Himachal Lok Sabha Election 2024: संकट टलने तक आराम से बैठो...टल जाएगा

Himachal Lok Sabha Election 2024 हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने दो सीटों पर अपने प्रत्‍याशी उतार दिए हैं। वहीं अन्‍य सीटों पर अभी भी सन्नाटा छाया हुआ है। हमीरपुर से उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री की बेटी आस्था अग्निहोत्री से अनुरोध किया गया कि वह हमीरपुर सीट पर अनुराग ठाकुर को चुनौती दें। किंतु मुकेश अग्निहोत्री और उनकी बेटी स्वयं को शोक में बताते हुए इनकार कर चुके हैं।

By Himani Sharma Edited By: Himani Sharma Publish:Fri, 19 Apr 2024 06:27 PM (IST) Updated:Fri, 19 Apr 2024 06:27 PM (IST)
Himachal Lok Sabha Election 2024: संकट टलने तक आराम से बैठो...टल जाएगा
हिमाचल सरकार ने दो सीटों पर उतारे प्रत्‍याशी, बाकी पर अभी भी पसरा सन्नाटा (फाइल फोटो)

नवनीत शर्मा। कहीं एक चित्र देखा था। एक व्यक्ति आराम से कुर्सी पर बैठा था जिसने दोनों हाथों की उंगलियां सिर के पीछे से एक दूसरे में पिरोई हुई हैं। नीचे एक पंक्ति लिखी थी...जब संकट बहुत अधिक हो जाए तो मैं यह करता हूं कि मैं संकट टलने तक कुछ नहीं करता। संभव है कि इस पंक्ति का कोई संबंध हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के साथ भी निकल आए क्योंकि चार संसदीय हलकों में से दो के ही प्रत्याशी घोषित हुए हैं।

बाकी सीटों पर अभी सन्नाटा

शिमला से विनोद सुल्तानपुरी और मंडी से विक्रमादित्य सिंह। बाकी जगह अभी सन्नाटा है। पसंद-नापसंद, जाति, क्षेत्र जैसे मानदंडों से नामों को गुजारा जा रहा है, काटा जा रहा है, बढ़ाया जा रहा है, घटाया जा रहा है मगर जो हो नहीं पा रहा है, उसे निर्णय कहते हैं।

उदाहरण के लिए नाम तो हमीरपुर संसदीय सीट से सतपाल रायजादा का भी तय था किंतु आलाकमान ने राज्य नेतृत्व को यह कह कर मना कर दिया कि अनुराग ठाकुर का हलका है, कोई और नाम ढूंढें। यानी राज्य नेतृत्व आश्वस्त था कि रायजादा अनुराग को टक्कर देने में सक्षम हैं। किंतु आलाकमान सहमत नहीं हुआ।

अग्निहोत्री की बेटी आस्था ने चुनाव लड़ने से किया इनकार

हमीरपुर से, उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री की बेटी आस्था अग्निहोत्री से अनुरोध किया गया कि वह हमीरपुर सीट पर अनुराग ठाकुर को चुनौती दें। किंतु मुकेश अग्निहोत्री और उनकी बेटी स्वयं को शोक में बताते हुए इनकार कर चुके हैं। मुकेश कहते हैं, ‘ प्रो. सिम्मी अग्निहोत्री के देहांत के बाद मेरे लिए पार्टी के साथ परिवार को संभालना भी आवश्यक है। हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, उसमें चुनाव में खड़े होने का सवाल ही नहीं है।‘ बाद में आस्था ने भी विनम्रतापूर्वक इन्कार कर दिया।

दिल्‍ली में हुई बैठक में उठाा था ये किस्‍सा

कांगड़ा में आशा कुमारी के साथ जीएस बाली के पुत्र आरएस बाली और डॉ. राजेश शर्मा का नाम चल रहा था। नाम चलता रहा किंतु दिल्ली में हुई बैठक में यह कहा गया कि हारे हुए लोगों को टिकट देने का लाभ क्या है। यह बात आशा कुमारी के आड़े आई हुई है। दूसरा, क्षेत्र और जाति के साथ ही उपयुक्तता का सिद्धांत तो है ही। वास्तव में राजनीतिक व्यक्ति को अनेक कोष्ठक भरने पड़ते हैं।

दिल्ली जाने के इच्छुक व्यक्ति को शिमला की नजर में भी ठीक उतरना होता है। शिमला को यदि यह लगे कि दिल्ली में कोई शिमला तैयार हो सकता है तो वह सहमत नहीं होता। जिन छह विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है, वहां भी हलचल पूरी है किंतु प्रत्याशी तय नहीं हो पा रहे हैं। इस सब में, जिन्हें मानक कहा जाता है, वे लोचदार रस्सी की तरह आकार बदलते हैं। सच तो यह है कि आशा कुमारी यदि हारी हुई हैं तो सतपाल रायजादा भी जीते हुए नहीं हैं।

हिमाचल में अंतिम चरण में चुनाव

कांग्रेस के नेता धर्मशाला में ऐसे व्यक्ति को टिकट देना चाहते हैं जो संगठन से हो यानी घाट-घाट का पानी पीकर न आया हो लेकिन लाहुल-स्पीति जैसे कुछ क्षेत्रों में उन्हें ऐसे व्यक्ति से भी परहेज नहीं है जो हाल में भाजपा से गया हो। कांग्रेस के हितैषी इस विलंब को सोच-विचार, गंभीर चिंतन का नाम दे रहे हैं। तर्क यह भी दे रहे हैं कि

हिमाचल प्रदेश में तो चुनाव सातवें यानी अंतिम चरण में है। इसलिए शीघ्रता क्यों की जाए। प्रत्याशी होगा तो ऐसा, जैसा मंडी में दिया या जैसा शिमला में दिया। विधानसभा उपचुनाव वाले हलकों में भी ऐसे ही सोच समझ कर प्रत्याशी देंगे। किंतु भाजपा यह कह रही है कि प्रत्याशी ढूढने की नौबत आन पड़ी है।

दो सीटों पर नाम चुनना कांग्रेस की समन्वय समिति की उपलब्धि

कांगड़ा से डॉ. राजेश प्रत्याशी होना चाहते हैं किंतु उनके हक में कोई आवाज नहीं है। वह भी बीते विधानसभा चुनाव में देहरा से हारे हैं मगर वहां कांग्रेस को दूसरे नंबर पर ले आए थे। पार्टी चाहती है कि आरएस बाली लड़ें किंतु वह तैयार नहीं बताए जाते।

वास्तव में कांग्रेस की समन्वय समिति की उपलब्धि इस समय तक मंडी और शिमला सीट पर नाम चुनना है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि कांग्रेस प्रत्यााशियों पर सहमत नहीं हो पा रही जबकि एक बड़ा चुनाव सामने है। टिकट की घोषणा होने पर ही यह पता चलेगा कि कांग्रेस वास्तव में लोकसभा चुनाव के लिए कितनी गंभीर है।

भाजपा उतार चुकी अपने प्रत्‍याशी

उधर, भाजपा हर उस व्यक्ति को मना रही है, जिससे उसे लाभ अपेक्षित है। कोई कितना मानता है या अड़ा रहता है, यह पता चार जून को ही चलेगा। भाजपा अपने प्रत्याशी उतार चुकी है। इससे उसे टिकट वितरण के बाद उपजे असंतोष को देखने और शांत करने का समय भी मिल गया है। यह भारतीय जनता पार्टी से जुड़े असंतुष्ट नेता ही बता सकते हैं कि भाजपा की भागदौड़ और सम्मान आदि की प्रक्रिया के बाद वे कितने संतुष्ट हैं।

भाजपा से जुड़े जिन लोगों ने 2022 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था, उनकी वापसी संभवत: नामांकन के बाद होगी। ऐसा इसलिए कि वे कहीं दोबारा अप्रिय स्थिति उत्पन्न न कर दें। विश्वास का यह घाटा कांग्रेस ही नहीं, भाजपा में भी है। क्योंकि परिस्थितियां ऐसी हैं कि कब, कौन इधर का लगने वाला,उधर का हो जाए, पता नहीं चलता।

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