पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा: लोकतांत्रिक मूल्यों और मान्यताओं को ठेंंगा दिखा रहीं ममता बनर्जी

वाम दलों के कुशासन और उनकी अराजकता का सामना करने वालीं ममता बनर्जी उन्हीं के रास्ते पर चल रही हैैं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 16 May 2019 06:19 AM (IST) Updated:Thu, 16 May 2019 10:07 AM (IST)
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा: लोकतांत्रिक मूल्यों और मान्यताओं को ठेंंगा दिखा रहीं ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा: लोकतांत्रिक मूल्यों और मान्यताओं को ठेंंगा दिखा रहीं ममता बनर्जी

कोलकाता में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के दौरान जिस तरह बड़े पैमाने पर हिंसा हुई उससे पश्चिम बंगाल सरकार की देश भर में बदनामी ही हो रही है। आखिर क्या कारण है कि एक अकेले राज्य पश्चिम बंगाल में उतनी चुनावी हिंसा हुई जितनी शेष देश में भी नहीं हुई? पश्चिम बंगाल में केवल विरोधी दलों और खासकर भाजपा की सभाओं को ही निशाना नहीं बनाया जा रहा है, बल्कि उसके कार्यकर्ताओं और नेताओं पर भी हमले हो रहे हैैं। भाजपा नेताओं की रैलियों में छल-बल से खलल डालने के साथ ही उन लोगों को डराने-धमकाने का काम भी बड़े पैमाने हो रहा है जिन्हें भाजपा का वोटर माना जा रहा है। इस बात को मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि यह काम बिना किसी रोक-टोक इसीलिए हो रहा है, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को शासन-प्रशासन की शह मिली हुई है।

खुद ममता बनर्जी के बयान यह साबित करने के लिए पर्याप्त हैैं कि वह लोकतांत्रिक तौर-तरीकों की तनिक भी परवाह नहीं कर रही हैैं। वह भाजपा अध्यक्ष के रोड शो में हुई हिंसा को आंदोलन का नाम देकर एक तरह से हिंसक तत्वों को बल ही प्रदान कर रही हैैं। चुनावी हिंसा के मामले में पश्चिम बंगाल की जैसी खराब छवि निर्मित हो गई है उससे ममता सरकार न सही, राज्य के प्रशासन को तो लज्जित होना ही चाहिए। क्या कोई बताएगा कि इस राज्य में अभी तक हुए मतदान के छह चरणों में से कोई भी चुनार्वी ंहसा से अछूता क्यों नहीं रह सका? नि:संदेह कुछ अन्य राज्यों में भी पुलिस और नौकरशाही का राजनीतिकरण हुआ है, लेकिन पश्चिम बंगाल का प्रशासन तो सारी हदें पार करता दिख रहा है। ऐसा लगता है कि पुलिस और प्रशासन के लोगों को तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की तरह व्यवहार करने में कोई हर्ज नहीं।

निर्वाचन आयोग ने पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार में कटौती करने का फैसला करके राज्य सरकार के साथ-साथ उसके प्रशासन की नाकामी पर मुहर ही लगाई है। अच्छा होता कि निर्वाचन आयोग पहले ही सख्त फैसला लेता। कायदे से उसे राज्य के शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ मतदान के पहले और दूसरे चरण के बाद ही सख्त कार्रवाई करनी चाहिए थी। निर्वाचन आयोग की ताजा कार्रवाई के बाद ममता बनर्जी आपे से बाहर हो सकती हैैं, लेकिन बेहतर होगा कि वह इस पर विचार करें कि केवल पश्चिम बंगाल में ही इतनी चुनावी हिंसा क्यों हो रही है? जब ममता बनर्जी ने परिवर्तन का नारा देकर सत्ता संभाली थी तो यह लगा था कि वह सचमुच कुछ तब्दीली लाएंगी, लेकिन अपने मनमाने शासन से उन्होंने प्रदेश के साथ देश को भी निराश करने का काम किया है।

यह हैरानी की बात है कि वाम दलों के कुशासन और उनकी अराजकता का सामना करने वालीं ममता बनर्जी उन्हीं के रास्ते पर चल रही हैैं। दरअसल इसी कारण राज्य में वैसी ही चुनावी हिंसा देखने को मिल रही है जैसी वाम दलों के शासन के समय दिखती थी। यह एक विडंबना ही है कि लोकतांत्रिक मूल्यों और मान्यताओं को ठेंंगा दिखा रहीं ममता बनर्जी खुद को प्रधानमंत्री पद का दावेदार साबित कर रही हैैं।

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप

chat bot
आपका साथी