मोदी सरकार ने दूसरी पारी का एक वर्ष ऐसे समय पूरा किया जब देश कोरोना से उपजी महामारी से जूझ रहा

कांग्रेस कोरोना संक्रमण से उपजे हालात का मुकाबला करने में जिस राजनीतिक एकजुटता की आवश्यकता है उसका अभाव पैदा कर रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 30 May 2020 09:20 PM (IST) Updated:Sun, 31 May 2020 12:19 AM (IST)
मोदी सरकार ने दूसरी पारी का एक वर्ष ऐसे समय पूरा किया जब देश कोरोना से उपजी महामारी से जूझ रहा
मोदी सरकार ने दूसरी पारी का एक वर्ष ऐसे समय पूरा किया जब देश कोरोना से उपजी महामारी से जूझ रहा

मोदी सरकार ने दूसरी पारी में एक वर्ष का अपना कार्यकाल एक ऐसे समय पूरा किया जब देश कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 से जूझ रहा है। चूंकि इस महामारी ने सब कुछ अपनी चपेट में ले लिया है इसलिए स्वाभाविक रूप से देश का ध्यान इसकी ओर कम ही गया कि इस सरकार ने एक वर्ष में क्या किया और क्या नहीं? इसके बावजूद इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि बीते एक साल में उसकी ओर से दूरगामी असर वाले कई फैसले लिए गए। इनमें सबसे प्रमुख है जम्मू-कश्मीर को विभाजनकारी अनुच्छेद 370 से मुक्त करना। इसे स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े और साहसिक फैसले की संज्ञा मिलनी चाहिए।

इस फैसले ने देश ही नहीं, दुनिया पर भी असर डाला। इस फैसले पर पाकिस्तान समेत अन्य देशों ने प्रतिक्रिया दी, लेकिन अडिग मोदी सरकार ने सबको माकूल जवाब देने के साथ ही दो टूक ढंग से यह साफ किया कि भारत के अटूट अंग जम्मू-कश्मीर के बारे में लिए गए फैसले पर किसी अन्य को आपत्ति जताने का अधिकार नहीं। यह कल्पना करना कठिन है कि मोदी सरकार के अलावा अन्य कोई सरकार अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला ले सकती थी। साहसिक फैसले केवल सरकार और खासकर प्रधानमंत्री की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिचय नहीं देते, बल्कि देश की दशा-दिशा बदलने का भी काम करते हैं।

मोदी सरकार ने अपने अन्य कई फैसलों के जरिये यही रेखांकित किया कि वह जनादेश की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है और उसका लक्ष्य शासन करना नहीं, बल्कि देश बदलना है। इस पर हैरत नहीं कि विपक्ष और खासकर कांग्रेस को कहीं कोई बदलाव नहीं दिखता। उसकी मानें तो यह सरकार हर मोर्चे पर नाकाम है। ऐसा निष्कर्ष वही निकाल सकता है जो घोर नकारात्मकता से ग्रस्त हो। यह दयनीय है कि कांग्रेस इस कठिन समय भी न केवल घोर नकारात्मक राजनीति कर रही, बल्कि कोरोना संक्रमण से उपजे हालात का मुकाबला करने में जिस राजनीतिक एकजुटता की आवश्यकता है उसका अभाव पैदा कर रही है।

वह कोरोना संकट से निपटने के मामले में सरकार पर मनचाहे फैसले करने का आरोप तो लगा रही है, लेकिन यह देखने को तैयार नहीं कि केंद्र ने तमाम फैसले लेने के अधिकार तो मुख्यमंत्रियों एवं जिलाधिकारियों को दे रखे हैं और वे उनका इस्तेमाल भी कर रहे हैं। आलोचना का कोई आधार न हो तो वह असरहीन तो होती ही है, आलोचक को निष्प्रभावी भी साबित करती है। जब कमजोर और दिशाहीन विपक्ष निराश कर रहा हो तब यह और आवश्यक हो जाता है कि सरकार निर्णायक फैसले लेने के अपने संकल्प से लैस रहे और उसका सदैव परिचय भी दे।

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