आर्थिक सुस्ती पर सरकार दीर्घकालिक असर वाले कदमों के साथ तात्कालिक प्रभाव वाले कदम भी उठाए

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बीते दो माह में सरकार की ओर से छोटे-बड़े करीब दो दर्जन कदम उठाए जा चुके हैं। इनमें सबसे बड़ा कदम कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का था।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Fri, 06 Dec 2019 12:29 AM (IST) Updated:Fri, 06 Dec 2019 12:32 AM (IST)
आर्थिक सुस्ती पर सरकार दीर्घकालिक असर वाले कदमों के साथ तात्कालिक प्रभाव वाले कदम भी उठाए
आर्थिक सुस्ती पर सरकार दीर्घकालिक असर वाले कदमों के साथ तात्कालिक प्रभाव वाले कदम भी उठाए

रिजर्व बैंक ने ब्याज दर घटाने के सिलसिले पर विराम लगाते हुए जिस तरह चालू वित्त वर्ष के लिए विकास दर का अनुमान घटाया उससे यही संकेत मिल रहा है कि आर्थिक सुस्ती दूर करने में कठिनाई आ रही है। शायद यही कारण है कि अर्थव्यवस्था की सेहत को लेकर संसद के भीतर और बाहर चिंता जताने का सिलसिला तेज हो रहा है।

इसे देखते हुए सरकार को ऐसे और कदम उठाने के लिए आगे आना चाहिए जिससे आर्थिक सुस्ती टूटे। ऐसा करते हुए उसे यह भी देखना होगा कि उसकी ओर से आर्थिक सुस्ती को दूर करने के लिए अभी तक जो कदम उठाए गए हैं वे जमीन पर प्रभावी साबित हो रहे हैं या नहीं?

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बीते दो माह में सरकार की ओर से छोटे-बड़े करीब दो दर्जन कदम उठाए जा चुके हैं। इनमें सबसे बड़ा कदम कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का था। यह सही है कि इन कदमों का असर दिखने में समय लगेगा, लेकिन इसका आकलन तो किया ही जाना चाहिए कि हालात बदल रहे हैं या नहीं?

ऐसा आकलन इसलिए किया जाना चाहिए, क्योंकि उद्योग-व्यापार जगत के लोग अभी भी उत्साहित नहीं दिख रहे हैं। वे तरह-तरह की शिकायतों से लैस दिखते हैं। जब किसी भी क्षेत्र के लोगों के शिकायती स्वर बढ़ जाते हैं तब यही माहौल बनता है कि कहीं कुछ ठीक नहीं हो रहा है। कई बार यह माहौल यथार्थ से भिन्न होता है, लेकिन वह उसे ढकने का काम करता है।

बेहतर हो कि सरकार उद्योग-व्यापार जगत को भरोसे में लेने के कदम उठाते समय यह ध्यान रखे कि भरोसे की बहाली तभी होगी जब कारोबारियों की चिंताओं और आशंकाओं को सचमुच दूर किया जाएगा।

इससे इन्कार नहीं कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लगातार यह भरोसा दिला रही हैं कि आर्थिक सुस्ती दूर करने के लिए जो कुछ भी संभव है वह सब किया जाएगा, लेकिन तथ्य यही है कि कॉरपोरेट टैक्स में कटौती के बाद से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है जिसे क्रांतिकारी या फिर तात्कालिक असर वाला कहा जा सके।

उचित यह होगा कि सरकार दीर्घकालिक असर वाले कदमों के साथ तात्कालिक प्रभाव वाले कदम भी उठाए। इसी क्रम में सरकार को यह भी देखना होगा कि उद्योग-व्यापार जगत की जीएसटी संबंधी परेशानियां अनिवार्य रूप से दूर हों।

इसका कोई औचित्य नहीं कि इस टैक्स व्यवस्था की जटिलताएं अभी भी उद्योग-व्यापार जगत को परेशान करें। नि:संदेह यह भी समय की मांग है कि सरकार श्रम कानूनों में बदलाव की दिशा में आगे बढ़े। इसी के साथ उद्योग जगत को भी यह समझना होगा कि उसे प्रतिस्पद्र्धी बनने की जरूरत है।

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