नक्सल समस्या से पागलपन

जिन इलाकों में जन, जान और जमीन जाने का खौफनाक अहसास लगातार बना हुआ है, उनमें रह रहे लोगों के डिप्रेशन जैसे पागलपन का शिकार हो जाना झारखंड की एक बड़ी समस्या है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 29 Jul 2016 03:53 AM (IST) Updated:Fri, 29 Jul 2016 03:55 AM (IST)
नक्सल समस्या से पागलपन

जिन इलाकों में जन, जान और जमीन जाने का खौफनाक अहसास लगातार बना हुआ है, उनमें रह रहे लोगों के डिप्रेशन जैसे पागलपन का शिकार हो जाना झारखंड की एक बड़ी समस्या है। मानसिक बीमारियों से निजात दिलाने के स्थापित रिनपास (रांची इंस्टीच्यूट ऑफ न्यूरो साइकाइअट्री एंड एलाइड साइंस) के आंकड़े आगाह कर रहे हैं कि राज्य से नक्सलवाद का खात्मा नहीं हुआ तो डिप्रेशन के दायरे में बड़ी आबादी आ जाएगी। इसका असर दूर-दूर तक पड़ेगा। बिना कोई गुनाह किए यदि किसी के परिजन-पुरजन को बंदूक की नोंक पर अगवा कर लिया जाय या उनकी हत्या कर दी जाय, उनकी जायदाद हड़प ली जाय और आतंक का यह सिलसिला लगातार कायम रहे तो आदमी के दिमाग पर इसका असर पडऩा कतई अस्वाभाविक नहीं। नक्सल प्रभावित इलाकों में जन-जमीन हड़पने, बात-बात पर गोली-बारूद चलाने और जन अदालत के नाम पर किसी को भी सरेआम मारने-पीटने, बेइज्जत करने से लेकर दम घुटने तक अमानवीय तरीके से प्रताडि़त करने की घटनाएं होती रहती हैं। कोई भी आदमी पैतृक संपति को सहेज कर रखना चाहता है और उसमें अपना भी अंशदान करता है ताकि वर्तमान और आने वाली पीढिय़ां उनका लाभ उठाएं। जब इस पर भी खतरा उत्पन्न हो जाए और समाज तथा सुरक्षा एजेंंसियां लाचार नजर आएं तो मन-मस्तिष्क अनियंत्रित होने में बहुत वक्त नहीं लगता।

झारखंड बनने से पहले रिनपास में हर साल औसतन 16 हजार मरीजों की आमद होती थी, लेकिन अब इलाज के लिए उसमें औसतन दो लाख से अधिक मरीज आ रहे हैं। इन मरीजों में अधिक संख्या सघन नक्सल प्रभावित इलाकों की है। 2007 में यह राज खुला कि रिनपास आने वाले मरीजों की संख्या साल दर साल बढ़ती क्यों जा रही है। इसके बावजूद नक्सलवाद पर नियंत्रण की दिशा में बहुत प्रभावी तरीके से काम न हो सका। इसका असर प्रभावित लोगों अथवा जो उन इलाकों के निवासियों के दिल-दिमाग पर तेजी से पड़ा। यही कारण है कि रिनपास पर मरीजों का दबाव बढ़ता जा रहा है। इसका असर नक्सल प्रभावित इलाकों के सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर भी पड़ रहा है। जिन परिवारों के लोग मानसिक बीमारी से ग्रस्त हो जा रहे हैं, उनके इलाज का अतिरिक्त खर्च ढोने की लाचारी बढ़ गई है। परिवार के लोगों पर दुश्चिंता हावी होना स्वाभाविक है। इस प्रकार नक्सलियों द्वारा किए जा रहे झारखंडी समाज के गंभीर और दूरगामी अहित को देखते हुए उनका खात्मा करने की रणनीति पर अमल किया जाना अत्यावश्यक है।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]

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