चलने दें सदन

तीन दिनों से विधानसभा और विधानपरिषद की कार्यवाही बाधित की जा रही है। बजट पर मुकम्मल बहस नहीं हो सकी। अन्य कार्य भी बाधित हो रहे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 03 Mar 2017 03:19 AM (IST) Updated:Fri, 03 Mar 2017 03:22 AM (IST)
चलने दें सदन
चलने दें सदन

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फ्लैश :
तीन दिनों से विधानसभा और विधानपरिषद की कार्यवाही बाधित की जा रही है। बजट पर मुकम्मल बहस नहीं हो सकी। अन्य कार्य भी बाधित हो रहे। ज्वलंत मुद्दे तो रहेंगे, लेकिन क्या इसके लिए सदन के सत्र को मात्र औपचारिकता बना देना उचित है?
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प्रधानमंत्री के खिलाफ सार्वजनिक रूप से आपत्तिजनक बयान देना और उनकी तस्वीर का अपमान करना मंत्री पद पर बैठे एक वरिष्ठ नेता के लिए उचित नहीं। मतभिन्नता का मतलब यह नहीं कि हम अमर्यादित टिप्पणी करने लगें। इस लिहाज से विपक्ष अपना काम कर रहा। इस बात पर भी बहस हो सकती है कि इस तरह की टिप्पणी करने वाले को सिर्फ खेद प्रकट करने पर माफ कर देना चाहिए कि नहीं...। विपक्ष का कहना है कि ऐसे माफ कर देना उचित नहीं। उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिए। परंतु इस बहस से अलग सवाल यह है कि क्या विधानमंडल का सत्र सिर्फ हंगामे की भेंट चढ़ता रहेगा। सदन में तमाम जरूरी काम होते हैं। बजट और अन्य व्यवस्था पर चर्चा बेहद जरूरी है। विकास को लेकर पक्ष-विपक्ष की बहस भी होनी आवश्यक है। राज्य के लोगों की बेहतरी के लिए सदन की कार्यवाही ठीक से चलनी चाहिए। भाजपा ने नरेंद्र मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयान देने वाले मद्य निषेध एवं उत्पाद मंत्री अब्दुल जलील मस्तान के खिलाफ राजभवन में शिकायत की है। थाने में भी केस किया है। यह उचित प्रक्रिया है। कानूनन और सैद्धांतिक रूप से किसी ने गलत किया है, तो उसका फैसला संविधान द्वारा तय व्यवस्था के अनुसार होना चाहिए। सरकार पर दबाव बनाने के लिए धरना-प्रदर्शन और जुलूस निकालना भी लोकतांत्रिक रूप से उचित है, लेकिन सदन को चलने दिया जाना चाहिए। गुरुवार को भी विधानसभा में प्रथम पाली में काम नहीं हुआ। दूसरी पाली में हंगामे के बीच स्पीकर ने बजट पर विमर्श की खानापूर्ति की। सरकार की ओर से जवाब भी दिया गया। विधानपरिषद में दोनों पालियों को मिलाकर हंगामे के कारण 15 मिनट ही कार्यवाही चल सकी। संसद में भी ऐसे हंगामे होते हैं। बहरहाल, यह स्थिति चिंताजनक है। विधानसभा और संसद के हर सत्र के पहले या बाद विपक्ष के पास ऐसा कोई ज्वलंत मुद्दा रहता ही है, जिसे उठाकर वे जोरदार हंगामा करते हैं। ऐसे ही चलता रहेगा तो फिर अन्य कार्य कब होंगे। विधानमंडल का सत्र सीमित दिन के लिए होता है। खुद सदस्य यह चिंता जताते हैं कि सदन में चर्चा का स्तर पहले जैसा नहीं रहा। फिर तो ऐसे सत्र मात्र औपचारिकता बनकर रह जाएंगे। जिस बजट से राज्य का भविष्य गढ़ा जाना है, उसपर सिर्फ खानापूर्ति हो, तो इसे दुर्भाग्य ही माना जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]

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