निर्विरोध जीत के मायने

लेकिन वाममोर्चा के शासन में निर्विरोध जीतने और इस बार 20 हजार से अधिक यानी तीन गुणा अधिक सीटों पर तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों के बिना प्रतिद्वंद्विता जीतने में बहुत फर्क है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Tue, 01 May 2018 03:03 PM (IST) Updated:Tue, 01 May 2018 03:03 PM (IST)
निर्विरोध जीत के मायने
निर्विरोध जीत के मायने

पश्चिम बंगाल के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस की 34.2 फीसद सीटों पर निर्विरोध जीत हुई है। इस बार पंचायतों में निर्विरोध जीतने में तृणमूल कांग्रेस ने वाममोर्चा का भी रिकार्ड तोड़ दिया है। राज्य में वाममोर्चा का शासन जब अपने पूरे शबाब पर था तो 2003 में उसने त्रिस्तरीय पंचायतों में सर्वाधिक 11 प्रतिशत सीटों पर निर्विरोध जीत हासिल की थी। नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि खत्म होने के बाद राज्य चुनाव आयोग के हवाले से मिली खबर खबर के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस ने त्रिस्तरीय पंचायतों में 20 हजार से अधिक सीटें यानी 34.2 प्रतिशत प्रतिशत पर बिना प्रतिद्वंद्विता के कब्जा कर लिया है। 2003 में त्रिस्तरीय पंचायतों में 6 हजार 800 सीटों पर वाममोर्चा के उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए थे। उस समय तक बंगाल में वाममोर्चा का एकछत्र शासन था और विपक्ष का प्रभाव नगण्य था। कहने को तो ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल जरूर विपक्षी पार्टी के रूप में लड़ रही थी, लेकिन चुनाव में वह माकपा को बराबर की टक्कर देने की स्थिति में नहीं थी। इसके बावजूद उस समय मात्र 11 प्रतिशत सीटों पर वाममोर्चा के उम्मीदवार निर्विरोध जीते थे तो जाहिर 90 प्रतिशत सीटों पर लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव हुआ था। लेकिन वाममोर्चा के शासन में निर्विरोध जीतने और इस बार 20 हजार से अधिक यानी तीन गुणा अधिक सीटों पर तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवारों के बिना प्रतिद्वंद्विता जीतने में बहुत फर्क है।

तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्थ चटर्जी का तो दावा है कि निर्विरोध जीतने वाली सीटों की संख्या 40 प्रतिशत पार कर सकती है। चटर्जी के दावे में सच्चाई है इसमें कोई राय नहीं है, लेकिन स्वस्थ लोकतांत्रिक माहौल में यदि किसी पार्टी के उम्मीदवार अधिक संख्या में निर्विरोध चुनाव जीतते हैं तो इसमें कोई गलत नहीं है। लेकिन यदि पहले से ही ऐसा माहौल पैदा कर दिया गया हो कि विपक्षी दल नामांकन जमा ही नहीं कर पाए और यदि किसी तरह साहस कर जमा कर भी दे तो उसे वापस लेने के लिए बाध्य कर दिया जाए तो ऐसे में लोकतांत्रिक व्यवस्था पर तो सवाल खड़ा होता ही है। ऐसे में निर्विरोध जीतने का कोई मतलब नहीं है। जाहिर है जो शेष सीटें हैं उस पर भी चुनाव बाद अधिकांश पर तृणमूल का ही कब्जा हो जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय: पश्चिम बंगाल ]

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