जनसंपर्क अभियान: सीएए को लेकर जनता के भ्रम को दूर करने के लिए भाजपा ने देर से उठाया कदम

पागलपन भरी हिंसा में रेलवे की 90 करोड़ की संपत्ति स्वाहा हो जाने सैकड़ों वाहन फूंके जाने के बाद भी कहते हैं हम तो शांति के साथ सीएए का विरोध कर रहे हैैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 22 Dec 2019 01:01 AM (IST) Updated:Sun, 22 Dec 2019 01:01 AM (IST)
जनसंपर्क अभियान: सीएए को लेकर जनता के भ्रम को दूर करने के लिए भाजपा ने देर से उठाया कदम
जनसंपर्क अभियान: सीएए को लेकर जनता के भ्रम को दूर करने के लिए भाजपा ने देर से उठाया कदम

नागरिकता संशोधन कानून को लेकर आम जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए भाजपा ने एक अभियान शुरू करने का जो फैसला किया वह देर से उठाया गया कदम ही दिखता है। इस अभियान के तहत अगले दस दिनों में तीन करोड़ परिवारों से मिलकर नागरिकता संशोधन कानून के बारे में बताया जाएगा और साथ ही जगह-जगह प्रेस कांफ्रेंस भी की जाएंगी। कायदे से यह काम तो अब तक हो जाना चाहिए था। पार्टी के साथ मोदी सरकार को भी आम जनता से संपर्क-संवाद की जरूरत तभी समझ लेनी चाहिए थी जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नागरिकता कानून पर व्यापक प्रचार-प्रसार की दरकार है।

समझना कठिन है कि नागरिकता कानून पर विपक्ष के तीखे विरोध के बाद भी सत्तापक्ष यह क्यों नहीं भांप सका कि उसे आम जनता के बीच भी वैसी ही सक्रियता दिखाने की जरूरत है जैसी उसने नागरिकता संशोधन विधेयक को आगे बढ़ाते वक्त संसद में दिखाई? लगता है कि उसने इस विधेयक पर संसद की मुहर लगते ही यह मान लिया कि अब इस मसले पर कुछ कहने-बताने और खासकर विरोध कर रहे लोगों से बात करने की जरूरत नहीं।

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि सत्तापक्ष यह भी नहीं समझ सका कि नागरिकता संशोधन कानून के साथ प्रस्तावित एनआरसी को लेकर जनता के बीच किस तरह भ्रम फैलाकर उसे गुमराह करने के साथ उकसाया भी जा रहा है? यह काम विपक्षी नेताओं की ओर से तो किया ही जा रहा, वामपंथी रुझान वाले बुद्धिजीवियों और फिल्म जगत के लोगों की ओर से भी किया जा रहा। इस काम में मीडिया के एक हिस्से की भी भूमिका है। इसी कारण विरोध के नाम पर अराजकता का खुला प्रदर्शन भी किया जा रहा है और उसे बेशर्मी के साथ सही भी ठहराया जा रहा है। उन्माद भरे उपद्रव का सिलसिला भी इसीलिए कायम है।

यह ढोंग की पराकाष्ठा ही है कि पागलपन भरी हिंसा में रेलवे की करीब 90 करोड़ की संपत्ति स्वाहा हो जाने, विभिन्न राज्यों में तीन सौ से अधिक पुलिस वालों के लहूलुहान होने और सैकड़ों वाहन फूंके जाने के बाद भी यह राग अलापा जा रहा है कि हम तो शांति के साथ अपना विरोध कर रहे हैैं। अभी तक करीब 20 लोगों की जान जा चुकी है और फिर भी गांधी, आंबेडकर, संविधान, लोकतंत्र की दुहाई दी जा रही है। यह छल-छद्म के अलावा और कुछ नहीं। हैरानी है कि जब सरकार इस सबके बारे में जान रही थी कि लोगों को भ्रमित और भयभीत किया जा रहा है तब फिर उसकी ओर से आम लोगों तक पहुंचने का काम समय रहते क्यों नहीं किया गया?

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