अस्पतालों का दर्द

प्रदेश में स्वस्थ समाज की परिकल्पना कैसे साकार हो सकती है जब चार हजार से अधिक लोगों की सेहत जिम्मा एक डॉक्टर पर हो।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 12 Apr 2017 01:41 AM (IST) Updated:Wed, 12 Apr 2017 01:45 AM (IST)
अस्पतालों का दर्द
अस्पतालों का दर्द

ब्लर्ब : प्रदेश में स्वस्थ समाज की परिकल्पना कैसे साकार हो सकती है जब चार हजार से अधिक लोगों की सेहत जिम्मा एक डॉक्टर पर हो

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अस्तित्व में आने के बाद हिमाचल प्रदेश ने काफी तरक्की की है और विकास के नए आयाम छुए हैं। हर क्षेत्र में काफी कुछ हासिल किया जा चुका है, लेकिन अब भी स्थिति संतोषजनक स्तर पर नहीं पहुंची है। व्यवस्था में कुछ खामियां कचोटती हैं, जिन्हें दूर करना समय की मांग है। सरकार लोगों को घर-द्वार पर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने का दम भरती है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं हो पा रहा। कागजों में तो प्रति तीन हजार की आबादी पर एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या उप केंद्र खोला गया है, लेकिन इनमें मरीजों के उपचार के लिए डॉक्टरों की संख्या काफी कम है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा दिए गए डॉक्टरों की संख्या के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के करीब 70 लाख लोगों के स्वास्थ्य का जिम्मा मात्र 1647 डॉक्टरों पर है यानी 4250 लोगों पर एक डॉक्टर तैनात किया गया है। स्वास्थ्य विभाग में डॉक्टरों के 2081 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 434 पद वर्तमान में रिक्त पड़े हैं। इसके कारण अस्पताल में मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं तो दूर उपचार के लिए भी भटकना पड़ रहा है। ऐसे में डॉक्टरों की कमी के कारण लोगों को बिना उपचार करवाए लौटना पड़ रहा है। तकनीशियनों के कई पद खाली होने से लोगों को बेहतर सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। प्रदेश में 42 पीएचसी में से आधे अभी किराये के भवनों में चल रहे हैं जबकि कई जगह एक-एक बिस्तर पर दो-दो मरीजों को रखा जा रहा है। ये तो चंद उदाहरण हैं, अन्य अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों की हालत भी सुखद नहीं हैं। ग्रामीण क्षेत्रों की हालत ज्यादा खराब है। प्रदेश में निजी क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं का उतना विस्तार नहीं हो पाया है, जितना अपेक्षित था। ऐसे में लोगों के लिए एकमात्र सहारा सरकारी चिकित्सा संस्थान ही हैं। वहां भी अगर बेहतर सुविधाएं न मिलें तो लोग कहां जाएं। ऐसा नहीं है कि स्वास्थ्य संस्थानों में कुछ अच्छा नहीं हुआ, लेकिन जब ऐसी अव्यवस्था सामने आती है तो अच्छाई पीछे छूट जाती है और याद अव्यवस्था को ही रखा जाता है। यह सरकार का दायित्व है कि मरीजों को किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। चिकित्सा संस्थानों में डॉक्टरों के पद भरे जाने चाहिए व तकनीकी व अन्य स्टाफ की तैनाती सुनिश्चित होनी चाहिए। सरकार को गंभीरता से मंथन करना होगा कि लोगों के हित से जुड़े सबसे अहम विभाग में सब कुछ व्यवस्थित हो।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]

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