असिस्टेंट सूची में भेदभाव

राज्य के तीनों संभागों में संतुलन बराबर नहीं रहेगा तो क्षेत्रवाद बढ़ेगा और लोग को भी लगेगा कि कहीं न कहीं उनकी अनदेखी हो रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 04 Jan 2018 11:43 AM (IST) Updated:Thu, 04 Jan 2018 11:43 AM (IST)
असिस्टेंट सूची में भेदभाव
असिस्टेंट सूची में भेदभाव

जम्मू कश्मीर सरकार को भी इस दिशा में कोई नीति बनानी होगी, जिसमें राज्य के तीनों क्षेत्रों के लोगों को समानअधिकार मिल सकें

राज्य सचिवालय सहयोगी सेवाओं की हाल ही में सार्वजनिक जूनियर असिस्टेंट की सूची में 48 में से कश्मीर संभाग से 36 उम्मीदवारों का चयन जम्मू से सरकार की भेदभावपूर्ण नीति को दर्शाता है। विडंबना यह है कि जम्मू संभाग से मात्र ग्यारह और लद्दाख से मात्र एक उम्मीदवार को शामिल किया गया। इससे भाजपा -पीडीपी गठबंधन सरकार जम्मू के हितों को नजरअंदाज करती दिख रही है। नागरिक सचिवालय में 65 फीसद नौकरशाह कश्मीर से हैं, जबकि 10 फीसद जम्मू से और 25 फीसद अन्य राज्यों से हैं। कर्मचारियों की बात करें तो 90 फीसद कर्मचारी कश्मीर संभाग से हैं। राज्य के तीनों संभागों में यह संतुलन बराबर नहीं रहेगा तो क्षेत्रवाद बढ़ेगा और लोग को भी लगेगा कि कहीं न कहीं उनकी अनदेखी हो रही है। सरकार को भी इस दिशा में कोई नीति बनानी होगी, जिसमें राज्य के तीनों क्षेत्रों के लोगों को समान अधिकार मिल सकें। सरकार में घटक दल भाजपा भी जम्मू संभाग के लोगों के अधिकारों पर खामोश है। इससे पहले राज्य सेवा भर्ती बोर्ड ने शिक्षकों के 2,154 रिक्त पद कश्मीर के लिए रख दिए। इसमें जम्मू संभाग के लिए कोई भी पद नहीं रखा गया। इससे पहले कश्मीर के इंजीनियङ्क्षरग और मेडिकल पढऩे वाले छात्रों के लिए निशुल्क सुपर-50 कोचिंग शुरू की गई। इसमें भी जम्मू के छात्रों को नजरअंदाज कर दिया गया। लोक सेवा आयोग द्वारा जारी लेक्चरर्स की सूची में सर्वाधिक शिक्षक कश्मीर से लिए जाने पर भी भाजपा ने इसे मुद्दा तक नहीं बनाया। हालांकि, जम्मू केंद्रित कुछ सामाजिक एवं विपक्षी दलों ने इसे मुद्दा जरूर बनाया। भाजपा अच्छी तरह जानती है कि लोगों ने जम्मू से भेदभाव न हो, इसलिए भाजपा को चुना। गठबंधन सरकार के अस्तित्व में आए तीन साल हो चुके हैं। अगर अब भी जम्मू के लोग खुद को उपेक्षित महसूस करे तो इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा। भाजपा को पीडीपी से सबक लेना होगा। पीडीपी की तरह उन्हें भी अपनी जनता के मसलों को उचित प्लेटफार्म पर उठाने की जरूरत है। अगर देर हो गई तो जनता बाहर का रास्ता भी दिखा सकती है। भाजपा नेताओं को भी बात रखने का उतना ही अधिकार है जितना की पीडीपी हुक्मरानों का।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]

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