महंगाई ऐसे समय पर सिर उठा रही है जब देश में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं

कच्चे तेल की खरीद में अधिक डॉलर का भुगतान रुपये की कमजोरी का एक कारण भी बन रहा है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 15 Oct 2018 10:36 PM (IST) Updated:Tue, 16 Oct 2018 05:00 AM (IST)
महंगाई ऐसे समय पर सिर उठा रही है जब देश में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं
महंगाई ऐसे समय पर सिर उठा रही है जब देश में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की बढ़ती दर इसलिए सरकार के लिए चिंता का विषय बननी चाहिए, क्योंकि इसके पहले खुदरा मुद्रास्फीति में भी बढ़त देखने को मिली और यह एक तथ्य है कि थोक मुद्रास्फीति का असर खुदरा मुद्रास्फीति पर पड़ता है। ध्यान रहे कि आम तौर पर जब ऐसा होता है यानी खुदरा के साथ थोक मुद्रास्फीति दर में बढ़त होती है तो महंगाई सिर उठा लेती है। इसके पहले कि ऐसा हो और महंगाई एक मसला बने, सरकार को उस पर लगाम लगाने के लिए गंभीरता से सक्रिय होना चाहिए। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले किसी भी सरकार के लिए इससे बुरा और कुछ नहीं हो सकता कि महंगाई सिर उठा ले।

सरकार इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकती कि महंगाई बढऩे का अंदेशा एक ऐसे समय उभर रहा है जब आम चुनाव भी सिर पर हैैं और देश चुनावी माहौल में प्रवेश कर चुका है। सरकार के नीति-नियंताओं को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि त्योहारी सीजन भी निकट आ चुका है। सितंबर माह में थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति की दर 4.53 प्रतिशत से बढ़कर 5.13 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह उल्लेखनीय है कि बीते वर्ष वह इसी कालखंड में 3.14 प्रतिशत ही थी। साफ है कि मुद्रास्फीति की मौजूदा दर को चिंताजनक ही कहा जाएगा। वैसे उसकी बढ़त पर हैरानी इसलिए नहीं, क्योंकि बीते कुछ समय से पेट्रोल और डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैैं।

यह करीब-करीब तय माना जा रहा था कि इसका असर मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। हालांकि सरकार ने पेट्रोल और डीजल के मूल्य कम करने की कोशिश की है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़ते रहने के कारण वह नाकाम साबित होती हुई दिख रही है। इस पर हैरत नहीं कि विपक्ष महंगे पेट्रोल और डीजल को एक राजनीतिक मसला बनाने की कोशिश में है।

यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते मूल्य पर भारत सरकार का कोई जोर नहीं, लेकिन वह केवल यह तर्क देखकर कर्तव्य की इतिश्री भी नहीं कर सकती कि पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते दामों के लिए उसे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। सरकार को उन स्थितियों के बारे में सोचना चाहिए कि जब कच्चे तेल के दाम इसी तरह बढ़ते रहे? इस सवाल पर विचार इसलिए होना चाहिए, क्योंकि कच्चे तेल की खरीद में अधिक डॉलर का भुगतान रुपये की कमजोरी का एक कारण भी बन रहा है।

यह ठीक है कि खुद प्रधानमंत्री तेल कंपनियों के अधिकारियों के साथ बैठक कर रहे हैैं, लेकिन फिलहाल ऐसा लगता नहीं कि पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते दामों पर अंकुश लगाने के किसी ठोस उपाय तक पहुंचा जा सका है। यदि खुदरा और थोक मुद्रास्फीति इसी तरह बढ़ती रही तो यह भी तय है कि रिजर्व बैैंक की ओर से ब्याज दरों में नरमी की उम्मीद नहीं की जा सकती और सरकार इससे अनभिज्ञ नहीं हो सकती कि यदि थोक मुद्रास्फीति में वृद्धि का सिलसिला थमा नहीं तो उस पर अर्थव्यवस्था को दुरुस्त रखने का दबाव और बढ़ जाएगा-इसलिए और भी, क्योंकि औद्योगिक उत्पादन के आंकड़े भी गिरावट दर्शा रहे हैैं।

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