दुष्प्रचार से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट के जज एके सीकरी ने ट्रिब्यूनल से खुद को अलग किया

जो लोग आलोक वर्मा को पाक-साफ मानने की जिद पकड़े हैैं वे यह क्यों नहीं देख रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें क्लीनचिट नहीं दी थी?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 14 Jan 2019 11:29 PM (IST) Updated:Tue, 15 Jan 2019 05:00 AM (IST)
दुष्प्रचार से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट के जज एके सीकरी ने ट्रिब्यूनल से खुद को अलग किया
दुष्प्रचार से आहत होकर सुप्रीम कोर्ट के जज एके सीकरी ने ट्रिब्यूनल से खुद को अलग किया

सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश एके सीकरी ने कॉमनवेल्थ ट्रिब्यूनल के लिए खुद को नामित करने की अपनी सहमति जिस तरह वापस ली उससे यही स्पष्ट हुआ कि उन्होंने अपने खिलाफ छेड़े गए दुष्प्रचार से आहत होकर यह कदम उठाया। यह देखना कष्टदायक है कि हर तरह के विवादों से दूर और नीर-क्षीर फैसलों के लिए चर्चित एक न्यायाधीश शरारत भरे दुष्प्रचार का शिकार बन गए।

जस्टिस सीकरी उस उच्च स्तरीय चयन समिति में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल थे जिसने सीबीआइ के निदेशक आलोक वर्मा को स्थानांतरित करने का फैसला किया था। चूंकि इस समिति में शामिल लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे आलोक वर्मा के पक्ष में थे इसलिए जस्टिस सीकरी के वोट को ही निर्णायक माना गया। उनके निर्णायक वोट को इससे जोड़ दिया गया कि वह सेवानिवृत्ति के बाद लंदन स्थित कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का सदस्य बन जाएंगे। इस सिलसिले में यह प्रतीति जानबूझकर कराई गई कि सरकार ने उन्हें इस ट्रिब्यूनल का सदस्य बनाने का फैसला इसलिए लिया, क्योंकि वह आलोक वर्मा को स्थानांतरित करने के उसके फैसले के पक्ष में आ गए थे। इस झूठ को प्रचारित करने के लिए यह भी रेखांकित किया गया कि उक्त ट्रिब्यूनल का सदस्य बनना एक मलाईदार पद हासिल करना है।

इस तथ्य को छिपाया गया कि इस ट्रिब्यूनल के सदस्य को न तो कोई वेतन मिलता है और न ही उसे लंदन में स्थाई रूप से रहना होता है। उसे बस साल में दो-चार बार वहां जाना होता है। इस तथ्य की भी अनदेखी की गई कि उन्हें उक्त ट्रिब्यूनल का सदस्य बनाने का फैसला बीते दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सहमति के बाद किया गया था। तब सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा के बारे में कोई फैसला नहीं हुआ था।

जस्टिस सीकरी के खिलाफ दुष्प्रचार छेड़ने वालों ने इस सच को महत्ता देना जरूरी नहीं समझा कि उन्हें उच्च स्तरीय चयन समिति में खुद मुख्य न्यायाधीश ने भेजा था। स्पष्ट है कि ऐसी व्याख्या का कहीं कोई आधार नहीं था कि जस्टिस सीकरी ने कॉमनवेल्थ ट्रिब्यूनल का सदस्य बनने के एवज में आलोक वर्मा को स्थानांतरित करने के सरकार के फैसले का समर्थन किया, फिर भी ऐसा ही किया गया। ऐसा करते समय इसकी भी अनदेखी की गई कि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने आलोक वर्मा को पाक-साफ नहीं पाया था। इस पीठ ने उन्हें सीबीआइ निदेशक पद पर बहाल करने का फैसला अवश्य दिया था, लेकिन उन पर नीतिगत निर्णय न लेने की बंदिश लगाते हुए कहा था कि उन्हें पूरे अधिकार तब मिलेंगे जब उन्हें नियुक्त करने वाली चयन समिति उनके बारे में विचार कर लेगी।

इस समिति ने बहुमत से यह फैसला किया कि उनका स्थानांतरण किया जाना चाहिए। नि:संदेह यह फैसला तमाम लोगों को रास नहीं आया, लेकिन इसका यह मतलब नहीं था कि उसके कारण जस्टिस सीकरी को लांछित किया जाता। समझना कठिन है कि जो लोग आलोक वर्मा को पाक-साफ मानने की जिद पकड़े हैैं वे यह क्यों नहीं देख रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें क्लीनचिट नहीं दी थी?

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