राजस्थान में आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जर समाज के हिंसक आंदोलन से लोगों का जीना हुआ मुहाल

बीते एक दशक में राजस्थान की सरकारों ने गुर्जर समाज की समस्याओं का समाधान करने की हर संभव कोशिश की है, लेकिन गुर्जर नेताओं का नजरिया दुरुस्त नहीं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 10 Feb 2019 10:34 PM (IST) Updated:Mon, 11 Feb 2019 05:00 AM (IST)
राजस्थान में आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जर समाज के हिंसक आंदोलन से लोगों का जीना हुआ मुहाल
राजस्थान में आरक्षण की मांग कर रहे गुर्जर समाज के हिंसक आंदोलन से लोगों का जीना हुआ मुहाल

राजस्थान में अपने लिए अलग से पांच प्रतिशत आरक्षण मांग रहे गुर्जर समाज के आंदोलन ने एक बार फिर जिस तरह हिंसक रूप धारण किया और उसके चलते आगजनी और तोड़फोड़ हुई उससे यही पता चलता है कि आरक्षण के नाम पर किस तरह जोर-जबर्दस्ती की राजनीति हो रही है। राजस्थान में पिछले दस वर्षों में गुर्जर समाज जब भी आरक्षण की अपनी मांग को लेकर आंदोलन करने उतरा है तब किसी न किसी रूप में हिंसा अवश्य हुई है। इन दस वर्षों में आंदोलन जनित हिंसा में करीब सौ लोग मारे जा चुके हैं और करोड़ों रुपये की संपत्ति स्वाहा हो चुकी है, लेकिन गुर्जर नेता यह साधारण सी बात समझने के लिए तैयार नहीं कि इतने बड़े देश में हर समुदाय को उनके मनमाफिक अलग से आरक्षण नहीं मिल सकता। शायद इसका कारण यह है कि उनका मकसद अपने समाज की समस्याओं का उचित तरीके से समाधान करना कम, अपनी राजनीतिक हैसियत बढ़ाना अधिक है।

आखिर इसका क्या मतलब कि अपनी मांग मनवाने के लिए राष्ट्रीय राजमार्गों को बाधित करने के साथ ही रेल यातायात ठप कर दिया जाए? गुर्जर नेता हर बार ऐसा करके एक तरह से सार्वजनिक जीवन को बंधक बनाने का ही काम करते हैं। यह शुद्ध अराजक व्यवहार है और कोई भी सभ्य समाज इस तरह के आचरण को स्वीकार नहीं कर सकता। बेहतर हो कि आंदोलन के ऐसे अराजक तौर-तरीकों पर सुप्रीम कोर्ट ध्यान दे। उसे सड़क एवं रेल मार्ग बाधित करने की बढ़ती प्रवृत्ति पर स्वत: संज्ञान लेना चाहिए और ऐसे आदेश-निर्देश जारी करने चाहिए जिससे कोई भी उस तरह का काम न कर सके जैसा राजस्थान के गुर्जर नेता करते ही रहते हैं।

लोगों को अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने का अधिकार है तो इसका यह मतलब नहीं हो सकता कि वे मनमानी करें। यह मनमानी की पराकाष्ठा ही है कि गुर्जर नेता रेल पटरियों पर बैठ जाने के बाद इस बात की भी जिद करते हैं कि शासन-प्रशासन के लोगों को उनसे बात करने के लिए वहीं आना होगा। अपनी यह जिद पूरी होने के बाद वे कुछ ऐसी मांगें सामने रख देते हैं जो किसी भी सरकार के लिए पूरा करना संभव नहीं। गुर्जर और कुछ अन्य समुदायों के लिए ओबीसी आरक्षण के तहत अलग से पांच प्रतिशत आरक्षण की मांग ऐसी ही है। चूंकि इस मांग को मानने से 50 प्रतिशत की आरक्षण सीमा का उल्लंघन हो जाता है इसलिए उसे हर बार उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय की ओर से खारिज कर दिया जाता है। इस हकीकत से गुर्जर नेता भी भलीभांति अवगत हैं, लेकिन इसके बावजूद वे जिद पर अड़े हुए हैं। यह सही है कि अन्य समाजों की तरह गुर्जर समाज की भी अपनी कुछ समस्याएं हैं, लेकिन यह भी एक वास्तविकता है कि उन सभी का समाधान केवल आरक्षण से नहीं होने वाला।

बीते एक दशक में राजस्थान की सरकारों ने गुर्जर समाज की समस्याओं के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाते हुए उनका समाधान करने की हर संभव कोशिश की है, लेकिन शायद गुर्जर नेता उनके ऐसे रवैये को उनकी कमजोरी मान बैठे हैं। जो भी हो, यह साफ है कि गुर्जर नेताओं का नजरिया दुरुस्त नहीं।

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