अमेरिका की बुरी आदत, केजरीवाल और कांग्रेस के मामले पर राजनयिक को सुनाई खरी-खोटी

अमेरिका एक ओर तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का चैंपियन बनता है और दूसरी ओर विकिलीक्स वाले जूलियन असांजे को ब्रिटेन से लाकर दंडित करने पर तुला है क्योंकि उन्होंने उसके काले कारनामे उजागर कर उसकी पोल खोल दी थी। अमेरिका किस तरह दोहरे मापदंड अपनाता है इसका एक उदाहरण नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए पर उसकी आपत्ति से भी मिलता है।

By Jagran NewsEdited By: Narender Sanwariya Publish:Thu, 28 Mar 2024 11:55 PM (IST) Updated:Fri, 29 Mar 2024 02:47 AM (IST)
अमेरिका की बुरी आदत, केजरीवाल और कांग्रेस के मामले पर राजनयिक को सुनाई खरी-खोटी
अमेरिका की बुरी आदत, केजरीवाल और कांग्रेस के मामले पर राजनयिक को सुनाई खरी-खोटी (File Photo)

अमेरिका ने भारतीय विदेश मंत्रालय की कड़ी आपत्ति और यहां तक कि उसके राजनयिक को फटकार लगाए जाने के बाद भी जिस तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर फिर से टिप्पणी की और कांग्रेस के खाते फ्रीज किए जाने पर भी चिंता जता दी, उससे यदि कुछ स्पष्ट है तो यही कि वह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की अपनी बुरी आदत से बाज आने वाला नहीं है। वह इसकी जानबूझकर अनदेखी कर रहा है कि केजरीवाल को तब गिरफ्तार किया गया, जब हाई कोर्ट ने उन्हें राहत देने से मना कर दिया।

इसी तरह यह भी किसी से छिपा नहीं कि आयकर विभाग की कार्रवाई पर कांग्रेस को हाई कोर्ट से कोई राहत नहीं मिली। कुछ दिनों पहले जर्मनी के राजनयिक ने भी केजरीवाल की गिरफ्तारी को लेकर सवाल उठाए थे। भारत ने उसके राजनयिक को भी खरी-खोटी सुनाने में संकोच नहीं किया। जर्मनी को तो यह समझ आ गया कि उसने अपनी हद पार की, लेकिन अमेरिका अपनी हद में रहने को तैयार नहीं दिखता।

उसे शायद यह अच्छा नहीं लगा कि आखिर भारत ने उसके राजनयिक को बुलाकर फटकार कैसे लगाई और इसीलिए उसने भारत के आंतरिक मामलों में फिर से टिप्पणी कर दी। यह और कुछ नहीं उसका श्रेष्ठता बोध है। इस श्रेष्ठता बोध ने अहंकार का रूप ले लिया है। यह अहंकार इसके बाद भी कम नहीं हो रहा है कि अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका पहले जैसा प्रभाव नहीं रह गया है।

दुनिया का कोई भी लोकतंत्र दोषरहित नहीं है और इसमें अमेरिका भी शामिल है। ऐसे में उसे या किसी अन्य को दूसरे लोकतांत्रिक देश को नसीहत देने के पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। जैसे श्रेष्ठता बोध से अमेरिका ग्रस्त है, वैसे ही पश्चिम के अन्य देश। यदि अमेरिका अपनी आदत से बाज नहीं आता तो फिर भारत के लिए भी यह उचित होगा कि वह उसके अंदरूनी मामलों में प्रतिक्रिया दे।

कम से कम उन मामलों में तो दे ही, जो भारत और भारतीयों के हित से जुड़े हैं। बीते कुछ दिनों में अमेरिका में भारत के नौ छात्रों की हत्या हुई है। क्या यह उचित नहीं होगा कि भारत अमेरिका से कहे कि वह भारतीय छात्रों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं? इसी तरह भारत को यह तो अवश्य ही कहना चाहिए कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर खालिस्तानी आतंकियों को जानबूझकर पाल-पोस रहा है।

अमेरिका एक ओर तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का चैंपियन बनता है और दूसरी ओर विकिलीक्स वाले जूलियन असांजे को ब्रिटेन से लाकर दंडित करने पर तुला है, क्योंकि उन्होंने उसके काले कारनामे उजागर कर उसकी पोल खोल दी थी। अमेरिका किस तरह दोहरे मापदंड अपनाता है, इसका एक उदाहरण नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए पर उसकी आपत्ति से भी मिलता है। खुद उसने सीएए जैसे कानून बना रखे हैं, लेकिन उसे भारत के इस कानून में खोट दिखता है।

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