रोजगार का सवाल

रोजगार की समस्या का एक पहलू यह भी है कि देश में एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है और खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 14 Jun 2017 02:46 AM (IST) Updated:Wed, 14 Jun 2017 04:35 AM (IST)
रोजगार का सवाल
रोजगार का सवाल

यह आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य था कि केंद्र सरकार की ओर से रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा न होने की समस्या की ओर ध्यान दिया जाता। देर से ही सही, अब जब खुद प्रधानमंत्री एक उच्च स्तरीय बैठक कर देश में रोजगार के परिदृश्य का आकलन करने जा रहे हैं तब फिर रोजगारविहीन विकास की स्थिति से निपटने के हर संभव उपाय किए जाने चाहिए। यह एक कठिन काम है, क्योंकि उच्च तकनीक और विशेष रूप से ऑटोमेशन एवं आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस रोजगार के नए अवसर पैदा करने की चुनौती को और कठिन बना रही है। रोजगार की समस्या का एक दूसरा पहलू यह भी है कि उद्योग-व्यापार जगत को जैसे दक्ष एवं कुशल युवा चाहिए वैसे नहीं मिल पा रहे हैं। स्पष्ट है कि कौशल विकास कार्यक्रम को और गति देने की आवश्यकता है। एक ऐसे समय रोजगार के अपेक्षित अवसर न उत्पन्न होना गंभीर स्थिति का सूचक है जब कृषि क्षेत्र में लोगों की निर्भरता कम करना तत्काल प्रभाव से आवश्यक हो गया है। चूंकि अपने देश में एक बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है और खेती घाटे का सौदा बनती जा रही है इसलिए इस पर प्राथमिकता के आधार पर काम होना चाहिए कि कृषि क्षेत्र के ज्यादा से ज्यादा लोगों को अन्य क्षेत्रों में रोजगार के मौके मिलें। केंद्र सरकार के नीति-नियंता इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकते कि एक बड़ी संख्या में कृषि क्षेत्र के लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। ऐसे लोगों को असंगठित क्षेत्र में रोजगार मिलने की संभावना ज्यादा रहती है, लेकिन विडंबना यह है कि हमारे देश में ऐसा कोई तंत्र ही नहीं बना जो इस क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का हिसाब-किताब रखे।
रोजगार के आंकड़े जुटाने के मौजूदा तंत्र को भरोसेमंद बनाने की कवायद तो बहुत पहले की जानी चाहिए थी। कम से कम अब तो ऐसे किसी तंत्र को विश्वसनीय बनाने के साथ ही यह भी देखा जाना चाहिए कि असंगठित क्षेत्र में रोजगार के अधिक अवसर कैसे पैदा हों? स्पष्ट है कि इसकी भी चिंता करनी होगी कि असंगठित क्षेत्र में रोजगार पाने वाले शोषण से बचें और उचित वेतन के साथ बेहतर माहौल में काम करें। यह काम सही निगरानी और नियमन के जरिये ही संभव है। इस कार्य में असंगठित क्षेत्र को सहयोग करना चाहिए, क्योंकि यह खुद उसके हित में है। यह उम्मीद की जाती है कि जीएसटी पर अमल के साथ ही असंगठित क्षेत्र में काम-काज के तौर-तरीके सुधरेंगे और उसकी तस्वीर बदलेगी। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस बदली हुई तस्वीर में रोजगार के नए अवसर अवश्य दिखाई दें। जीएसटी पर अमल का उद्देश्य तभी सार्थक होगा जब उद्योग-व्यापार जगत रोजगार के नए अवसर पैदा करने में भी सहायक बनेगा। नि:संदेह असंगठित क्षेत्र के साथ ही संगठित क्षेत्र पर भी ध्यान देने की जरूरत है। संगठित क्षेत्र के सभी क्षेत्रों में रोजगार के नए मौके उपलब्ध हों, इस दिशा में सरकार का सक्रिय होना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि युवा आबादी से समृद्ध देश युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराकर ही सही तरह से आगे बढ़ सकता है। चूंकि रोजगार का सवाल एक कठिन सवाल बन गया है इसलिए अब केंद्र सरकार के समक्ष इस मोर्चे पर मजबूती हासिल करने के अलावा और कोई उपाय नहीं।

[ मुख्य संपादकीय ]

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