सिर उठाते नक्सली: गढ़चिरौली की घटना बता रही कि नक्सलियों की सही तरह से घेरेबंदी नहीं हो पा रही

निसंदेह इस सवाल का भी जवाब मिलना चाहिए कि नक्सली बार-बार एक ही तरह से सुरक्षा बलों को निशाना बनाने में सक्षम क्यों हैैं?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 02 May 2019 05:25 AM (IST) Updated:Thu, 02 May 2019 05:25 AM (IST)
सिर उठाते नक्सली: गढ़चिरौली की घटना बता रही कि नक्सलियों की सही तरह से घेरेबंदी नहीं हो पा रही
सिर उठाते नक्सली: गढ़चिरौली की घटना बता रही कि नक्सलियों की सही तरह से घेरेबंदी नहीं हो पा रही

बर्बर नक्सलियों ने एक बार फिर अपना खूनी चेहरा दिखाया। इस बार उन्होंने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में पुलिस के त्वरित कार्रवाई दस्ते के एक वाहन को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया। इसके चलते 15 जवानों के साथ एक वाहन चालक वीरगति को प्राप्त हुआ। बीते कुछ समय से नक्सली जिस तरह नए सिरे से सिर उठाते दिख रहे हैैं वह गंभीर चिंता का कारण बनना चाहिए-न केवल नक्सल ग्रस्त राज्यों के लिए, बल्कि केंद्र सरकार के लिए भी। इसके पहले छत्तीसगढ़ में भाजपा के एक विधायक के वाहन को इसी तरह बारूदी सुरंग से उड़ा दिया गया था। इससे थोड़ा और पहले छत्तीसगढ़ में ही बीएसएफ के चार जवानों को निशाना बनाया गया था। नक्सलियों की ओर से रह-रहकर अंजाम दी जा रही इस तरह की खूनी घटनाएं यही बताती हैैं कि वे आंतरिक सुरक्षा के लिए अभी भी गंभीर खतरा बने हुए हैैं। एक आंकड़े के अनुसार बीते पांच वर्षों में करीब तीन सौ जवान नक्सलियों का निशाना बन चुके हैैं।

गढ़चिरौली की वारदात पुलवामा की आतंकी घटना की याद दिला रही है। यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि नक्सलियों की बेलगाम हिंसा को आतंकी वारदात के तौर पर न केवल देखा जाए, बल्कि उनसे वैसे ही निपटा जाए जैसे आतंकियों से निपटा जा रहा है। आखिर जब आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों को खुली छूट दी जा सकती है तो नक्सलियों के खिलाफ भी ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता? सच तो यह है कि जरूरत महसूस होने पर नक्सलियों के खिलाफ सेना का भी इस्तेमाल करना चाहिए। यह कहना समस्या का सरलीकरण करना है कि नक्सली भटके हुए लोग हैैं। वे भटके हुए लोग नहीं, नृशंस हत्यारे और निर्मम लुटेरे हैैं। वे गरीबों के नाम पर उगाही के साथ खूनी खेल खेलने में लगे हुए हैैं। उनके प्रति नरमी दिखाना जानबूझकर खतरा मोल लेना है।

गढ़चिरौली की घटना यह बता रही है कि नक्सलियों की सही तरह से घेरेबंदी नहीं हो पा रही है। माना कि वे छत्तीसगढ़ के ऐसे दुर्गम इलाके में छिपे रहते हैैं जहां से आसानी से पड़ोसी राज्यों में खिसक जाते हैैं, लेकिन संबंधित राज्यों की पुलिस के तालमेल से ऐसे जतन किए जा सकते हैैं जिससे उनकी लुकाछिपी पर लगाम लग सके। हालांकि बीते कुछ समय में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है, लेकिन यह ठीक नहीं कि नक्सली अभी भी बेलगाम बने हुए हैैं। इसका कोई मतलब नहीं कि एक-डेढ़ दशक से यही सुनने को मिल रहा है कि नक्सलियों की कमर टूटने वाली है।

आखिर उनके दुस्साहस का पूरी तौर पर दमन कब होगा? नि:संदेह इस सवाल का भी जवाब मिलना चाहिए कि नक्सली बार-बार एक ही तरह से सुरक्षा बलों को निशाना बनाने में सक्षम क्यों हैैं? यह चिंताजनक है कि वे सतर्कता में कमी का लाभ उठाकर बारूदी सुरंगों का इस्तेमाल करने में समर्थ बने हुए हैैं। गढ़चिरौली में त्वरित कार्रवाई दस्ते को निशाना बनाने के एक दिन पहले नक्सलियों ने सड़क निर्माण में लगे उपकरणों में आगजनी की थी। स्पष्ट है कि जरूरत केवल सतर्कता बढ़ाने की ही नहीं, बल्कि नक्सलियों पर निर्णायक प्रहार करने की भी है।

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