समान संहिता की जमीन, राष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनाते समय झूठ और दुष्प्रचार से रहना होगा सतर्क

समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय एकत्व की भावना को बल प्रदान करने का काम तो करेगी ही पंथ-मजहब की विभाजनकारी राजनीति पर भी लगाम लगाएगी। समान नागरिक संहिता की जमीन तैयार करते समय भावी केंद्र सरकार को इसके प्रति सतर्क रहना होगा कि उसे लेकर झूठ के सहारे वैसा दुष्प्रचार न होने पाए जैसा नागरिकता संशोधन कानून को लेकर किया गया।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya Publish:Wed, 17 Apr 2024 11:55 PM (IST) Updated:Wed, 17 Apr 2024 11:55 PM (IST)
समान संहिता की जमीन, राष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनाते समय झूठ और दुष्प्रचार से रहना होगा सतर्क
समान संहिता की जमीन, राष्ट्रीय स्तर पर सहमति बनाते समय झूठ और दुष्प्रचार से रहना होगा सतर्क (File Photo)

यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने यह साफ कर दिया कि वह समान नागरिक संहिता लागू करने की जमीन तैयार कर रहे हैं। उन्होंने आशा जताई कि जैसे उत्तराखंड में सभी ने इस संहिता को स्वीकार किया, वैसे ही राष्ट्रीय स्तर पर भी उस पर सहमति बनेगी। ऐसा ही होना चाहिए, क्योंकि समान नागरिक संहिता लागू करने में पहले ही बहुत देर हो चुकी है।

संविधान निर्माताओं ने संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांतों में समान नागरिक संहिता का उल्लेख करते हुए यह अवश्य कहा था कि राज्य पूरे भारत के नागरिकों के लिए समान संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा, लेकिन इसका यह आशय कदापि न था कि इसके लिए अनंत काल तक प्रतीक्षा की जाएगी।

सच यह है कि संविधान लागू होने के बाद किसी भी केंद्रीय सत्ता ने समान नागरिक संहिता बनाने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की। उलटे जब भी किसी दल और यहां तक कि उच्चतर न्यायपालिका ने इसकी आवश्यकता जताई तो वोट बैंक की सस्ती राजनीति के चलते लोगों और विशेष रूप से अल्पसंख्यकों को डराने का काम किया गया। यह काम अब भी किया जा रहा है।

बीते दिनों ही ममता बनर्जी ने कहा कि उन्हें समान नागरिक संहिता स्वीकार नहीं। इस संहिता का विरोध संविधान निर्माताओं की अपेक्षाओं का निरादर ही नहीं, महिलाओं के अधिकारों के अनदेखी भी है। आखिर इसमें क्या समस्या है यदि देश के सभी समुदायों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेने, विरासत, उत्तराधिकार आदि के कानून एक जैसे हों?

समान नागरिक संहिता का निर्माण भाजपा के मुख्य मुद्दों में से एक है। चूंकि वह अपने दो मुख्य मुद्दे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 की समाप्ति और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लक्ष्य को पूरे कर चुकी है, इसलिए यह स्वाभाविक है कि वह अपने तीसरे कार्यकाल में समान नागरिक संहिता लागू करने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करे।

घोषणा पत्र में इसका उल्लेख करने के बाद प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता के निर्माण की चर्चा कर यही संदेश दिया कि अब उसे राष्ट्रीय स्तर पर भी लागू किया जाएगा। ऐसा किया जाना समय की मांग भी है और भारतीय समाज की आवश्यकता भी, क्योंकि विभिन्न समुदायों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार आदि से संबंधित अलग-अलग कानून होने से एक तो महिलाओं और बच्चों के अधिकारों का हनन हो रहा है और दूसरे, लोगों में यह आवश्यक संदेश नहीं जा रहा है कि हम सब भारतवासी एक जैसे कानून से संचालित हैं।

समान नागरिक संहिता राष्ट्रीय एकत्व की भावना को बल प्रदान करने का काम तो करेगी ही, पंथ-मजहब की विभाजनकारी राजनीति पर भी लगाम लगाएगी। समान नागरिक संहिता की जमीन तैयार करते समय भावी केंद्र सरकार को इसके प्रति सतर्क रहना होगा कि उसे लेकर झूठ के सहारे वैसा दुष्प्रचार न होने पाए, जैसा नागरिकता संशोधन कानून को लेकर किया गया।

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