राहुल और प्रियंका गांधी ने हाथरस जाने का जिस तरह किया दिखावा, वह सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं

हाथरस कांड के साथ ही देश के अन्य हिस्सों से जिस तरह दुष्कर्म के अनगिनत मामले सामने आ रहे हैं उससे यह सवाल उठना ही चाहिए कि आखिर हम कैसा समाज बना रहे हैं? इस सवाल का सामना शासन-प्रशासन के साथ समाज को भी करना होगा।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Fri, 02 Oct 2020 06:25 AM (IST) Updated:Fri, 02 Oct 2020 06:25 AM (IST)
राहुल और प्रियंका गांधी ने हाथरस जाने का जिस तरह किया दिखावा, वह सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं
राहुल और प्रियंका सिर्फ प्रदर्शन का ढोंगकर अपनी राजनीति चमकाना चाहते थे।

हाथरस में हिंसा की शिकार एक दलित युवती की दिल्ली में उपचार के दौरान मौत के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया है। हालांकि, सामूहिक दुष्कर्म के आरोप की पुष्टि नहीं हुई फिर भी आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। सभ्य समाज और कानून के शासन को शर्मसार करने वाले ऐसे मामले को चर्चा का विषय बनना ही चाहिए, क्योंकि वह इस कटु सत्य को भी बयान करता है कि दलित समाज अब भी प्रताड़ित हो रहा है।

यह स्वाभाविक है कि हाथरस कांड को लेकर स्थानीय पुलिस-प्रशासन के साथ उत्तर प्रदेश सरकार भी आलोचना के निशाने पर है, लेकिन क्या यह आवश्यक नहीं कि उस मानसिकता पर भी करारा प्रहार हो, जिसके चलते दलितों पर अत्याचार का सिलसिला कायम है?

यदि यह समझा जा रहा है कि दलित विरोधी मानसिकता का निदान केवल पुलिस-प्रशासन की सक्रियता अथवा कठोर कानूनों के बल पर हो जाएगा तो यह सही नहीं। यह बात दुष्कर्म की बढ़ती घटनाओं पर भी लागू होती है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि दुष्कर्म के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। मासूम बच्चियां तक दरिंदगी का शिकार बन रही हैं।

हाथरस कांड के साथ ही देश के अन्य हिस्सों से जिस तरह दुष्कर्म के अनगिनत मामले सामने आ रहे हैं, उससे यह सवाल उठना ही चाहिए कि आखिर हम कैसा समाज बना रहे हैं? इस सवाल का सामना शासन-प्रशासन के साथ समाज को भी करना होगा। इस सवाल को हल करने में राजनीति की एक महती भूमिका हो सकती है, लेकिन यह देखना लज्जास्पद है कि दुष्कर्म के मामलों में घिनौनी राजनीति हो रही है। इससे इन्कार नहीं कि हाथरस में पुलिस-प्रशासन ने अपना काम सही तरह नहीं किया। किसी के लिए भी समझना कठिन है कि परिवार वालों की इच्छा के विपरीत पीड़ित युवती का रात में अंतिम संस्कार करने की क्या जरूरत थी?

बेहतर हो कि इस गलती को स्वीकार किया जाए और उससे सबक भी सीखा जाए। सबक सीखने की जरूरत हत्या एवं दुष्कर्म सरीखे जघन्य अपराध पर राजनीतिक रोटियां सेंकने वालों को भी है। यह बेहद गंदी आदत है कि राजनीतिक दल दूसरे दलों के शासन वाले राज्यों में घटी दुष्कर्म की घटनाओं पर तो शोर मचाते हैं, लेकिन अपने यहां की ऐसी ही घटनाओं पर चुप्पी साधना पसंद करते हैं।

राहुल और प्रियंका गांधी ने हाथरस जाने का जिस तरह दिखावा किया, वह सस्ती राजनीति के अलावा और कुछ नहीं। ऐसा लगता है कि वे उत्तर प्रदेश में ऐसी किसी घटना घटने का इंतजार ही कर रहे थे। कांग्रेस शासित राज्यों में हाथरस जैसी घटनाओं पर चुप रहने वाले राहुल और प्रियंका यही जताते दिखे कि वे सिर्फ संवेदना प्रदर्शन का ढोंगकर अपनी राजनीति चमकाना चाहते थे।

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