अनुच्छेद 370 बेअसर होने पर पाक बौखलाया, गर्जन-तर्जन के बाद उसने भारत से व्यापारिक संबंध तोड़ लिए

पाकिस्तान के नीति-नियंता कुछ भी कहें सच यही है कि उनके बौखलाहट भरे फैसलों से भारत की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 07 Aug 2019 11:25 PM (IST) Updated:Thu, 08 Aug 2019 02:07 AM (IST)
अनुच्छेद 370 बेअसर होने पर पाक बौखलाया, गर्जन-तर्जन के बाद उसने भारत से व्यापारिक संबंध तोड़ लिए
अनुच्छेद 370 बेअसर होने पर पाक बौखलाया, गर्जन-तर्जन के बाद उसने भारत से व्यापारिक संबंध तोड़ लिए

अनुच्छेद 370 को बेअसर करके जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाने की भारत सरकार की ऐतिहासिक पहल पर पाकिस्तान जिस तरह भड़का हुआ था उसे देखते हुए यह तय था कि वह कुछ न कुछ करेगा। तमाम गर्जन-तर्जन के बाद उसने जिस तरह भारत से राजनयिक संबंधों का दर्जा कम करने और व्यापारिक संबंध तोड़ने का फैसला किया उससे भारत को चिंतित होने की जरूरत नहीं। आखिर यह भारत ही था जिसने पुलवामा हमले के बाद व्यापार के मामले में पाकिस्तान का सबसे तरजीही राष्ट्र का दर्जा खत्म किया था। इसके बाद पाकिस्तान से होने वाले सीमा व्यापार को भी निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि उसके जरिये मादक पदार्थों की तस्करी हो रही थी।

चूंकि भारत के इन कदमों के बाद द्विपक्षीय व्यापार न के बराबर रह गया था इसलिए उसे खत्म करने की पाकिस्तान की घोषणा का कोई मतलब नहीं। जहां तक राजनयिक स्तर घटाने की बात है तो सच्चाई यह है कि सुरक्षा मामलों के भारतीय विशेषज्ञ एक अर्से से यह मांग कर रहे थे कि पाकिस्तान से राजनयिक संबंध घटाए जाने चाहिए। एक तरह से पाकिस्तान ने वह काम किया जिसके लिए भारत सरकार से अपील की जाती थी।

ऐसा लगता है कि बौखलाहट में आए पाकिस्तान को कुछ सूझा नहीं और इसीलिए उसने ऐसे फैसले ले लिए जो उस पर ही भारी पड़ सकते हैैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान ने भारत को दबाव में लेने के इरादे से भारतीय यात्री विमानों के लिए अपना हवाई क्षेत्र लंबे समय तक बंद रखा और जब भारत सरकार इस पाबंदी से बेपरवाह रही तो उसने मजबूरी में अपने फैसले को पलटा।

पाकिस्तान द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करने के साथ ही कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठाने की भी बात कर रहा है। वह जिस तरह द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा करने को स्वतंत्र है उसी तरह सुरक्षा परिषद का दरवाजा खटखटाने के लिए भी। वह शायद इस हकीकत से आंखें मूंदे रहना चाहता है कि कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का प्रस्ताव अब महज कागज का एक टुकड़ा भर रह गया है। उसे यह भी समझ आना चाहिए कि इस प्रस्ताव को निष्प्राण करने मे सबसे बड़ी भूमिका उसी की रही है।

पाकिस्तान ने न केवल कश्मीर का एक हिस्सा चीन को सौंप दिया, बल्कि इस जरूरी शर्त को भी पूरा करने से इन्कार किया कि जनमत संग्रह के लिए पहले उसे अपने कब्जे वाले इलाके से अपनी फौज हटानी होगी। पाकिस्तान के नीति-नियंता कुछ भी कहें, सच यही है कि उनके बौखलाहट भरे फैसलों से भारत की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला।

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