आतंक समर्थक पत्थरबाज

आतंकवादियों से लोहा ले रहे सुरक्षा बलों एवं पुलिस के 50 से अधिक जवान पत्थरबाजी के चलते घायल हो गए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 29 Mar 2017 01:20 AM (IST) Updated:Wed, 29 Mar 2017 01:25 AM (IST)
आतंक समर्थक पत्थरबाज
आतंक समर्थक पत्थरबाज

कश्मीर में आतंकियों से मुठभेड़ और उस दौरान भीड़ की नारेबाजी एवं पत्थरबाजी नई बात नहीं, लेकिन यह सहज-सामान्य नहीं कि मंगलवार को बड़गाम में आतंकवादियों से लोहा ले रहे सुरक्षा बलों एवं पुलिस के 50 से अधिक जवान पत्थरबाजी के चलते घायल हो गए। शायद पत्थरबाजों के इसी उपद्रव के कारण आतंकियों से मुठभेड़ नौै घंटे से ज्यादा लंबी खिंची और उस दौरान तीन पत्थरबाज भी मारे गए। कश्मीर में पत्थरबाजों का बढ़ता दुस्साहस गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए, लेकिन इसका भी कोई औचित्य नहीं कि चिंता जताने के नाम पर सेना और सुरक्षा बलों को नए सिरे से संयम की सीख दी जाए। नि:संदेह सेना एवं सुरक्षा बलों को हर संभव संयम का परिचय देना ही चाहिए, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं हो सकता कि उनसे यह अपेक्षा की जाए कि वे आतंकियों का मुकाबला करते समय देशविरोधी नारेबाजी के साथ-साथ जानलेवा पत्थरबाजी भी सहन करते रहें। मुश्किल यह है कि हर कोई सेना एवं सुरक्षा बलों को ही संयम की सीख देना जरूरी समझ रहा है। बीते दिवस सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार से यह कहा कि वह कश्मीर में पैलेट गन यानी छर्रे वाली बंदूक के विकल्प पर विचार करे ताकि किसी पक्ष को नुकसान न हो। यह सुझाव उस याचिका की सुनवाई करते समय दिया गया जिसमें सेना की ओर से इस्तेमाल की जाने वाली पैलेट गन पर रोक लगाने की मांग की गई थी। यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट केवल सुझाव देने तक ही सीमित रहा, क्योंकि यह तय करना किसी अदालत का काम नहीं और न हो सकता है कि भीषण छद्म युद्ध से जूझ रहे जवान किस हथियार का इस्तेमाल किस तरह करें?
हर किसी को इससे परिचित होना चाहिए कि कश्मीर में पैलेट गन का इस्तेमाल इसलिए करना पड़ रहा, क्योंकि हिंसक भीड़ आंसू गैस के गोलों से काबू में नहीं आ रही। यह हिंसक भीड़ सुरक्षा बलों के तलाशी अभियान के दौरान पथराव करके ऐसे हालात पैदा करने की कोशिश करती है ताकि आतंकियों को बच निकलने का मौका मिल सके। हाल में पत्थरबाजों के खलल के चलते कई आतंकी सुरक्षा बलों के घेरे से बच निकलने में सफल भी हुए हैं। कई बार पत्थरबाजों के उपद्रव के कारण ऐसी भी स्थिति बनी कि सेना एवं सुरक्षा बलों को आतंकियों की तलाशी का अभियान स्थगित करना पड़ा। कुछ मामलों में तो पत्थरबाजों की हिंसक भीड़ ने सेना के उन वाहनों का रास्ता रोकने की भी कोशिश की जिसमें घायल सैनिकों को मुठभेड़ स्थल से बाहर ले जाया जा रहा था। ऐसे विषम हालत के बावजूद संयम की सीख केवल सुरक्षा बलों को देना एक तरह से हिंसक भीड़ की हिमायत करना है। यह समझना कठिन है कि पत्थरबाजों और उनके हितैषियों को यह हिदायत देने से क्यों बचा जा रहा वे सुरक्षा बलों के काम में अड़ंगे डालना और उन पर पथराव करने से बाज आएं? क्या यह अच्छा नहीं होेता कि सुप्रीम कोर्ट पैलेट गन का इस्तेमाल रोकने की मांग करने वालों को ऐसा कोई सुझाव देता कि वे आजादी समर्थक कश्मीरियों को विरोध के लिए ऐसा तरीका अपनाने के लिए समझाएं जिससे किसी पक्ष को नुकसान न हो?

[ मुख्य संपादकीय ]

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