क्‍या कांग्रेस अपनी ही मूल विचारधारा से भटक चुकी, हर हाल में मोदी सरकार का विरोध करने के विचार से ग्रस्‍त

यशवंत सिन्हा ममता बनर्जी की पहल से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बने लेकिन तब जब शरद पवार फारूक अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी ने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया था। समस्या केवल यह नहीं कि वह विपक्ष की चौथी पसंद हैं...!

By TilakrajEdited By: Publish:Tue, 28 Jun 2022 08:09 AM (IST) Updated:Tue, 28 Jun 2022 08:09 AM (IST)
क्‍या कांग्रेस अपनी ही मूल विचारधारा से भटक चुकी, हर हाल में मोदी सरकार का विरोध करने के विचार से ग्रस्‍त
झारखंड मुक्ति मोर्चा और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने उनके नामांकन के समय अनुपस्थित रहना बेहतर समझा

राष्ट्रपति पद के विपक्ष के प्रत्याशी यशवंत सिन्हा की ओर से नामांकन पत्र दाखिल किए जाने के बाद राहुल गांधी का यह कथन कई प्रश्न खड़े करता है कि यह दो व्यक्तियों की नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं की लड़ाई है। आखिर वह किसकी विचारधारा की बात कर रहे हैं- कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों की या फिर यशवंत सिन्हा की?

यदि वह यशवंत सिन्हा की विचारधारा की बात कर रहे हैं, तो वह तो लंबे समय तक भाजपा में रहे हैं। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जनता पार्टी के साथ की। इसके उपरांत वह पहले वीपी सिंह के जनता दल से जुड़े और फिर चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी से। इसके बाद उन्होंने भाजपा का साथ पकड़ा। भाजपा में रहते समय उन्होंने कांग्रेस की कठोर आलोचना ही नहीं की, बल्कि कई बार भाषा की मर्यादा का भी उल्लंघन किया। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के कुछ समय बाद वह उनके निंदक बन गए और एक तरह से यही उनकी पहचान बन गई। इसी पहचान के साथ वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। आखिर जिसने इतने दलों की यात्रा की हो, उसकी विचारधारा के बारे में कैसे जाना जा सकता है?

यशवंत सिन्हा ममता बनर्जी की पहल से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बने, लेकिन तब, जब शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी ने राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया था। समस्या केवल यह नहीं कि वह विपक्ष की चौथी पसंद हैं, बल्कि यह भी है कि उन्हें सभी विपक्षी दलों का समर्थन भी हासिल नहीं हैं। उनकी समस्या इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि भाजपा की ओर से जनजाति समुदाय की द्रौपदी मुमरू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद कई दलों के सामने यह दुविधा खड़ी हो गई है कि वह उनका विरोध कैसे करें। उनकी यह दुविधा यशवंत सिन्हा के नामांकन दाखिल करते समय नजर भी आई।

झारखंड मुक्ति मोर्चा और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने उनके नामांकन के समय अनुपस्थित रहना बेहतर समझा। यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि वंचित वर्गों के हितों की चिंता करने वाला कोई भी दल यह संदेश देने का जोखिम नहीं उठा सकता कि वह जनजाति समुदाय की महिला को राष्ट्रपति पद पर आसीन होने के पक्ष में नहीं। यदि कांग्रेस को यह साधारण सी बात समझ में नहीं आ रही है तो इसका यही कारण हो सकता है कि वह खुद अपनी मूल विचारधारा से भटक चुकी है। विचारधारा के नाम पर कांग्रेस केवल इस विचार से ग्रस्त है कि उसे हर हाल में मोदी सरकार का विरोध करना है। यह विरोध भी अंधविरोध में बदल चुका है और इसीलिए आज स्वयं कांग्रेसजनों को भी यह समझना कठिन है कि उनका दल किस विचारधारा पर चल रहा है?

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