संकट में सुरक्षा

चलती कार को रोककर हत्या और सामूहिक दुष्कर्म की खौफनाक वारदात ने उत्तर प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था को चुनौती दी है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 26 May 2017 12:33 AM (IST) Updated:Fri, 26 May 2017 12:33 AM (IST)
संकट में सुरक्षा
संकट में सुरक्षा

यमुना एक्सप्रेस वे के पास चलती कार को रोककर हत्या और सामूहिक दुष्कर्म की खौफनाक वारदात ने उत्तर प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था के सवाल को इसलिए कहीं अधिक गंभीर बना दिया है, क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश पहले से ही अप्रिय कारणों से चर्चा में है। योगी सरकार इसकी अनदेखी नहीं कर सकती एक ओर सहारनपुर की जातीय हिंसा उसके लिए सिरदर्द बनी हुई है तो दूसरी ओर कानून एवं व्यवस्था को चुनौती देने वाली घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। सुशासन के दावे को मुंह चिढ़ाने वाली घटनाएं तब हो रही हैं जब राज्य सरकार लगातार इस पर जोर दे रही है कि कानून के खिलाफ काम करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। एक्सप्रेस वे के निकट हत्या और सामूहिक दुष्कर्म की घटना ने करीब एक साल पहले बुलंदशहर में घटी इसी तरह की वारदात की याद दिलाने के साथ ही आम लोगों में सिहरन पैदा करने का काम किया है। इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन के साथ राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाना स्वाभाविक है। इस नतीजे पर पहुंचने के पर्याप्त कारण हैं कि पुलिस ने बुलंदशहर की घटना से जरूरी सबक सीखने से इन्कार किया। आखिर वह कथित घुमंतू गिरोहों की कमर तोड़ने के साथ अपराध बहुल इलाकों की निगरानी का बुनियादी काम क्यों नहीं कर सकी? कहीं ऐसा तो नहीं कि बुलंदशहर की घटना के बाद जो दावे किए गए थे वे आधे-अधूरे थे? इन सवालों का जवाब जो भी हो, यह ठीक नहीं कि उत्तर प्रदेश में कानून एवं व्यवस्था की साख एक ऐसे समय संकट में है जब मोदी सरकार अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे होने को लेकर जश्न मना रही है।
यह सही है कि कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है, लेकिन केंद्र सरकार को यह तो देखना ही होगा कि राज्य सरकारें इस मोर्चे पर जरूरी कदम उठा रही हैं या नहीं? कम से कम भाजपा शासित राज्य सरकारों के मामले में तो मोदी सरकार को यह सुनिश्चित करना ही चाहिए कि वे कानून एवं व्यवस्था को लेकर पर्याप्त सजगता का परिचय दें। यह महज दुर्योग नहीं हो सकता कि उत्तर प्रदेश के साथ झारखंड सरकार भी इन दिनों कानून एवं व्यवस्था को लेकर गंभीर सवालों से दो-चार है। इसमें दो राय नहीं कि मोदी सरकार अपने तीन साल के कार्यकाल की अनेक उपलब्धियां गिनाने की स्थिति में हैं, लेकिन पुलिस सुधार के मामले में वह कोई ठोस दावा शायद ही कर सके। समझना कठिन है कि पुलिस सुधार संबंधी सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों पर अमल के मामले में सभी राज्य सरकारें हीलाहवाली का परिचय क्यों दे रही हैं? नि:संदेह यह भी एक सवाल है कि पुलिस सुधार केंद्र सरकार के एजेंडे से बाहर क्यों है? यदि राज्य सरकारें कानून एवं व्यवस्था में सुधार को पहली प्राथमिकता नहीं देतीं तो फिर सुशासन के उनके दावों को चुनौती मिलती ही रहेगी। भले ही योगी सरकार को अभी सत्ता संभाले दो माह ही हुए हों, लेकिन इसकी तह तक जाना उसका ही काम है कि तमाम कोशिशों के बाद भी हालात सुधर क्यों नहीं रहे हैं? यदि अराजक तत्वों को अभी भी किसी तरह का राजनीतिक शह-समर्थन मिल रहा तो उन्हें बेनकाब करना उसकी ही जिम्मेदारी है।

[ मुख्य संपादकीय ]

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