सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक पारित करने पर विपक्ष ने लगाया जल्दबाजी का आरोप

विपक्षी सांसदों को यह स्मरण रहना चाहिए कि अतीत में ऐसा भी समय रहा जब कांग्रेस का लोकसभा के साथ राज्यसभा में भी बहुमत रहा।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Sat, 27 Jul 2019 01:49 AM (IST) Updated:Sat, 27 Jul 2019 01:49 AM (IST)
सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक पारित करने पर विपक्ष ने लगाया जल्दबाजी का आरोप
सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक पारित करने पर विपक्ष ने लगाया जल्दबाजी का आरोप

राज्यसभा में कुछ विपक्षी दलों के सहयोग से सूचना अधिकार संबंधी संशोधन विधेयक पारित होने के बाद विपक्ष के 17 सांसदों की ओर से इस सदन के सभापति को लिखी गई इस चिट्ठी का औचित्य समझना कठिन है कि सरकार विधेयकों को जल्दबाजी में पारित करा रही है।

यह आश्चर्यजनक है कि यह चिट्ठी ऐसे समय आई जब संसद के मौजूदा सत्र को इसलिए बढ़ाने का फैसला किया गया ताकि ज्यादा से ज्यादा विधायी कार्य किया जा सके। ऐसा लगता है कि राज्यसभा सभापति को चिट्ठी लिखने वाले सांसद इससे परेशान हैं कि सूचना अधिकार संबंधी विधेयक पर कई विपक्षी दल सत्तापक्ष के साथ खड़े हो गए।

यह कोई नई-अनोखी बात नहीं। अतीत में कई बार ऐसा हो चुका है जब किसी विधेयक पर विपक्षी दल एकमत न रहने के कारण एकजुट भी नहीं रहे। किसी विधेयक पर विपक्षी एकता कायम न रहने का यह मतलब नहीं कि विपक्ष की नहीं सुनी जा रही है अथवा सरकार विधेयकों को पारित कराने में जल्दबाजी कर रही है।

17 विपक्षी सांसदों को यह शिकायत है कि सरकार विधेयकों को प्रवर समिति के पास नहीं भेज रही है। नि:संदेह व्यापक महत्व के विधेयक प्रवर समितियों के पास भेजने की परंपरा है, लेकिन यह कोई नियम भी नहीं है कि हर विधेयक को प्रवर समिति केहवाले किया जाए।

कोई विधेयक प्रवर समिति को भेजा जाए या नहीं, इसका निर्धारण सदन की सहमति से ही होता है। यदि विपक्ष यह चाहेगा कि हर विधेयक प्रवर समिति के पास भेजा जाए तो यह संभव नहीं। ऐसा तभी संभव होगा जब विपक्ष का संख्याबल मजबूत होगा। विपक्षी सांसदों को यह स्मरण रहना चाहिए कि अतीत में ऐसा भी समय रहा जब कांग्रेस का लोकसभा के साथ राज्यसभा में भी बहुमत रहा।

इसी के साथ इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि हाल के समय में राज्यसभा में विपक्षी दल अपने बहुमत के बल पर लोकसभा से पारित विधेयकों की राह रोकते दिखे हैं। विपक्षी दलों के इसी रवैये के कारण राष्ट्रीय महत्व के कई ऐसे विधेयक फिर से पारित कराने पड़ रहे हैं जो पिछली लोकसभा से तो पारित हो गए थे, लेकिन राज्यसभा से पारित नहीं हो सके थे।

अगर तत्काल तीन तलाक संबंधी विधेयक को लोकसभा से तीसरी बार पारित कराना पड़ा तो राज्यसभा में विपक्षी दलों के रवैये के कारण ही। विपक्षी नेताओं को तब शिकायत हो सकती है और होनी भी चाहिए जब उन्हें अपनी बात कहने या फिर विधेयकों के मसौदे के अध्ययन का पर्याप्त समय न मिले। यह अच्छा है कि लोकसभा अध्यक्ष ने विधेयकों का मसौदा मिलने में देरी का संज्ञान लिया। 

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