दुराग्रही ट्विटर: भारत के नियम-कानूनों को मानने से इन्कार करने पर सरकार को उठाना पड़ रहा है सख्त रवैया

जब प्रत्येक पोस्टर-बैनर की भाषा के लिए उसे लगाने-इस्तेमाल करने वाले जिम्मेदार होते हैं तब फिर ट्विटर अथवा अन्य कोई सोशल नेटवर्क साइट यह कहकर कैसे बच सकती है कि उसके प्लेटफार्म पर कोई कुछ भी लिख सकता है?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 16 Jun 2021 10:03 PM (IST) Updated:Thu, 17 Jun 2021 02:53 AM (IST)
दुराग्रही ट्विटर: भारत के नियम-कानूनों को मानने से इन्कार करने पर सरकार को उठाना पड़ रहा है सख्त रवैया
विदेशी कंपनी ट्विटर भारत में रहकर यहां के नियम मानने से इन्कार करती है।

यदि भारत सरकार को इंटरनेट मीडिया ट्विटर को लेकर अपना रवैया सख्त करना पड़ रहा है तो इसके लिए यह सोशल नेटवर्क साइट ही जिम्मेदार है। ट्विटर ने अंतिम चेतावनी जारी किए जाने के बाद भी जिस तरह सूचना एवं प्रौद्योगिकी संबंधी दिशानिर्देशों का पालन करने से इन्कार किया, उसके बाद भारत सरकार के पास इसके अलावा और कोई उपाय नहीं रह गया था कि वह उसके इंटरमीडियरी दर्जे को खत्म करने का फैसला करती। इस फैसले को लेकर केंद्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने यह बिल्कुल सही कहा कि यदि कोई विदेशी कंपनी भारत में रहकर यहां के नियम मानने से इन्कार करती है तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। ट्विटर न केवल भारत के नियम-कानूनों को मानने से इन्कार कर रहा है, बल्कि खुद को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के झंडाबरदार के रूप में पेश करके भारत सरकार की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश भी कर रहा है। ट्विटर किस तरह शरारत पर उतर आया है, इसका उदाहरण है टूलकिट संबंधी भाजपा नेताओं के ट्वीट को छेड़छाड़ कर पेश की गई सामग्री के रूप में रेखांकित करना और गाजियाबाद की एक घटना से जुड़ी फर्जी खबर पर मौन साधे रहना। यह अच्छा हुआ कि उसकी इस हरकत पर उसके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई।

ट्विटर ने गाजियाबाद की घटना से संबंधित फर्जी खबर की जैसी अनदेखी की, उससे यही साबित हुआ कि फेक न्यूज के खिलाफ लड़ाई का उसका दावा पूरी तरह खोखला है। ट्विटर किस तरह चालाकी दिखा रहा है, इसका पता इससे भी चलता है कि वह कभी तो अपने को महज प्रकाशक करार देते हुए यह दर्शाता है कि अभिव्यक्ति की आजादी के तहत सबको अपनी मनचाही बात ट्वीट करने की स्वतंत्रता है और कभी वह ट्वीट की गई सामग्री की सत्यता परखने लगता है। चूंकि उसके पास ट्वीट की गई सामग्री की सत्यता परखने का कोई तंत्र और तरीका नहीं, इसलिए जब कभी वह ऐसी चेष्टा करता है तो अपने दोहरे चरित्र और दुराग्रह को ही उजागर करता है। आखिर वह दिल्ली पुलिस की जांच के पहले ही यह कैसे जान गया था कि टूलकिट को कांग्रेस की कारस्तानी बताने वाले ट्वीट सही नहीं? ट्विटर यह कहकर कर्तव्य की इतिश्री नहीं कर सकता कि वह तो सूचना-संवाद का मंच है, क्योंकि कहीं भी किसी को यह अधिकार नहीं कि वह किसी पोस्टर-बैनर पर कुछ भी आपत्तिजनक लिखकर उससे अपना पल्ला झाड़ ले। जब प्रत्येक पोस्टर-बैनर की भाषा के लिए उसे लगाने-इस्तेमाल करने वाले जिम्मेदार होते हैं, तब फिर ट्विटर अथवा अन्य कोई सोशल नेटवर्क साइट यह कहकर कैसे बच सकती है कि उसके प्लेटफार्म पर कोई कुछ भी लिख सकता है?

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