हिंसा की पुनरावृत्ति

नगर निगम, नगर परिषद व नगर पंचायतों के चुनावों में जमकर हिंसा हुई। सरकार, चुनाव आयोग व राजनीतिक दलों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 18 Dec 2017 06:14 AM (IST) Updated:Mon, 18 Dec 2017 06:14 AM (IST)
हिंसा की पुनरावृत्ति
हिंसा की पुनरावृत्ति

एक बार फिर नगर निगम, नगर परिषद व नगर पंचायतों के चुनावों में जमकर हिंसा हुई। सरकार, चुनाव आयोग व राजनीतिक दलों को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

आखिर वही हुआ जिसका अंदेशा जताया जा रहा था। नगर निगमों, नगर परिषदों व नगर पंचायतों के चुनाव में रविवार को मतदान के दौरान जमकर हिंसक घटनाएं हुईं और इसमें कई लोग घायल हो गए। हिंसा की जितनी घटनाएं इस चुनाव में हुई हैं, उतनी तो इसी वर्ष विधानसभा चुनाव के लिए हुए मतदान के दौरान भी देखने को नहीं मिली थीं। ऐसा तब हुआ जबकि सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह चाक चौबंद होने की बात कही जा रही थी। कुछ जगह तो गोलियां तक चलाई गईं तो कई जगह तेजधार हथियारों से हमले किए गए। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के गृह जिले पटियाला की हालत सबसे बुरी रही। यहां वार्ड नंबर 60 में गोलियां चलीं व कई अन्य वार्डों में बूथ तोड़े गए, मारपीट की गई। पटियाला व जालंधर में भी कई जगह हिंसा की घटनाएं सामने आईं। निस्संदेह यह लोकतंत्र की ऐसी तस्वीर है, जिसे कोई भी पसंद नहीं करेगा। इस तस्वीर को बदलने की कोशिशें भी लगातार होती रहती हैं, लेकिन इस चुनाव में जो तस्वीर सामने आई है, उससे यही प्रतीत होता है कि अभी भी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष है। हालांकि इस बीच अच्छी बात यह रही कि लोग मतदान के लिए घरों से निकले और पूरे उत्साह के साथ लोकतंत्र के इस उत्सव में भाग लिया। यही कारण है कि इस बार इन चुनावों में संतोषजनक मतदान हुआ। निश्चित रूप से इसके लिए चुनाव आयोग, पुलिस व सुरक्षा बलों की भी सराहना की जानी चाहिए। न सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था चौकस रखने का प्रयास किया गया, अपितु जनता को मतदान के लिए जागरूक व प्रेरित करने के लिए भी इस बार चुनाव आयोग ने हरसंभव प्रयास किए। इसके बावजूद जो कमियां इस चुनाव में रह गईं, उस पर मंथन किए जाने की आवश्यकता है। चुनाव आयोग व सरकार को मिल बैठकर इस समस्या के स्थायी समाधान के बारे में सोचना चाहिए। आखिर क्यों प्रत्याशी व उनके समर्थक हर नियम-कानून को ताक पर रखकर हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। सरकार व चुनाव आयोग तो अपना काम करेंगे ही, साथ ही राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे अपने प्रत्याशियों व समर्थकों को संयम बरतने की सीख दें, ताकि भविष्य में लोकतंत्र के पर्व को उल्लास के साथ मनाया जा सके।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]

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