सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी
देश भर में शिक्षा सामान्यत: दो वर्गों में बंटी हुई है...एक प्राइवेट शिक्षा और दूसरी सरकारी।
सरकारी और निजी शिक्षा में भेद मिटाने के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी का स्तर सुधारने की अपनी योजना को गंभीरता से धरातल पर उतारे।
देश भर में शिक्षा सामान्यत: दो वर्गों में बंटी हुई है...एक प्राइवेट शिक्षा और दूसरी सरकारी। इन दोनों में सबसे बड़ा अंतर निस्संदेह अंग्रेजी माध्यम का ही है। सरकारी स्कूलों में जहां हिंदी, पंजाबी भाषा में शिक्षा दी जाती है, वहीं निजी स्कूल अंग्रेजी को तरजीह देते हैं। जोकि समय की भी मांग है। यही कारण है कि लोग बच्चों को निजी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा दिलाने पर जोर देते हैं। हालांकि निजी स्कूलों में शिक्षा सरकारी की अपेक्षा बहुत महंगी है, लेकिन जिस के पास भी सामथ्र्य है वह निजी स्कूलों का ही रुख करता है। कारण बहुत स्पष्ट हैं...एक तो सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव और दूसरा शिक्षा का माध्यम। यह अच्छी बात है कि पंजाब के शिक्षा विभाग ने इसे समझा है और अब सरकारी स्कूलों में बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाने पर जोर देने का फैसला लिया है। अध्यापकों को भी अब विभाग अंग्रेजी का ज्ञान देने से पूर्व कुछ वाक्यों का अभ्यास कराएगा और शिक्षक इन्हीं का उच्चारण बच्चों के बीच जाकर करेंगे। इससे निस्संदेह सरकारी स्कूलों में शिक्षा के वातावरण में सकारात्मक बदलाव आएगा। अभी होता यह है कि अंग्रेजी विषय की शिक्षा भी सरकारी स्कूलों में पंजाबी व ङ्क्षहदी भाषा में दी जाती है। अब देखना यह है कि शिक्षा विभाग अपनी योजना को धरातल पर कितनी गंभीरता के साथ उतारता है, क्योंकि जब तक बदलाव की इस कवायद को उचित तरीके से अमल में नहीं लाया जाता, तब तक स्थिति में सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती है। इसके लिए ठोस कदम उठाए जाएं, शिक्षकों को भी इस दिशा में पहल करनी चाहिए। एक बार शुरुआत हो जाने के बाद सरकारी स्कूलों में भी शिक्षा का आधुनिकीकरण किया जा सकेगा। यदि ऐसा होता है तो सरकारी और निजी शिक्षा का भेद बहुत हद तक मिट जाएगा, जोकि सभी को समान शिक्षा उपलब्ध करवाने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]