घृणित कारनामा
नक्सल आंदोलन का अतीत जो भी रहा हो किन्तु अब यह विशुद्ध आतंकवाद की समस्या है। इसे उसी नजरिए से देखा जाना चाहिए
नवादा में नक्सलियों द्वारा एक महिला की गला काटकर हत्या कर दिए जाने की घटना हद दर्जे की क्रूरता का उदाहरण है। इस कारनामे के प्रति जितनी घृणा व्यक्त की जाए, कम है। विरोधी की जान लेने के लिए उसका गला काट देने की शैली पाकिस्तानी आतंकवादियों की है। दुर्भाग्य है कि राज्य के नक्सली उनके ही नक्शेकदम पर चल रहे हैं जिनके साथ मिलीभगत करके देशविरोधी वारदातें करने का शक पहले ही उन पर है। कुछ महीने पहले यूपी और बिहार में कई रेल हादसों की जांच में यह तथ्य सामने आया था कि इन घटनाओं को आइएसआइ के इशारे पर नक्सलियों ने अंजाम दिया।
वैचारिक लबादा ओढ़कर अपने ही देश और नागरिकों के खिलाफ पाकिस्तान की शह पर अराजक गतिविधियों को अंजाम देना अक्षम्य अपराध है। चिंता की बात है कि बिहार और झारखंड में सक्रिय नक्सली एक के बाद एक घृणित वारदातों को अंजाम देकर आतंक फैला रहे हैं। उनके हमलों में नागरिकों के अलावा अर्धसैन्य बलों के जवान भी शहीद हो रहे। इसके बावजूद किन्हीं कारणों से केंद्र और राज्य सरकार इन आतंकियों के खिलाफ अपेक्षानुसार सख्त कदम नहीं उठा रहीं। यदि ऐसा राजनीतिक कारणों से हो रहा है तो इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण कुछ और नहीं हो सकता।
नक्सल आंदोलन का अतीत जो भी रहा हो किन्तु अब यह विशुद्ध आतंकवाद की समस्या है। इसे उसी नजरिए से देखा जाना चाहिए और उसी हिसाब से इस समस्या के समाधान की रणनीति तैयार की जानी चाहिए। जांच एजेंसियों के पास इस बात के प्रमाण हैं कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ भारत में नकली करेंसी और आतंक के अन्य साधन पहुंचाने के लिए नक्सलियों को यंत्र के रूप में इस्तेमाल कर रही है। स्वाभाविक रूप से इसके बदले नक्सलियों को धन और हथियार मिलते हैं।
नक्सल आंदोलन का स्वरूप हमेशा नकारात्मक रहा यद्यपि इसकी वैचारिक सोच समाज के दलित-वंचित वर्गो के उत्थान से जुड़ी थी। अब यह सोच दूर-दूर तक नक्सलियों के क्रियाकलापों में नहीं दिखती। यदि वे आइएसआइ से प्राप्त सुविधाओं के लालच में अपने ही देश के खिलाफ कारनामे कर सकते हैं तो उनके साथ किसी भी स्तर पर कोई रहमदिली नहीं दिखनी चाहिए। इस समस्या को नासूर बनने से पहले ही जड़ से मिटा देने में भलाई है।
[बिहार संपादकीय]