जीने की बात

दंपती ने कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली। यह घटना बड़ी इसलिए लग रही है क्योंकि दंपती का जाना है मगर त्रासदी यह है कि खुद अपनी जान लेना हिमाचल प्रदेश के एक वर्ग के स्वभाव में शामिल हो रहा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2015 02:05 AM (IST) Updated:Wed, 12 Aug 2015 02:07 AM (IST)
जीने की बात

पता नहीं क्या स्थितियां रही होंगी और क्या घटनाक्रम रहा होगा कि दंपती ने कुएं में कूद कर आत्महत्या कर ली। यह घटना बड़ी इसलिए लग रही है क्योंकि दंपती का जाना है मगर त्रासदी यह है कि खुद अपनी जान लेना हिमाचल प्रदेश के एक वर्ग के स्वभाव में शामिल हो रहा है। उलझनें या परेशानियां जीवन के साथ-साथ चलती हैं लेकिन इसका यह अर्थ हो जाए कि बात जान दे देने तक आ जाए तो एक चेतना जीवन के पक्ष में भी चलनी चाहिए। किसी का पुल से छलांग लगाना, किसी का कुएं में कूद जाना और किसी का कुछ पीकर जान दे देना अंतत: आत्महत्याएं हैं। व्यवहारिकता इस बात में है कि उस सोच का पता लगाया जाए जो जीवन को क्षण में मृत्यु में बदल देती है। उस मानसिकता के उपचार की बात होनी चाहिए। हिमाचल प्रदेश में दो बड़े अस्पताल हैं जहां मनोचिकित्सक भी होते हैं। इस समस्या के हल के लिए भी किसी अभियान की जरूरत है। वह स्वास्थ्य विभाग छेड़े या कोई और इकाई लेकिन कभी-कभार जायजा लेने के लिए ऐसा सर्वेक्षण भी होना चाहिए कि कितने लोग पलायनवादी सोच रखते हैं, कितने कमजोर हैं, कहां तक वे बड़ी से बड़ी बात का आघात सह सकते हैं। जो कमजोर पाया जाए उसे उपचार दिया जाए। हिमाचल जैसे राज्य में भी धार्मिकता या धर्म की ओर लोगों का रुझान बढ़ा है लेकिन सभी प्रवचनों और उनके प्रति झुकावों का लाभ तब ही है जब यह चेतना आ जाए कि जीवन के मोर्चे से भागा न जाए। किसी भी व्यक्ति के जीवन में न दुख स्थायी रूप से बना रहता है और सुख। ऐसे में कोई ऐसा कदम क्यों उठे जिसे दुरुस्त करना संभव न हो। त्रासदी यह भी है कि अब ऐसी मानसिकता भी बन रही है कि असफलता को स्वीकार न किया जाए लेकिन असफलता को अस्वीकार करने का अर्थ जब जीवन के तिरस्कार से जुड़ जाता है तो अप्रिय घटनाएं होती हैं। पूरे परिवेश में एक सकारात्मकता के प्रसार की आवश्यकता है। यह जिम्मा गैर सरकारी संस्थाएं भी उठा सकती हैं। कुछ अर्से से प्रदेश में आत्महत्या के मामलों में आई तेजी चिंताजनक है। आत्महत्या करने वालों में युवा अधिक हैं। जरा सी नाराजगी, घरेलू कलह, सहनशक्ति का अभाव व भावनाओं में बहकर आत्महत्या करने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। जीवनशैली तो जीवन की विवशता है लेकिन विचार ठीक रहें तो जीवन मुस्कराएगा।

[स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश]

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