बुलेट ट्रेन पर बेजा तर्क

उच्च तकनीक से लैस बुलेट ट्रेन परियोजना का भारत में आगमन एक नई तकनीक का प्रवेश।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 15 Sep 2017 02:35 AM (IST) Updated:Fri, 15 Sep 2017 04:32 AM (IST)
बुलेट ट्रेन पर बेजा तर्क
बुलेट ट्रेन पर बेजा तर्क

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबी की भारत यात्रा दोनों देशों के बीच आर्थिक-व्यापारिक सहयोग के साथ वैश्विक मामलों में आपसी भरोसे को भी बढ़ाने वाली साबित होती दिख रही है। हालांकि भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने जापानी अतिथि के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की एक मजबूत आधारशिला रखी, लेकिन यह स्वाभाविक ही है कि सबसे ज्यादा चर्चा अहमदाबाद और मुंबई के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन से जुड़ी परियोजना की हो रही है। उच्च तकनीक से लैस बुलेट ट्रेन परियोजना का भारत में आगमन एक नई तकनीक का प्रवेश मात्र नहीं, बल्कि आधारभूत ढांचे को एक नया आयाम देने की पहल भी है। यह पहले से तय था कि बुलेट ट्रेन संबंधी परियोजना को गति देने के साथ ही उसके विरोध में कुछ अजब-गजब बातें सुनने को मिलेंगी, लेकिन इसकी उम्मीद नहीं की जाती थी कि कांग्रेस किंतु-परंतु के साथ यह साबित करती भी नजर आएगी कि यह परियोजना तो अमीरों के लिए है। कम से कम कांग्रेस के नेताओं को तो यह अच्छी तरह पता होना चाहिए कि देश में कंप्यूटर के चलन को बढ़ावा देने के वक्त कैसे बेढब तर्क दिए गए थे? इसी तरह उन्हें यह भी याद होना चाहिए कि दिल्ली में मेट्रो परियोजना शुरू होते समय किस तरह यह कहा गया था कि इससे तो केवल अमीरों को सुविधा होगी और बेचारे गरीब लोग कहां जाएंगे? यह सही है कि रेल सेवा को बेहतर और सुरक्षित बनाने के काम को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि ऐसा नहीं किया जा रहा है?
यह विचित्र है कि अपने देश में जब भी कोई नया और बड़ा काम शुरू होता है तो सबसे पहली कोशिश उसे अमीर समर्थक और गरीब विरोधी ठहराने की होती है। बहुत दिन नहीं हुए जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी यह कहते हुए पाए गए थे कि सड़कों पर तो अमीर लोगों की कारें चलती हैं। वह सूट-बूट के भी बैरी बन बैठे हैैं और इस क्रम में यहां तक कह चुके हैं कि देश को कुर्ता-पायजामा और चप्पल वाली सरकार चाहिए। यह और कुछ नहीं, देश की जनता को गरीब के रूप में ही देखते रहने की प्रवृत्ति है। दुर्भाग्य से ऐसे नजरिये से अन्य अनेक राजनीतिक दल भी ग्रस्त हैं। वे न केवल गरीबी का महिमामंडन करते हैं, बल्कि जाने-अनजाने यह भी प्रतीति कराते हैं कि अमीर होना और सुविधायुक्त जीवन जीना बुरी बात है। दरअसल ऐसे ही नकारात्मक और दूषित चिंतन के कारण अमीरों को आमतौर पर या तो गरीबों के विरोधी के रूप में देखा जाता है या फिर छल-कपट करने वालों के रूप में। यह भी गरीबी के महिमामंडन की ही आदत का नतीजा है कि कभी ऐसा कुछ सुनने को नहीं मिलता कि आम लोगों को अमीर बनाने और उन्हें बेहतर से बेहतर सुविधाओं से लैस करने की जरूरत है। हमारे औसत राजनीतिक दल गरीबी हटाओ की बातें तो खूब करते हैैं, लेकिन उनकी ओर से अमीरी लाओ जैसे नारे कभी सुनने को नहीं मिलते। बेहतर हो कि ऐसे निर्धनता प्रेमी राजनीतिक दल यह समझें कि जैसे अच्छे प्राथमिक विद्यालयों के साथ आइआइटी-आइआइएम सरीखे शिक्षा संस्थानों की जरूरत है वैसे ही आवागमन के मौजूदा साधनों के साथ ही बेहतर साधनों की भी।

[ मुख्य संपादकीय ]

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