शिक्षा पर खर्च में लापरवाही

नीतीश सरकार शिक्षा के उन्नयन से विकास की उम्मीदें संजोए हुए है, ऐसे में शिक्षा विभाग में अरबों की राशि का उपयोग न होना उचित नहीं है। शिक्षा अधिकारियों का सचेत होना बेहद जरूरी है। सरकार इस दिशा में प्रयासरत है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 09 Mar 2018 11:42 AM (IST) Updated:Fri, 09 Mar 2018 11:42 AM (IST)
शिक्षा पर खर्च में लापरवाही
शिक्षा पर खर्च में लापरवाही

सूबे में शिक्षा की दिशा और दशा में सुधार के लिए राज्य सरकार तमाम कोशिशें कर रही है। उसके परिणाम इस रूप में तो परिलक्षित होते दिखाई दे रहे हैं कि बड़ी संख्या में बच्चों का सरकारी स्कूलों में नामांकन हो रहा है। लेकिन, सचाई यह है कि सैकड़ों सरकारी विद्यालयों में जरूरी संसाधनों का अभाव बना हुआ है। अधिकांश जिलों में सरकारी स्कूलों की हालत ऐसी है कि किसी का भवन जर्जर है तो कहीं बिजली नहीं है। लड़कियों के लिए शौचालय तक नहीं बन सके हैं। माध्यमिक से ज्यादा प्राथमिक स्तर की शिक्षा व्यवस्था का हाल बुरा है। यह भगवान भरोसे ही चल रही है। अपना भवन न होने से गांव-गिरांव छोटे-छोटे बच्चों की कक्षाएं पेड़ों तले चलती हैं। ऐसे में पिछले साल शिक्षा विभाग को दिए गए आवंटन में अरबों रुपये का उपयोग न किया जाना किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं है। विभिन्न जिलों में शिक्षा विभाग के बैंक खातों में 1525 करोड़ रुपये पड़े होने की जानकारी सामने आई है। पिछले दिनों विभाग के प्रधान सचिव ने शिक्षा अधिकारियों के साथ बैठक कर जिलों में शिक्षा विभाग कि बैंक खातों की समीक्षा की तो पता चला कि शिक्षा योजनाओं के 1642 करोड़ रुपयों का इस्तेमाल ही नहीं किया गया है।

शिक्षा सचिव की ओर से जिला शिक्षा पदाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि जो राशि 31 मार्च 2018 तक खर्च नहीं की जा सकती है, उसे 15 मार्च तक सरेंडर कर दें। कुछ जिलों ने तकरीबन 117 करोड़ रुपये कोषागार में जमा कराए हैं, लेकिन सवा पंद्रह अरब रुपये अब भी पड़े हुए हैं। शिक्षा मद में दिए गए आवंटन में इतनी बड़ी राशि का विद्यालयों में संसाधन जुटाने में उपयोग न किया जाना यह स्पष्ट संकेत देता है कि शिक्षा विभाग में वित्तीय प्रबंधन लचर है। जबकि यही अकेला महकमा है जिसमें सबसे ज्यादा संसाधनों का अभाव और शिक्षकों-कर्मचारियों की कमी के अलावा उनके वेतन आदि का रोना हमेशा रोया जाता है। राजग सरकार ने नए वित्तीय वर्ष के बजट में भी शिक्षा के उन्नयन के लिए भरपूर राशि आवंटित की है। जाहिर है इसे खर्च करने की चुनौती भी कुछ दिनों में विभाग के आलाअफसरों के सामने होगी। ऐसे में कोई ऐसा सिस्टम बनना चाहिए जिससे शिक्षा मद में जिलों को आवंटित धन के उपयोग की माहवार निगरानी हो।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]

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