कोरोना काल में जियो प्लेटफॉर्म ने विकसित की 5जी तकनीक, देश में विश्व स्तरीय सेवाएं देने में सक्षम

आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता के लिए यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि भारत सूचना-संचार तकनीक के मामले में अपने पांव पर खड़ा दिखे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 15 Jul 2020 11:41 PM (IST) Updated:Thu, 16 Jul 2020 12:54 AM (IST)
कोरोना काल में जियो प्लेटफॉर्म ने विकसित की 5जी तकनीक, देश में विश्व स्तरीय सेवाएं देने में सक्षम
कोरोना काल में जियो प्लेटफॉर्म ने विकसित की 5जी तकनीक, देश में विश्व स्तरीय सेवाएं देने में सक्षम

रिलायंस इंडस्ट्रीज की सालाना आमसभा में मुकेश अंबानी की ओर से की गई घोषणाओं ने यदि देश का ध्यान अपनी ओर खींचा तो इसके पीछे कुछ ठोस कारण हैं। उनकी ओर से जो तमाम घोषणाएं की गईं उनमें सबसे उल्लेखनीय यह है कि उनके जियो प्लेटफॉर्म ने 5जी तकनीक विकसित कर ली है और वह देश में विश्व स्तरीय सेवाएं देने में सक्षम है। इस घोषणा का महत्व केवल इसलिए नहीं है कि यह 5जी तकनीक स्वदेशी है, बल्कि इसलिए भी है कि भारत को इसका फैसला करना है कि वह चीनी कंपनी हुआवे को 5-जी सेवाएं देने का अवसर प्रदान करे या नहीं?

हुआवे पर जासूसी में लिप्त होने के साथ ही यह भी आरोप है कि वह चीन की सत्ताधारी पार्टी के इशारों पर काम करती है। इन्हीं गंभीर आरोपों के कारण अमेरिका के बाद ब्रिटेन ने भी उस पर पाबंदी लगा दी है। कुछ अन्य देश भी इस कंपनी से दूरी बनाने के संकेत दे रहे हैं। अहंकारी चीनी सत्ता की बदनीयती को देखते हुए भारत के पास इसके पर्याप्त कारण हैं कि वह भी हुआवे पर लगाम लगाए। मौजूदा माहौल में इससे बेहतर और कुछ नहीं कि भारत को हुआवे की सेवाएं न लेनी पड़ें और उसकी संभावित कमी को जियो पूरी करे।

जियो के संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जब कोरोना संकट के चलते कारोबार जगत से निराश करने वाली खबरें आ रही हैं तब उसमें निवेश करने वालों की कतार लगी हुई है। इसी कोरोना काल में अब तक फेसबुक समेत एक दर्जन से अधिक कंपनियां जियो में निवेश कर चुकी हैं और ताजा नाम गूगल का जुड़ा है। तकनीक के इस युग में जब डाटा को पेट्रोलियम उत्पाद सरीखा माना जाने लगा है तब किसी भारतीय कंपनी का इस तरह सुर्खियां बटोरना सुखद है। बेहतर होगा कि सूचना-संचार तकनीक से जुड़ी अन्य भारतीय कंपनियां जियो प्लेटफॉर्म से प्रेरित हों और उन सुनहरे दिनों की वापसी के लिए सक्रिय हों जब वे आउटसोर्सिंग के लिए दुनिया भर में नाम कमा रही थीं।

केवल उन कारणों की पहचान ही नहीं होनी चाहिए जिनके चलते भारतीय कंपनियां साफ्टवेयर के क्षेत्र में अपनी बढ़त कायम नहीं रख सकीं, बल्कि उनका निवारण भी किया जाना चाहिए, क्योंकि आज तकनीक ही तरक्की का सबसे कारगर हथियार है। आखिर क्या कारण है कि हमारी कंपनियां उस तरह के एप विकसित नहीं कर सकीं जैसे चीनी कंपनियों ने विकसित कर लिए और जिन पर हाल में प्रतिबंध लगाना पड़ा? आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता के लिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि भारत सूचना-संचार तकनीक के मामले में अपने पांव पर खड़ा दिखे।

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