उम्मीद की किरणें

पहली बार मेडिकल कॉलेजों में 409 शिक्षिकाएं नियुक्त होंगी। देश में बिहार की गिनती गरीब राज्यों में ऊपर से की जाती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 01 Jan 2018 05:29 AM (IST) Updated:Mon, 01 Jan 2018 05:29 AM (IST)
उम्मीद की किरणें
उम्मीद की किरणें

बड़े अचरज की बात है कि सबसे ज्यादा संवेदनशील मेडिकल की पढ़ाई में भी शिक्षकों की बड़ी संख्या में कमी बनी हुई है। हालांकि निरंतर विकास की राह तय कर रही नीतीश सरकार का चिकित्सा क्षेत्र पर अब खास ध्यान है जिससे नए साल में सूबे के आधे से ज्यादा सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रिक्त पड़े शिक्षकों के पदों को भरने की उम्मीद धरातल पर उतरती दिखाई दे रही है। दरअसल चिकित्सा एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें छात्र कोचिंग और ट्यूशन के सहारे पढ़ाई की नैया को पार नहीं लगा सकता। जुगाड़-जुगत से एमबीबीएस की डिग्री वह हासिल कर भी लेता है तो इंटर्न के दौरान उसकी पोल-पट्टी खुलनी तय है, क्योंकि किसी बीमार की शारीरिक संरचना को समझे बिना वह जो भी इलाज के उपाय करेगा या दवा लिखेगा, मरीज पर उल्टा असर डालेगी। दुर्भाग्य से अच्छी तरह पढ़े और सीखे बिना उसने सर्जरी कर दी तो मरीज की जिंदगी खतरे में पडऩी निश्चित है। डॉक्टरी की बड़ी डिग्री लेकर मेडिकल कॉलेजों में अध्यापन का कार्य करने वाले असिस्टेंट प्रोफेसरों से दोहरा लाभ मिलता है, ये डॉक्टरों की नर्सरी तैयार करने के साथ आमजनों के लिए 'संजीवनी' बनते हैं। इनकी देखरेख में ही मेडिकल कॉलेज सह अस्पताल में एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्र और इंटर्न कर रहे जूनियर डॉक्टर मरीजों का इलाज करते हैं। देश में बिहार की गिनती गरीब राज्यों में ऊपर से की जाती है। लिहाजा सूबे की ग्यारह करोड़ की आबादी को सरकारी स्तर पर सस्ते इलाज की भी सबसे ज्यादा जरूरत है।
नववर्ष में छह पुराने और तीन नए मेडिकल कॉलेजों में तकरीबन पौने बारह सौ असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति हो रही है जिसमें 35 फीसद शिक्षिकाएं होंगी। पहली बार मेडिकल कॉलेजों में 409 शिक्षिकाएं नियुक्त होंगी। इससे यह आस जगी है कि महिला मरीजों को नवनियुक्त शिक्षिकाएं अपने अनुभव का लाभ बेहतर इलाज के रूप में देंगी। सूबे के कुल 13 मेडिकल कॉलेजों में से नौ में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के 40 फीसद पदों का रिक्त होना इसलिए चिंता का विषय है, क्योंकि इन मेडिकल कॉलेजों में नए कोर्स की शुरुआत और सीटों में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही। कॉलेजों की मान्यता भी खतरे में है। स्वास्थ्य विभाग ने इन मेडिकल कॉलेजों में 1171 असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति का प्रस्ताव बीपीएससी को भेजा था। आयोग ने इन मेडिकल कॉलेजों के 25 विभागों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जून में साक्षात्कार की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। सुखद यह है अधिकांश विभागों के साक्षात्कार पूरे हो गए हैं और आयोग पर इसे लेकर कोई अंगुली नहीं उठी है। नियुक्ति में विवादों ने गुजरे साल आयोग की बड़ी बदनामी कराई थी।
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फ्लैश---
प्रदेश के आधे से ज्यादा मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों के सैकड़ों पदों को भरने की प्रक्रिया का अंतिम चरण में पहुंचना किसी मील के पत्थर से कम नहीं। नए साल में मेडिकल छात्रों और आमजनों के लिए यह बड़ी सौगात होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]

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