पलायन क्यों

हर असफलता किसी सफलता के लिए राह बनाती है बशर्ते उससे सबक सीखा जाए। चुनौती कोई भी हो, जीवन के पक्ष में ही जाए तभी बेहतर होगा।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Wed, 07 Mar 2018 11:59 AM (IST) Updated:Wed, 07 Mar 2018 11:59 AM (IST)
पलायन क्यों
पलायन क्यों

जीवन संघर्ष का नाम है। इसलिए चुनौतियों या परेशानियों से हार न मानें बल्कि उनका सामना करना हर व्यक्ति का ध्येय होना चाहिए। हार की निराशा या तनाव को खुद पर इतना हावी न होने दें कि जिंदगी ही दाव पर लग जाए चाहे अपनी या अपनों की। दुनिया उन्हीं को याद करती है जो जिंदगी की मुश्किलों का साहस से सामना करना जानते हैं। उन्हें कभी याद नहीं किया जाता जो निराशा के भंवर में फंसकर पलायन को प्राथमिकता देना पसंद करते हैं। वैसे भी पलायन सफलता का पर्याय नहीं बन सकता। सफलता तभी मिलती है, जब पीछे न हटने का जज्बा और मंजिल पाने का जुनून मनुष्य के साथ हो। जीवन भगवान की दी अनमोल नेमत है, जिसकी कद्र हर इन्सान को करनी चाहिए। मौजूदा भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव होना आम है, लेकिन कई बार लोग इसे सहन नहीं कर पाते व आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। हिमाचल में भी आत्महत्या के बढ़ते मामले पहाड़ की संस्कृति से मेल नहीं खाते। मानसिक तनाव लोगों पर इस कदर हावी होता जा रहा है कि वे इससे मुक्ति पाने के लिए मौत को गले लगाने से भी नहीं चूक रहे।

नाराजगी, घरेलू कलह, सहनशक्ति का अभाव या भावनाओं में बहकर आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं। हमीरपुर जिले में एक युवक ने इसलिए फंदा लगा लिया कि परिजनों ने उसे बाइक खरीदकर नहीं दी। इसके अलावा मंडी जिले के सरकाघाट में एक छात्र ने बोर्ड परीक्षा के दौरान पेपर अच्छा न होने पर मौत को गले लगा लिया। चिंताजनक है कि युवा इस तरह मौत को गले लगा रहे हैं। समझना होगा कि परेशानी व दिक्कतों का ही नाम जिंदगी है। हर काली रात के बाद उजाला आता है। बस जरूरत है उसका इंतजार किया जाए न कि धैर्य खोकर गलत कदम उठा लिया जाए। परिवेश को कभी भी ऐसा माहौल नहीं बनने देना चाहिए जिससे कोई हंसता-खेलता जीवन तनाव की भेंट चढ़ जाए। इन्सान बचपन से लेकर ताउम्र संवाद में रहता है और यह संवाद ही उसके व्यक्तित्व को बनाता या बिगाड़ता है। यह संवाद माता-पिता, शिक्षकों या संपर्क में रहने वाले व्यक्तियों से हो सकता है। इस सारे संवाद में जब नकारात्मक माहौल ज्यादा मिले तो अच्छा संकेत नहीं देता। हमें ऐसा वातावरण तैयार करना होगा, जिसमें आत्मविश्वास बढ़े, उत्साह में वृद्धि हो व सहनशीलता आदि गुणों की वृद्धि हो।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ] 

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