहां कार्य किए व्यक्तियों से कुछ ज्यादा ही एलर्जी है। अच्छा हो कि कोई उन्हें यह बताए कि वह खुद भी हार्वर्ड में पढ़ा चुके हैं। सुब्रमण्यम स्वामी जिस तरह रघुराम राजन के बाद अरविंद सुब्रमण्यम के पीछे पड़े उसकी विदेश में भी प्रतिकूल प्रतिक्रिया हो सकती है, क्योंकि आज दुनिया भारत पर निगाह लगाए हुए है। स्पष्ट है कि केवल यह जाहिर करने से काम नहीं चलने वाला कि स्वामी तो बिना आगा-पीछे सोचे किसी के खिलाफ कुछ भी बोलते ही रहते हैं। भाजपा नेतृत्व इस बात को भी ओझल नहीं कर सकता कि सुब्रमण्यम स्वामी वित्त मंत्रालय के तौर-तरीकों के प्रति कुछ ज्यादा ही तीखे तेवर अपनाए हुए हैं। क्या वह सरकार में अपने लिए कोई भूमिका चाह रहे हैं? पता नहीं सच क्या है, लेकिन उन्हें यह स्पष्ट संदेश देने में ही भलाई है कि उनका मौजूदा रुख-रवैया किसी के लिए भी ठीक नहीं-न पार्टी के लिए, न सरकार के लिए और न ही खुद उनके लिए।

[ मुख्य संपादकीय ]

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