आर्थिक पैकेज: कोरोना कहर से प्रभावित उद्यमी, मजदूर और किसान को आवश्यकता है जल्द राहत की

उचित यह होगा कि सरकार पैकेज की घोषणा करके ही कर्तव्य की इतिश्री न करे बल्कि यह भी देखें कि लाभार्थी वांछित राहत महसूस कर रहे हैं या नहीं।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Fri, 15 May 2020 11:00 PM (IST) Updated:Sat, 16 May 2020 12:19 AM (IST)
आर्थिक पैकेज: कोरोना कहर से प्रभावित उद्यमी, मजदूर और किसान को आवश्यकता है जल्द राहत की
आर्थिक पैकेज: कोरोना कहर से प्रभावित उद्यमी, मजदूर और किसान को आवश्यकता है जल्द राहत की

जैसा अपेक्षित था, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज के तीसरे हिस्से की घोषणा करते हुए किसानों को राहत देने वाले तमाम उपाय गिनाए। इनमें कुछ वे भी हैं जिनकी घोषणा कोरोना संकट के प्रारंभ में ही कर दी गई थी। नि:संदेह वित्त मंत्री ने कृषि और किसानों की बेहतरी के लिए जो कदम उठाए जाने की घोषणा की उनसे कुछ न कुछ लाभ अवश्य होगा, जैसे कि आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन, कृषि उत्पादों के लिए उचित भंडारण की व्यवस्था का निर्माण, हर्बल खेती को प्रोत्साहन और डेयरी और पशुपालन को बढ़ावा देने की तैयारी। वित्त मंत्री के अनुसार सरकार कृषि के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने के लिए एक लाख करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। 

इसके बावजूद यह सवाल तो उठेगा ही कि क्या इन सब उपायों से किसानों को तत्काल कोई राहत मिलने जा रही है, क्योंकि बुनियादी ढांचे का निर्माण रातों-रात तो होने वाला नहीं। इसी तरह जो प्रशासनिक सुधार किए जाने हैं उनका असर दिखने में भी समय लगेगा। इससे इन्कार नहीं कि किसानों को पीएम किसान योजना से लाभ मिलने जा रहा है जिसके तहत उनके खाते में 18,700 करोड़ रुपये जमा किए गए हैं। इसी तरह फसल बीमा योजना के दावों की पूर्ति से भी उन्हेंं राहत मिलेगी और उचित दाम पर कृषि उपज की खरीद से भी, लेकिन अन्य अनेक उपायों से तात्कालिक लाभ मिलने के आसार कम ही हैं। वास्तव में इसी कारण कृषि और किसानों पर केंद्रित पैकेज को लेकर भी वैसे ही सवाल उठ रहे हैं जैसे दो और पैकेज के तहत की गई घोषणाओं को लेकर उठे थे।

आज की आवश्यकता तो यह है कि कोरोना कहर से प्रभावित लोगों को जल्द से जल्द सीधी राहत मिले- वे चाहे उद्यमी हों या मजदूर या फिर किसान। मोदी सरकार को इसका आभास होना चाहिए कि बीते तीन दिनों में जो भी पैकेज घोषित किए गए हैं वे ऐसा करने में कम ही समर्थ दिख रहे हैं। ये पैकेज बजट घोषणाओं सरीखे प्रतीत हो रहे हैं। ये पैकेज प्रभावित लोगों को मनोबल बढ़ाने और उन्हेंं यह उम्मीद बंधाने वाले तो हैं कि वे संकट से उबर जाएंगे, लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर उस मुसीबत से छुटकारा मिलने वाला नहीं जो सामने खड़ी दिख रही है।

उचित यह होगा कि सरकार पैकेज की घोषणा करके ही कर्तव्य की इतिश्री न करे, बल्कि यह भी देखें कि लाभार्थी वांछित राहत महसूस कर रहे हैं या नहीं? उसे इसका भी अहसास होना चाहिए कि उसकी कई घोषणाएं ऐसी हैं जो पहले ही हो जानी चाहिए थीं। जरूरी कदमों के लिए संकट की प्रतीक्षा का औचित्य नहीं।

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