बजट सत्र: सीएए पर विपक्ष के तेवरों से संसद में शाहीन बाग जैसे हालात पैदा हो सकते हैं

राष्ट्रपति की ओर से सीएए के जिक्र मात्र पर विपक्ष के तेवर से यही लगता है कि संसद में शाहीन बाग जैसे हालात पैदा करने की कोशिश हो सकती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 31 Jan 2020 08:53 PM (IST) Updated:Sat, 01 Feb 2020 12:28 AM (IST)
बजट सत्र: सीएए पर विपक्ष के तेवरों से संसद में शाहीन बाग जैसे हालात पैदा हो सकते हैं
बजट सत्र: सीएए पर विपक्ष के तेवरों से संसद में शाहीन बाग जैसे हालात पैदा हो सकते हैं

यह अच्छा नहीं हुआ कि संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर जब यह कहा कि उसके जरिये गांधी जी एवं अन्य राष्ट्र निर्माताओं की आकांक्षा पूरा करने का काम किया गया है तब विपक्षी दलों के सांसदों ने हंगामा मचाना जरूरी समझा। विपक्षी सांसद केवल हंगामा करने तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि उन्होंने शर्म-शर्म के नारे भी लगाए। वास्तव में उनका मकसद राष्ट्रपति के संबोधन में व्यवधान डालना था। इस दौरान विपक्षी दलों के कई सांसद काली पट्टी से भी लैस दिखे। क्या यह काफी कुछ वैसा ही आचरण नहीं जैसा सीएए के विरोध में सड़कों पर उतरे लोग कर रहे हैं।

दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में तो एक धरना ऐसी सड़क पर काबिज होकर दिया जा रहा है जिसके अवरुद्ध होने से हर दिन लाखों लोग परेशान हो रहे हैं। इसके बावजूद इस धरने पर बैठे लोग खुद को गांधीवादी और संविधान प्रेमी बता रहे हैं। आखिर यह ढोंग नहीं तो और क्या है? गांधी जी ने तो अपने जीवन में एक भी ऐसा धरना नहीं दिया जिसने दूसरों के लिए कठिनाई पैदा की हो।

राष्ट्रपति की ओर से सीएए के जिक्र मात्र पर विपक्ष ने जैसे तेवर दिखाए उससे तो यही लगता है कि रचनात्मक भूमिका उसके एजेंडे में ही नहीं और उसकी ओर से संसद में शाहीन बाग जैसे हालात पैदा करने की कोशिश हो सकती है। जो भी हो, यह देखना दयनीय रहा कि विपक्ष ने राष्ट्रपति के इस कथन पर भी गौर करने से इन्कार किया कि वह पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की निंदा करते हैं और विश्व समुदाय से आग्रह करते हैं कि वह इसका संज्ञान ले। सीएए पर विपक्षी दल और खासकर कांग्रेस जैसा रवैया अपनाए हुए है उससे तो यही लगता है कि वह यह भूलना पसंद कर रही है कि अतीत में उसने क्या कहा और किया? वह संविधान की दुहाई भी दे रही और अपनी राज्य सरकारों के जरिये उसकी धज्जियां भी उड़ा रही।

कल तक जो कांग्रेस सीएए जैसा कानून बनाने की मांग कर रही थी, असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी को अपनी पहल बता रही थी और जनसंख्या रजिस्टर को आगे बढ़ा रही थी वह आज इन सब पर सिर के बल खड़ी हो गई है। यह राजनीति के नाम पर की जाने वाली शरारत ही है। इसी शरारत के कारण इस तथ्य की अनदेखी की जा रही है कि नागरिकता कानून में संशोधन के बाद भी किसी भी देश और यहां तक पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान के बहुसंख्यक नागरिक भी भारत की नागरिकता पाने के हकदार हैं।

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