सरकार के साठ दिन

नशे की समस्या के समूल खत्म होने में न केवल काफी समय लग सकता है बल्कि यह काफी असंभव भी लगता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 17 May 2017 02:15 AM (IST) Updated:Wed, 17 May 2017 02:15 AM (IST)
सरकार के साठ दिन
सरकार के साठ दिन

दस साल के बाद सत्ता में आई कांग्रेस की सरकार के दो माह पूरे हो गए हैैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह व उनकी टीम से पंजाब को काफी उम्मीदें हैैं, यह उन्हें मिले जनादेश से ही स्पष्ट हो गया था। कैप्टन सरकार ने आते ही कुछ ऐसे निर्णय लिए जो नजीर बन गए- जैसे कि वीआइपी कल्चर को खत्म करने के लिए विशेषकर वाहनों पर लाल बत्ती के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध। पंजाब के बाद कुछ अन्य राज्यों व अंतत: केंद्र में मोदी सरकार ने भी लाल बत्ती के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए भी सरकार ने कड़ा रुख दिखाया है। भ्रष्टाचार के अड्डे माने जाते रहे कई दफ्तरों के कामकाज में सुधार के एलान किए। कुछ फैसलों पर विभिन्न वर्गों ने भौंहें भी तरेरी हैैं तो कुछ का स्वागत भी हुआ है। सबसे बड़ा मुद्दा नशे के खात्मे का था और कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि एक माह में राज्य में नशे की समस्या को खत्म कर देंगे। हालांकि इस दिशा में तेजी से प्रयास तो हुए हैैं लेकिन सच यह है कि नशे की समस्या के समूल खत्म होने में न केवल काफी समय लग सकता है बल्कि यह काफी असंभव भी लगता है। हां, इतना जरूर है कि इच्छाशक्ति हो तो काफी हद तक इसे कम किया जा सकता है। सरकार ने इसके लिए एसटीएफ का गठन किया है और उसके दावों पर विश्वास करें तो काफी धरपकड़ भी हुई है लेकिन कहना न होगा कि अभी इस दिशा में काफी मशक्कत की जरूरत है। बड़ी मछलियों को पकडऩा जरूरी होगा। किसानों की आत्महत्या के मामले में भी ऐसी ही स्थिति है। एक अनुमान के मुताबिक इन दो माह में करीब तीस किसानों ने खुदकशी की है। नशा व किसान खुदकशी के मुद्दों को कांग्रेस ने चुनावों के दौरान भुनाया था, लिहाजा अब उससे अपेक्षा है कि वह इन समस्याओं का हल भी निकाले। तीसरा मोर्चा कानून-व्यवस्था का है जिस पर कांग्रेस सरकार कठघरे में खड़ी की जा रही है। इन दो माह में कई ऐसी आपराधिक घटनाएं हुई हैैं जिनमें कांंग्रेस कार्यकर्ताओं या किसी कांग्रेस नेता के समर्थकों पर संलिप्तता के आरोप लगे हों। आर्थिक मोर्चे पर भी सरकार को जूझना होगा और राजस्व पूर्ति के लिए कारगर कदम उठाने होंगे। एसवाईएल जैसे मुद्दों का हल निकालना भी सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]

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