यमुना एक्सप्रेस वे पर जानलेवा सड़क हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत

आम तौर पर हर बड़े सड़क हादसे के बाद उन्हें रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर चर्चा होती है लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ पहले की ही तरह होता हुआ दिखाई देता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 08 Jul 2019 09:01 PM (IST) Updated:Tue, 09 Jul 2019 01:00 AM (IST)
यमुना एक्सप्रेस वे पर जानलेवा सड़क हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत
यमुना एक्सप्रेस वे पर जानलेवा सड़क हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत

यह गंभीर चिंता का विषय बनना चाहिए कि देश की राजधानी से सटे ग्रेटर नोएडा को आगरा से जोड़ने वाला यमुना एक्सप्रेस वे एक और भीषण हादसे का गवाह बना। इस बार उत्तर प्रदेश रोडवेज की एक बस बेकाबू होकर गहरे नाले में जा गिरी। इस हादसे में करीब तीस यात्रियों की जान चली गई। इस हादसे पर प्रधानमंत्री समेत अन्य अनेक प्रमुख लोगों ने शोक व्यक्त किया है, लेकिन क्या इन शोक संवेदनाओं से हालात बदलेंगे और जानलेवा सड़क हादसे थमेंगे? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि मार्ग दुर्घटनाओं और उनमें मरने एवं घायल होने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि चंद दिनों पहले जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में एक मिनी बस के खाई में गिरने से 35 लोग काल के गाल में समा गए थे। इसके थोड़े दिन पहले हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में एक बस के नाले में गिर जाने से 44 लोगों की मौत हो गई थी। करीब एक पखवाड़े के अंदर देश के विभिन्न हिस्सों में एक के बाद एक बस दुर्घटनाओं में सौ से अधिक लोगों की मौत यही बताती है कि अपने देश के रास्ते कितने अधिक जोखिम भरे हो गए हैं।

किश्तवाड़ और कुल्लू के मामले में यह सामने आया था कि दुर्घटना का शिकार हुई बसों में क्षमता से अधिक यात्री सवार थे। यमुना एक्सप्रेस वे पर हुए हादसे का कारण बस ड्राइवर को झपकी आना और साथ ही बस की रफ्तार कहीं तेज होना बताया जा रहा है। तेज रफ्तार वाहनों और लापरवाही के कारण यमुना एक्सप्रेस वे लगातार गंभीर दुर्घटनाओं से दो-चार हो रहा है, लेकिन ऐसा लगता है कि यह मान लिया गया है कि एक्सप्रेस वे पर तो दुर्घटनाएं होना लाजमी ही है। अगर ऐसा कुछ नहीं है तो फिर मार्ग दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय क्यों नहीं किए जा रहे हैं?

यह ठीक नहीं कि देश में जैसे-जैसे एक्सप्रेस वे तैयार होते जा रहे हैं वैसे-वैसे उनमें दुर्घटनाओं का सिलसिला भी तेज होता जा रहा है। नि:संदेह बेहतर सड़कें समय की मांग हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे भीषण दुर्घटनाओं का गवाह बनती रहें। जिस तरह विभिन्न एक्सप्रेस वे पर दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं उसी तरह देश के पर्वतीय इलाकों के रास्ते भी।

आम तौर पर हर बड़े सड़क हादसे के बाद उन्हें रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर चर्चा होती है, लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ पहले की ही तरह होता हुआ दिखाई देता है। यही कारण है कि वर्ष दर वर्ष मार्ग दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। अब तो यह संख्या सालाना डेढ़ लाख मौतों के आंकड़े को पार करने वाली है।

मार्ग दुर्घटनाओं में मरने अथवा अपंग होने वाले लोगों की बढ़ती संख्या केवल संबंधित परिवारों के लिए ही आफत नहीं बनती, बल्कि वह समाज और देश को भी कमजोर करने का काम करती है, क्योंकि सड़क हादसों में मरने वाले ज्यादातर लोग अपने घर-परिवार के कमाऊ सदस्य होते हैं। बेहतर हो कि हमारे नीति-नियंता यह समझें कि जानलेवा सड़क हादसे को रोकने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत है।

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